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मायावती ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गोंडवाना पार्टी से क्यों किया गठबंधन?

1991 में स्थापित जीजीपी, गोंड लोगों के अधिकारों के लिए काम करती है. मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में GGP का बहुत प्रभाव है. पार्टी लंबे समय से गोंड आदिवासियों के लिए अलग गोंडवाना राज्य की मांग का समर्थन करती आई है.

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने आदिवासी पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (GGP) के साथ गठबंधन किया है.

इस गठबंधन को 2024 लोकसभा चुनाव और 2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले एक नई सोशल इंजीनियरिंग के तौर पर भी देखा जा रहा है.

बीएसपी को उम्मीद है कि अगर जीजीपी के साथ उसका “गठबंधन प्रयोग” मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों में काम करता है तो इससे पार्टी को उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में भी चुनावी फायदा हो सकता है.

सोमवार को चुनाव आयोग के मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ समेत पांच राज्यों में चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद BSP प्रमुख मायावती (Mayawati) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर चुनावी गठबंधन को लेकर एक पोस्ट किया.

उन्होंने लिखा, “मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में BSP का GGP के साथ चुनावी समझौता हुआ है. इसके अलावा मिजोरम को छोड़कर राजस्थान और तेलंगाना जैसे दोनों राज्यों में पार्टी अकेले चुनाव लड़ रही है और इन राज्यों में अच्छे नतीजों की उम्मीद है.”

एमपी चुनाव में कितनी सीटों पर लड़ेगा गठबंधन?

230 सदस्यीय एमपी विधानसभा के चुनाव के लिए उनकी सीट-बंटवारे की व्यवस्था के मुताबिक, बसपा 178 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी जबकि जीजीपी 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी.

मध्य प्रदेश चुनाव में अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए 47 और अनुसूचित जाति (SC) के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं.

राज्य की कुल आबादी में दलित आबादी 17 प्रतिशत, जबकि आदिवासी आबादी 22 प्रतिशत से अधिक है.

छत्तीसगढ़ के लिए गठबंधन का क्या समझौता हुआ?

छत्तीसगढ़ चुनाव के लिए बनी सहमति के मुताबिक, राज्य की कुल 90 सीटों में से बीएसपी 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जबकि GGP 37 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.

इस चुनाव में छत्तीसगढ़ में कुल 90 में से 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं.

इसके अलावा छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या में दलित आबादी 15 प्रतिशत, जबकि आदिवासी आबादी 32 प्रतिशत है.

क्यों अहम है GGP?

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एससी और एसटी मतदाता पारंपरिक रूप से भाजपा और कांग्रेस का समर्थन करते रहे हैं. ऐसे में इन दोनों राज्यों में इसी वोटबैंक में सेंधमारी करने के लिए बहुजन समाज पार्टी ने गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन किया है.

1991 में स्थापित जीजीपी, गोंड लोगों के अधिकारों के लिए काम करती है. मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में GGP का बहुत प्रभाव है. पार्टी लंबे समय से गोंड आदिवासियों के लिए अलग गोंडवाना राज्य की मांग का समर्थन करती आई है.

यहां बालाघाट, मंडला, डिंडोरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में गोंड आबादी काफी अधिक है.

2018 में दोनों पार्टियों का कैसा रहा था प्रदर्शन?

जीजीपी 2018 के विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में कोई भी सीट जीतने में विफल रही थी. जीजीपी के अधिकांश उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी.

वहीं इसके विपरीत बसपा ने मध्य प्रदेश में 227 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 2 सीटों पर जीत हासिल की थी. पार्टी को 5.01 प्रतिशत वोट मिले थे. जबकि छत्तीसगढ़ में पार्टी ने 35 सीटों पर चुनाव लड़कर 2 सीटों पर जीत हासिल की थी और उसका वोट शेयर 3.87 प्रतिशत था.

बसपा को गठबंधन से क्या हो सकता है फायदा?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि BSP और GGP का गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव और उसके बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दलित और आदिवासी मतदाताओं को एकजुट करने का प्रयास है.

ऐसा माना जा रहा है कि ये BSP का एक नया प्रयोग है और अगर ये गठबंधन मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनावों में काम करता है तो भविष्य में पार्टी को उत्तर प्रदेश चुनाव में आदिवासी बहुल जिलों में भी फायदा हो सकता है.

जीजीपी के साथ अपने गठबंधन को सही ठहराने के लिए बसपा खेमा 2018 एमपी विधानसभा चुनाव में जीजीपी के साथ अपने यूपी प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी (एसपी) के गठबंधन का हवाला देता है.

तब सपा ने वहां 52 सीटों पर चुनाव लड़ा था और एक सीट जीती थी. जीजीपी ने 73 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन कोई भी सीट जीतने में असफल रही और उसके 68 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. तब जीजीपी का वोट शेयर 1.77 प्रतिशत था.

एक बसपा नेता ने कहा, “लेकिन समाजवादी पार्टी को उस गठबंधन से बाद में यूपी में 2022 के विधानसभा चुनावों में फायदा हुआ था. गोंड मतदाता जो जीजीपी के समर्थक हैं, विशेष रूप से मिर्ज़ापुर, सोनभद्र और चंदौली जिलों में मौजूद हैं और उन्होंने 2022 में एसपी को वोट दिया था. बीएसपी को बाद में आने वाले चुनावों में यूपी में गोंड मतदाताओं से भी इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद है.”

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने स्वीकार किया कि एमपी में जीजीपी के साथ पार्टी के गठबंधन से 2022 के चुनावों में यूपी के तीन जिलों में मदद मिली है. यूपी के इन जिलों की 13 विधानसभा सीटों में एसपी-गठबंधन सिर्फ एक सीट जीत सका लेकिन 2017 के चुनावों की तुलना में 11 सीटों पर उसका वोट शेयर बढ़ गया.

बसपा के केंद्रीय समन्वयक और राज्यसभा सदस्य रामजी गौतम ने कहा कि बसपा-जीजीपी गठबंधन के साथ एससी और एसटी समुदाय एमपी और छत्तीसगढ़ दोनों में एक साथ आएंगे. बसपा गांव-गांव में आदिवासी मतदाताओं तक पहुंच रही है. इस गठबंधन से बसपा आदिवासियों के बीच यह संदेश दे रही है कि पार्टी उनके सशक्तिकरण के लिए चिंतित है और उन्हें एक मंच प्रदान कर रही है.

वहीं इस गठबंधन से यूपी में पार्टी को अपेक्षित लाभ के बारे में गौतम ने कहा कि यह एमपी और छत्तीसगढ़ चुनाव के नतीजों पर निर्भर करेगा.

इस साल जून में मायावती ने दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों और आदिवासियों के मुद्दों पर विधानसभा चुनाव अभियान की तैयारी के लिए अपने भतीजे और पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद और रामजी गौतम को राजस्थान, एमपी, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में तैनात किया था.

उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से केवल दो एसटी-आरक्षित हैं लेकिन राज्य पार्टियों का अनुमान है कि राज्य में आदिवासी आबादी 17 जिलों में लगभग 2 प्रतिशत है. गोंड इन सभी जिलों में उपस्थिति वाला एक प्रमुख आदिवासी समूह है. जीजीपी ने 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ा था. 2017 में उसने 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें से सभी की जमानत जब्त हो गई थी.

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