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कोरोना और लॉक डाउन में आदिवासियों की दशा, राज्यों के पीछे छुपा केन्द्र

केन्द्र सरकार की तरफ़ से इन सवालों के ज़्यादातर जवाब गोल-मोल रहे या फिर केन्द्र राज्य सरकारों के काम और आँकड़ों के पीछे छुपती नज़र आई.

भारत में कोविड-19 के कुल पुष्ट मामलों में से क़रीब 3 प्रतिशत आदिवासी बहुल ज़िलों से रिपोर्ट हुए हैं. संसद में एक सवाल के जवाब में जनजातीय कार्य मंत्रालय की तरफ़ से दी गई जानकारी में यह बताया गया है. 

दरअसल संसद के वर्तमान बजट सत्र में सरकार से पूछा गया था कि कोविड महामारी से आदिवासी समुदाय किस हद तक प्रभावित हुआ. इसके साथ ही यह भी पूछा गया था कि सरकार ने महामारी के प्रभावों से आदिवासी समुदाय को बचाने के लिए क्या क्या किया. 

सरकार से यह भी पूछा गया कि कोविड 19 की वजह से लगाए गए लॉक डाउन के दौरान आदिवासियों की जीविका की सुरक्षा के लिए उसने क्या क्या उपाय किए थे.

केन्द्र सरकार की तरफ़ से इन सवालों के ज़्यादातर जवाब गोल-मोल रहे या फिर केन्द्र राज्य सरकारों के काम और आँकड़ों के पीछे छुपती नज़र आई. 

जनजातीय कार्य राज्य मंत्री रेणुका सिंह सरूता ने राज्य सभा में जानकारी देते हुए बताया कि यह आँकड़ा मंत्रालय ने देश के उन 177 ज़िलों से जुटाया है जहां आदिवासी आबादी है. 

मंत्रालय की तरफ़ से एक और जवाब में कहा गया कि इस महामारी के दौरान आदिवासी आबादी की सुरक्षा के अलावा उनकी जीविका के लिए भी ख़ास इंतज़ाम किए गए थे. 

जनजातीय मंत्रालय ने संसद में जानकारी देते हुए कहा है कि इस मामले में उस समय गृह मंत्रालय को एक पत्र लिखा गया था जिसमें महामारी के दौरान वनोत्पाद जमा करने के लिए आदिवासियों को जंगल जाने की छूट दी गई थी.

मंत्रालय की तरफ़ से यह दावा किया गया है कि लॉक डाउन के दौरान यह व्यवस्था की गई थी कि इस दौरान भी आदिवासी समुदाय के लोग जंगल से मिलने वाले उत्पाद जमा कर सकें. 

आदिवासियों की बड़ी आबादी जंगल से मिलने वाले लघु उत्पादों पर निर्भर रहती है

जनजातीय कार्य मामलों की राज्य मंत्री ने कहा कि इस सिलसिले में 15 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी पत्र लिखा गया था. इस पत्र में इन मुख्यमंत्रियों से आग्रह किया गया था कि आदिवासियों से वनोत्पाद की ख़रीदारी जारी रखी जाए. 

जिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को यह पत्र लिखा गया था उसमें उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, असम, आंध्र प्रदेश, केरल, मणिपुर, नागालैंड, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड शामिल हैं. 

सरकार की तरफ़ से यह दावा भी किया गया है कि महामारी के दौरान आदिवासी आबादी की जीविका को सुचारू बनाए रखने के लिए मंत्रालय ने वनोत्पाद का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ा दिया था. 

इसके अलावा जिन वनोत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाता है उसकी सूचि भी बढ़ा दी गई थी. इस व्यवस्था के तहत जंगल से मिलने वाले 37 उत्पाद इस सूचि में जोड़ दिए गए हैं. 

केन्द्र सरकार ने कहा कि राज्य सरकारों ने महामारी के दौरान क़रीब 157.51 करोड़ रूपये का वनोत्पाद आदिवासियों से ख़रीदा. केन्द्र सरकार की तरफ़ से यह दावा भी किया गया है कि जनजातीय कार्य मंत्रालय ने साल 2020 – 21 के लिए 35 लाख आदिवासी छात्रों प्रीमियर मैट्रिक और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप के लिए 1986.31 करोड़ रूपये दिए हैं. 

सरकार ने कहा है कि यह पैसा सीधा आदिवासी छात्रों के खाते में भेजा गया है. मंत्रालय का कहना है कि उसका मक़सद महामारी के दौरान आदिवासी बच्चों की शिक्षा को प्रभावित होने से बचाने में इस कदम ने मदद की है. 

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