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आदिवासियों के बीच बहुविवाह का चलन सबसे आम – NFHS

देश में बहुविवाह का प्रचलन 15-49 आयु वर्ग में अधिक है. हालांकि भारत में बहुपत्नी विवाह 2005-06 के 1.9 फीसदी से घटकर 2019-20 में 1.4 फीसदी हो गया है. लेकिन अधिक आदिवासी आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्यों में बहुविवाह करने वाली महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है.

बहुविवाह या एक से अधिक पत्नी रखने की प्रथा केवल मुसलमानों के लिए भारत में वैध है. लोकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के आंकड़े एक अलग ही तस्वीर पेश करते हैं.  NFHS की रिपोर्ट के मुताबिक एक से अधिक पत्नी रखने का प्रचलन देश के अन्य समुदायों में भी है. हालांकि, सभी में एक से अधिक शादी या एक से अधिक बीवी रखने के मामलों में कमी आई है.

2019-20 के NFHS डेटा से पता चलता है कि बहुविवाह का प्रचलन मुसलमानों में 1.9 फीसदी, हिंदुओं में 1.3 फीसदी और अन्य धार्मिक समूहों में 1.6 फीसदी था. मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज के फैकल्टी की तरफ से किए गए 2005-06, 2015-16 और 2019-20 के तीन NFHS सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में यह बात सामने आई है.

कुल मिलाकर गरीब, अशिक्षित, ग्रामीण और अधिक उम्र वालों में बहुपत्नी विवाह अधिक पाया गया. हाल ही में प्रकाशित शोध संक्षिप्त के लेखकों ने कहा कि इस रिपोर्ट से यह संकेत भी मिलता है कि क्षेत्र और धर्म के अलावा विवाह के इस रूप में सामाजिक-आर्थिक कारकों ने भी एक भूमिका निभाई है. इसमें यह भी बताया गया है कि भारत में बहुविवाह का प्रचलन बहुत कम था और लुप्त हो रहा है.

देश में बहुविवाह का प्रचलन 15-49 आयु वर्ग में अधिक है. हालांकि भारत में बहुपत्नी विवाह 2005-06 के 1.9 फीसदी से घटकर 2019-20 में 1.4 फीसदी हो गया है. अधिक आदिवासी आबादी वाले पूर्वोत्तर राज्यों में बहुविवाह करने वाली महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है. यह मेघालय में 6.1 फीसदी से लेकर त्रिपुरा में 2 फीसदी तक है.

दक्षिणी राज्यों और पूर्व में जैसे बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में उत्तर भारत की तुलना में बहुविवाह का प्रचलन अधिक है.

(Image Credit: TOI)

जाति समूहों की बात करें तो अनुसूचित जनजातियों में सबसे अधिक बहुविवाह प्रचलित है. हालांकि अब इन जातियों में बहुविवाह का प्रतिशत कम होकर 2.4 फीसदी रह गया है. जबकि साल 2005-06 में यह 3.1 फीसदी था. इसके बाद अनुसूचित जाति में बहुविवाह 2005-06 में जो 2.2 फीसदी था वो 2019-20 में कम होकर 1.5 फीसदी हो गया.

इस तरह आदिवासी आबादी के अधिक अनुपात वाले राज्यों में बहुविवाह का प्रचलन सबसे अधिक है. हालांकि, व्यापक पैटर्न में अपवाद हैं. उदाहरण के लिए, जहां अधिकांश राज्यों में हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में बहुविवाह का प्रचलन अधिक है, वहीं छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे राज्यों में सच्चाई इसके उलट है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की स्टडी में चिह्नित किए गए 40 ज़िलों को बहुविवाह सबसे अधिक देखा गया. महिला साक्षरता पर जनगणना के आंकड़ों के साथ-साथ कुल आबादी में धार्मिक समूहों और आदिवासियों की हिस्सेदारी के साथ इस सूची का विश्लेषण करने से पता चलता है कि बहुविवाह के अधिक प्रसार के कारण के रूप में किसी एक पृष्ठभूमि की विशेषता को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

जहां मेघालय का पूर्वी जयंतिया हिल्स ज़िला 20 फीसदी बहुविवाह के साथ पहले स्थान पर है वहीं मध्य प्रदेश का अनूपपुर ज़िला 3.9 फीसदी के साथ 40वें स्थान पर है.

बहुविवाह के संबंध में धार्मिक समूहों की बात करें तो ‘अन्य’ समूह (2.5 फीसदी) में सबसे कॉमन था. इसके बाद ईसाई (2.1 फीसदी), मुस्लिम (1.9 फीसदी) और हिंदू (1.3 फीसदी) आते हैं. ईसाइयों के बीच एक से अधिक विवाह का उच्च प्रसार पूर्वोत्तर राज्यों के कारण हो सकता है. इन राज्यों में यह प्रथा अधिक आम है.

सर्वे में यह भी पाया गया कि उच्च शैक्षणिक योग्यता रखने वालों की तुलना में बहुपत्नी विवाह सबसे गरीब महिलाओं और बिना औपचारिक शिक्षा वाली महिलाओं में अधिक प्रचलित थे.

हालांकि, बहुत अधिक साक्षरता दर वाले तमिलनाडु और पूर्वोत्तर के जिलों में बहुविवाह का उच्च प्रसार दर्शाता है कि यह सिर्फ साक्षरता के बारे में नहीं है. एनएफएचएस के सभी सर्वे में, 35 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं में बहुविवाह की संख्या अधिक थी.

(प्रतिकात्मक तस्वीर)

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