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आदिवासियों की नदियों में छोड़ा जा रहा ज़हरीला पानी, पुलिस और सरकार चुप

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि कंपनी जलापा क्रीक में ज़हरीला और सीवर का पानी छोड़ रही है. जलापा क्रीक इस कचरे और अपशिष्टों को बैतरणी नदी में ले जाती है.

ओडिशा के क्योंझर ज़िले के झुमपुरा ब्लॉक में स्थित एक खनिज संबंधित फ़ैक्टरी पर आरोप है कि वो मालदा, बसंतपुर, नयागडा और कुटुगांव जैसे दूरदराज़ के पहाड़ी और आदिवासी बहुल गांवों के जल निकायों को प्रदूषित कर रहा है.

स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि कंपनी जलापा क्रीक में ज़हरीला और सीवर का पानी छोड़ रही है. जलापा क्रीक इस कचरे और अपशिष्टों को बैतरणी नदी में ले जाती है.

नयागढ़, कुटुगांव और मालदा पंचायतों के हज़ारों आदिवासी नहाने और खाना पकाने के लिए जलापा क्रीक और बैतरणी नदी पर ही निर्भर हैं.

आदिवासियों के इस इलाक़े में वैसे ही साफ़ पीने का पानी एक बड़ी समस्या है. आदिवासियों ने पीने के लिए पानी इकट्ठा करने के लिए जलापा और बैतरणी नदी के किनारे गड्ढे खोदे हैं. लेकिन अब पानी के दूषित होने से, यही पानी खेती के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.

स्थानीय लोगों का आरोप है कि उन्होंने पहले भी कई बार इस मुद्दे पर फ़ैक्टरी के प्रबंधन और ज़िला प्रशासन से शिकायत की है, लेकिन कोई समाधान अभी तक तो नहीं निकला है.

स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस इलाक़े के आदिवासी मलेरिया की चपेट में हैं. जलापा क्रीक के जल प्रदूषण ने उनकी समस्या को और बढ़ा दिया है.

इस दूषित पानी का इस्तेमाल करने से डायरिया जैसी दूसरी बीमारियां भी यहां पनप रही हैं. एक आरोप यह भी है कि अगर लोग पानी के दूषित करने के लिए कंपनी के खिलाफ़ पुलिस स्टेशन जाते हैं, तो पुलिस उल्टी उन्हें ही धमकी देती है. एक आदिवासी ने ओडिशा पोस्ट से बात करते हुए कहा कि कुछ लोगों को झूठे मामलों में फंसाया भी गया है.

अखबार के प्लांट से संपर्क करने पर एक कर्मचारी केके शर्मा ने कहा कि शौचालय का पानी नाले में नहीं छोड़ा जा रहा है. उन्होंने कहा, “मैं जांच करूंगा कि क्या मानसून के दौरान शौचालय का पानी संयोग से नदी में तो नहीं चला गया.”

(Photot Credit: Orissa Post)

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