HomeAdivasi Dailyमणिपुर के चुराचांदपुर में कुकी-ज़ो ने किया 48 घंटे का बंद

मणिपुर के चुराचांदपुर में कुकी-ज़ो ने किया 48 घंटे का बंद

मणिपुर के कुकी-जो आदिवासी समूहों के सदस्यों ने शुक्रवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दिया और राज्य तथा केंद्र सरकार पर पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया.

मणिपुर के कुकी छात्र संगठन (केएसओ) द्वारा किए गए 48 घंटे का बंद के कारण चुराचांदपुर जिला गुरुवार को अभूतपूर्व रुप से बंद हो गया. चुराचांदपुर ज़िले में हड़ताल का असर बहुत गहरा दिखा. बाजार सुनसान पड़े हुए थे. अधिकारियों ने बताया कि सरकारी और निजी कार्यालयों में कर्मचारी अनुपस्थित थे.

अन्याय के ख़िलाफ विरोध प्रर्दशन

हड़ताल के पीछे का कारण बताते हुए केएसओ चुराचांदपुर शाखा सचिव मिनलाल ने कहा कि यह बंद टेंगनौपाल ज़िले के मोरेह शहर में अतिरिक्त पुलिस कमांडो की तैनाती के खिलाफ विरोध का एक रूप था. जहां 31 अक्टूबर को एक उप-विभागीय पुलिस अधिकारी की हत्या हुई थी.

इसके अलावा उन्होनें कुकी-ज़ो आदिवासी समुदायों के प्रति होने वाले घोर अन्याय के खिलाफ एक स्टैंड के रूप में ये विरोध प्रदर्शन किया. मिनलाल ने पुलिस बलों पर टेंगनौपाल ज़िले में भारत-म्यांमार सड़क पर स्थित सिनम गांव में कुकी-ज़ो के आवासों और वाहनों में तोड़फोड़, लूटपाट और आग लगाने का आरोप लगाया है की वहीं मणिपुर के कुकी-जो आदिवासी समूहों के सदस्यों ने शुक्रवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दिया और राज्य तथा केंद्र सरकार पर पूर्वोत्तर राज्य में जातीय हिंसा को रोकने में विफल रहने का आरोप लगाया.

संयुक्त यूएनएयू छात्र मंच दिल्ली, कुकी-जो महिला मंच दिल्ली और यूएनएयू आदिवासी महिला मंच दिल्ली की ओर से आहूत विरोध प्रदर्शन में जनजातीय समुदायों के सदस्यों ने जनजातीय क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग उठाई.
अधिकार एवं जोखिम विश्लेषण समूह के निदेशक सुहास चकमा ने कहा कि अगर राज्य जिम्मेदारी से काम करे तो कोई भी दंगा छह महीने तक जारी नहीं रह सकता.

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर इस मुद्दे पर चुप्पी साधने का भी आरोप लगाया.हाथों में तख्तियां और राष्ट्रीय ध्वज लिए प्रदर्शनकारियों ने मणिपुर में शांति बहाल किए जाने की मांग की. उन्होंने आदिवासी क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासन की भी मांग की.

मणिपुर में पिछले करीब छह महीने से मैतेई और कुकी समुदाय के बीच जारी हिंसा में 180 से अधिक लोगों की मौत हो गई है. मणिपुर की आबादी में मैतेई समुदाय के लोगों की आबादी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं नगा और कुकी आदिवासियों की आबादी करीब 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.उन्होंने कुकी-ज़ो आदिवासी लोगों की भारी आबादी वाले शहर मोरेह में पुलिस की घुसपैठ और तलाशी अभियान की भी आलोचना की है.

क्या है पूरा मामला

दरअसल, मोरेह के एसडीपीओ चिंगथम आनंद की 31 अक्टूबर को हत्या कर दी गई थी. आदिवासी आतंकियों ने उन्हें उस समय गोलियों से भून दिया जब वे शहर के पूर्वी मैदान में नए बनाए गए हेलीपैड का निरीक्षण कर रहे थे.
आदिवासी विधायकों ने केंद्र सरकार से अपील की थी की मामले में तुरंत हस्तक्षेप करे.

लेकिन अभी तक किसी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई. साथ ही उन्होंने मोरेह में तैनात सभी कमांडो की वापसी सुनिश्चित करने की भी मांग की है. बुधवार के दिन एक बयान में कहा गया है की केएसओ ने कहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के सीमावर्ती शहर की यात्रा के दौरान तीन दिनों के दिन अंदर सभी राज्य बलों को वापस बुलाने के आश्वासन के बावजूद मोरेह शहर में मणिपुर पुलिस कमांडो की निरंतर तैनाती और अतिरिक्त बलों की तैनाती पर उन्हें कड़ी आपत्ति जता रहे हैं.

अमित शाह ने मई के अंत में सीमावर्ती शहर का दौरा किया था, जो पूर्वोत्तर राज्य में जातीय संघर्ष के विस्फोट के साथ हुआ था.पूर्वोत्तर राज्य में जातीय संघर्ष शुरू होने के कुछ हफ्तों बाद शाह ने मई के अंत में म्यांमार की सीमा से लगे शहर का दौरा किया था.

कुकी-ज़ो समुदाय के एक अन्य संगठन इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फ़ोरम ने भी इसी तरह के आरोप लगाए. जातीय रूप से विविध राज्य, जहां मैतेई लोगों की आबादी 53% और आदिवासियों की आबादी 40% है, मई के बाद से रुक-रुक कर हिंसा से ग्रस्त है. जिसमें अब तक 180 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है.

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