मणिपुर के एक अदिवासी संगठन ने अधिकारियों से राज्य में पांच माह से जारी जातीय संघर्ष में मारे गये कुकी-जो समुदाय के लोगों के शव राजधानी इंफाल के मुर्दाघरों से कांगपोकपी जिले में लाये जाने का अनुरोध से किया है.
आदिवासी संगठन ‘कमेटी ऑन ट्रायबल यूनिटी’ (COTU) ने शवों को लाए जाने के दौरान उनकी रक्षा की भी मांग की है.
इंफाल ईस्ट जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वे सरकार के निर्देशों के मुताबिक काम करेंगे लेकिन उन्हें आदिवासी संगठन से औपचारिक रूप से कोई अनुरोध नहीं मिला है.
सीओटीयू के मीडिया सेल कोऑर्डिनेटर लुन किपगेन ने कहा, ‘‘अगर अधिकारी इंफाल के मुर्दाघरों में रखे कुकी समुदाय के लोगों के शवों को कांगपोकपी जिले में लाने की मांग मान लेते हैं तो हमें खुशी होगी. मृतकों के परिजनों से विचार-विमर्श करने के बाद शवों को फैजांग में एक कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा.’’
हांलाकि सीओटीयू नेता ने यह नहीं बताया कि कितने शवों को लाया जाएगा लेकिन अनुमान है कि शवों की संख्या 50 हो सकती है.
किपगेन ने कहा, ‘‘हम अधिकारियों और इंफाल के नागरिक समाज से जुड़े संगठनों से अनुरोध करते हैं कि लाये जाने के दौरान शवों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए.’’
उन्होंने कहा कि जिन शवों की पहचान नहीं हुई है उनका अंतिम संस्कार ‘जल्दबाजी’ में नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उनकी पहचान के लिए पूरा तंत्र तैयार किया जाना चाहिए.
राज्य के खाली पड़े घरों में हो रही लूटपाट
मणिपुर में जातीय संघर्ष के चलते बहुत से लोग अपने घरों को छोड़कर चले गए हैं. इस बीच खबर आई कि खाली पड़े इन घरों में लूटपाट हो रही है.
इसे देखते हुए राज्य सरकार ने मंगलवार को लोगों से इस तरह की संपत्तियों पर कब्जा न करने की अपील की है. सरकार की ओर से कहा गया कि ऐसा करने से कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है.
मणिपुर सरकार के गृह विभाग ने अपने बयान में सुप्रीम कोर्ट के 25 दिसंबर के आदेश का हवाला दिया. मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि दूसरों की संपत्ति को हड़पने या उन्हें नुकसान पहुंचाने वाले को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को मणिपुर सरकार को हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.
राज्य सरकार के गृह विभाग का यह आदेश इन खबरों के बीच आया कि कई जगहों पर प्रतिद्वंद्वी समुदाय के सदस्यों की संपत्ति को जलाया जा रहा या उसे नुकसान पहुंचाया जा रहा है.
आदेश में कहा गया है कि राज्य सरकार बहुत संवेदनशीलता के साथ नजर रख रही है क्योंकि ऐसी घटना से राज्य में कानून व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है या स्थिति बिगड़ सकती है.
इसमें कहा गया कि उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों को कार्रवाई करने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करने की सलाह दी जाती है.
मोरेह शहर में कर्फ्यू में ढील रद्द
इस बीच मणिपुर में तेंगनौपाल जिला प्राधिकारियों ने भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह शहर में दैनिक कर्फ्यू में ढील रद्द कर दी है. तेंगनौपाल के जिला मजिस्ट्रेट कृष्ण कुमार ने सोमवार को इसे लेकर बयान जारी किया.
इसमें कहा गया कि कर्फ्यू में आम लोगों को दवाओं और खाद्य सामाग्री समेत जरूरी सामान खरीदने के लिए सुबह 6 बजे से शाम 5 बजे तक ढील दी गई थी. जिसे अगले आदेश तक तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया है. ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि लोगों को के इकट्ठा होने की आशंका है.
मणिपुर में फैली अशांति की शुरुआत
मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च के बाद 3 मई को जातीय हिंसा भड़क गई थी. हिंसा की घटनाओं में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. जबकि 50 हज़ार से ज्यादा लोग अपने घरों को छोड़ राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं.
मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की जनसंख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं नगा और कुकी आदिवासियों की आबादी करीब 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.
स्थिति काबू में लेकिन शांति स्थाई नहीं है
राज्य में पिछले लगभग 6 महीने से चल रही हिंसा अब काफी हद तक काबू में आ गई है. लेकिन अभी भी राज्य में स्थाई शांति और स्थिति के सामान्य होने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं.
अभी भी मणिपुर में हिंसा से जुड़े वीभत्स वारदातों के फोटो और वीडियो वायरल हो रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर के हालातों पर व्यापक कदम उठाने का आदेश दिया है.
लेकिन इसके बावजूद राज्य में स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है. अभी भी मैतई और कुकी आदिवासियों के बीच संघर्ष का ही माहौल बना हुआ है.
मणिपुर के ताज़ा हालातों पर लिखते हुए जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय (JNU) के प्राध्यापक टी हाओकिप कहते हैं कि जब तक मणिपुर में एन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री के पद पर कायम हैं, राज्य में शांति और भरोसे का माहौल बनाना मुश्किल होगा.
वो कहते हैं कि राज्य के आदिवासी समुदाय मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. उनका कहना है कि एन बीरेन सिंह की सरकार ने अभी तक जो भी फैसले लिये हैं वो संघर्ष में फंसे समुदायों में भरोसा जगाने के लिए काफी नहीं हैं.
उनका तर्क देते हुए कहते हैं कि मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में आफ्सपा (Armed Forces Special Power Act) की अवधि बढ़ा दी गई है. जबकि इंफ़ाल के 19 थाना क्षेत्रों में यह एक्ट हटा दिया गया है.
वो कहते हैं कि इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि राज्य के आदिवासी इलाकों और मैदानी इलाकों में बसने वाले मैतई समुदायों के इलाकों को अलग अलग नज़र से देखा जाता है.
मणिपुर में फ़िलहाल बुद्धिजीवी भी जातीय लाइन पर बंटे हुए हो सकते हैं. लेकिन यह बात ग़लत नहीं है कि राज्य सरकार और ख़ासतौर से मुख्यमंत्री लोगों का भरोसा जीत नहीं पा रहे हैं.
(Image credit: PTI)