झारखंड की राजधानी रांची में मास्टर प्लान 2037( Ranchi Master Plan 2037) को लेकर 10 अक्टूबर मंगलवार के दिन आदिवासी समाज के लोंगों ने नगर निगम का घेराव किया है.
घेराव करने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है की रांची को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने 2 लाख एकड़ जमीन चिन्हित की है. जिसकी जानकारी जमीन लेने से पहले नहीं दी गई है.
इस प्रर्दशन में पहुंचे आदिवासी नेता प्रफुल्ल लिंडा ने MBB को बताया की रांची मास्टर प्लान के रहत 154 गांव ऐसे हैं जो पेसा एक्ट और पांचवी अनुसूची अधिनियम के तहत ग्रामसभा के अंदर आते हैं.
प्रफुल्ल लिंडा ने कहा की ऐसे में जमीन अधिग्रहण करने से पहले कई तरह की नियमावली का पालन करना होता है.
ट्रायबल एडवाइजरी कमेटी, सांसद सहित कई तरह के उच्च संस्थाओं एंव उच्च पद पर बैठे अधिकारियों से अनुमति लेनी पड़ती है. उसके बाद ग्रामसभा को जानकारी देकर अनुमति लेनी होती है.
नक्शे पास नहीं हो रहे हैं
रांची को विकसित करने के लिए बनाए गए मास्टर प्लान 2037 के मद्देनज़र नगर निगम ने मकानों के नक्शे पास करने बंद कर दिये हैं.
स्थानीय लोगों के अनुसार इस बारे में कोई सार्वजनिक सूचना जारी नही की गई है. लोग निगम के दफ़्तरों के चक्कर लगाते रहते हैं.
दफ़्तरों के कई चक्कर लगाने के बाद बताया जाता है कि मास्टर प्लान के हिसाब से कुछ इलाकों से सड़क निकालने की योजना है. इसलिए उन इलाकों में मकानों के नक्शे पास करने बंद कर दिए गए हैं.
हाईकोर्ट में याचिका दायर
घेराव करने वाले लोगों ने कहा की मास्टर प्लान के खिलाफ हाई कोर्ट में एक आवेदन भी दायर की गई है.
जिसकी सुनवाई 28 अक्टूबर को होनी है. लोगों ने कहा की यदि ग्रेटर रांची मास्टर प्लान को सरकार बनाना ही चाहती है तो पहले उन्हें ग्रामसभा से अनुमति लेनी चाहिए.
प्रशासन की प्रतिक्रिया
आदिवासी लोंगों की परेशानी सुनने के बाद नगर निगम के उप प्रशासक कुंवर सिंह पाहन ने बताया की लोगों की परेशानी लिखित तौर पर ली गई है.
लिखित शिकायत को कंपाइल कर नगर विकास विभाग को भेजा जाएगा. वहां से अनुमति मिलने के बाद ही आगे निर्णय लिया जा सकता है.
पेसा और पांचवी अनुसूचि का उल्लंघन
रांची झारखंड की राजधानी है और इस शहर में लगातार जनसंख्या बड़ी है. राजधानी शहर होने के कारण यहां पर आबादी का बढ़ना एक स्वभाविक घटना है.
इस लिहाज से आगे की योजना बना कर शहर का विकास करना भी ज़रूरी है. लेकिन इस विकास प्रक्रिया में आदिवासी समुदायों को दी गई संवैधानिक सुरक्षा को ध्यान में रखना भी ज़रूरी है.
पेसा कानून या फिर अनुसूचि 5 के प्रावधान, ये आदिवासियों की विशेष सांस्कृतिक पहचान और उनके संसाधनों यानि ज़मीन, जल और जंगल को बचाने के लिए हैं.
लेकिन अक्सर ये देखा गया है कि सरकारें या विकास एजेंसी योजनाएं बनाते हुए इन प्रावधानों और कानूनों का उल्लंघन करते हैं.
अंततः ये मामले अदालतों की चौखट पर पहुंचते हैं. जहां की मंहगी लड़ाई आदिवासियों या फिर उनके संगठनों के लिए काफी मुश्किल होता है.