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आंध्र प्रदेश के इन आदिवासी गांवों में पेंशन, राशन की पहुंच बेहद मुश्किल

रविकामथम मंडल की जी शांति इकलौती ऐसी लड़की है जिसके पास स्मार्टफोन है. लेकिन बावजूद इसके वो नेटवर्क न होने के चलते स्मार्टफोन का लाभ अच्छे से नहीं उठा सकती है. वह साप्ताहिक बाजार में अपने मोबाइल पर इंफोटेनमेंट वीडियो लोड करने के लिए 20 किलोमीटर तक चल के जाती है.

कूडा राजू (Kuda Raju) का हर महीने का पहला हफ्ता ऊपर चढ़ने और नीचे पहाड़ियों पर उतरने में बितता है. वह एक वालंटियर हैं, जो आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अनकापल्ली जिले (Anakapalli district) के थाडीपर्थी (Thadiparthi) टोले में लोगों के घर तक पेंशन और अन्य सरकारी सेवाएं पहुंचाते हैं लेकिन उनकी अधिकांश ट्रेकिंग फोन सिग्नल की तलाश में ही बीतती है.

राज्य के पूर्वी घाटी में बसे ठाडिपर्थी और सैकड़ों अन्य पहाड़ी की चोटी के आदिवासी बस्तियों में मोबाइल और इंटरनेट सिग्नल मृगतृष्णा बने हुए हैं. लेकिन जैसा कि हर सरकारी लाभ आधार (Aadhaar) से जुड़ा हुआ है, ऐसे में राजू और लाभार्थियों को सिग्नल पकड़ने और बायोमेट्रिक्स को प्रमाणित करने के लिए कभी-कभी एक घंटा चलना पड़ता है.

बूढ़े और जवान समान रूप से पीड़ित हैं

जेड जोगमपेटा हैमलेट (Z Jogampeta hamlet) में कोर्रा चिलाकम्मा का घर जंगल में 20 किलोमीटर दूर स्थित आसपास के दसियों गांवों के लिए पहला “लाइव” स्थान है. जब टाइम्स ऑफ इंडिया की टीम ने उबड़-खाबड़ इलाके में ऊंचे स्थान पर बने सुनसान घर का दौरा किया तो 69 वर्षीय जेम्मली बंगरम्मा अपने बरामदे में आराम कर रही थीं.

बीमार जेम्मली बंगरम्मा यह सुनिश्चित करने के लिए खुद अपने घर से लगभग 5 किलोमीटर दूर पैदल चली कि वह तीसरे महीने चलने वाले पेचीदा नेटवर्क के चलते अपनी वृद्धावस्था पेंशन खो न दे.

रायपडू गांव के सीदरी भास्कर राव ने कमजोर कनेक्टिविटी के बारे में शिकायत की है. राव ने कहा, “हम अभी भी एक आपातकालीन कॉल के लिए इस गांव से 2 किलोमीटर दूर एक लैंडलाइन फोन पर निर्भर हैं.”

सीदरी भास्कर राव, एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह से संबंधित हैं. उन्होंने कहा कि ज्यादातर आदिवासियों ने कभी फोन का इस्तेमाल नहीं किया है. ब्राउजिंग, मैसेजिंग, स्ट्रीमिंग, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स उनकी बेतहाशा कल्पना से परे है.

रविकमथम मंडल के अजयपुरम के पांगी विजय कुमार ने कहा कि इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी के कारण क्षेत्र की मूल जनजातियां आधुनिक सभ्यता से दूर हैं. “न सिर्फ मेरी पीढ़ी बल्कि हमारे बच्चे भी शिक्षा और टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल में स्पष्ट रूप से पिछड़ रहे हैं.”

आदिवासी संगठन आंध्र प्रदेश गिरिजन संघम 5वीं अनुसूची साधना समिति के अध्यक्ष के. गोविंदा राव ने भी कहा कि डिजिटल विभाजन के कारण इन हिस्सों में लोग बदतर स्थिति में जी रहे हैं.

बिस्तर पर पड़ा हुआ आदमी या बुजुर्ग व्यक्ति अपनी पेंशन का लाभ उठाने के लिए कई मील की यात्रा कैसे कर सकते हैं? बच्चे तकनीकी उपकरणों पर हाथ नहीं रख सकते या कंप्यूटर नहीं सीख सकते हैं. साल 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी जब पीक पर थी तो इन बस्तियों के बच्चे कनेक्टिविटी के अभाव में शिक्षा की ओर नहीं बढ़ सके.

रविकामथम मंडल की जी शांति इकलौती ऐसी लड़की है जिसके पास स्मार्टफोन है. लेकिन बावजूद इसके वो नेटवर्क न होने के चलते स्मार्टफोन का लाभ अच्छे से नहीं उठा सकती है. वह साप्ताहिक बाजार में अपने मोबाइल पर इंफोटेनमेंट वीडियो लोड करने के लिए 20 किलोमीटर तक चल के जाती है.

शांति ने कहा, “मैं अपने गाँव के 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी शैक्षिक वीडियो को देख नहीं सकती या न्यूज नहीं देख सकती. टेक्नोलॉजी हमारे लिए एक पराया शब्द और दुनिया है.”

ये सिर्फ कुछ दूर दराज के गांवों के मामले नहीं हैं. बल्कि पुराने विजयनगरम, विशाखापत्तनम, और श्रीकाकुलम जिलों में गुम्मालक्ष्मीपुरम, कोमारदा, जियाम्मावलसा, कुरपुम, चिंतापल्ली, अराकू, जीके वीधी, मुंचिंगिपुत्तु, डुमब्रिगुडा, पेडाबयालु, आदि जैसे मंडलों का भी यही हाल है.

1200 गांवों में टावर जल्द

केंद्र के आंकड़ों से पता चलता है कि नॉर्थ कोस्टल आंध्र प्रदेश के लगभग 1,200 सहित लगभग 1,700 आंध्र गांवों में मोबाइल कनेक्टिविटी की कमी है. यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) का इस्तेमाल करते हुए केंद्र साल के अंत तक राज्य के “आकांक्षी जिलों” के लगभग 1,200 कवर न किए गए गांवों में मोबाइल सेवाएं स्थापित करने का लक्ष्य बना रहा है.

पावतीपुरम-मण्यम के जिला कलेक्टर निशांत कुमार ने कहा कि जिले के लिए 182 नए मोबाइल टावर स्वीकृत किए गए है. उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने मई तक 100 टावरों की स्थापना को पूरा करने की योजना बनाई है. हम उन वन भूमि के मुद्दों को हल करने पर काम कर रहे हैं जहां टावर लगाने की जरूरत है.

इस बीच अल्लूरी सीताराम राजू जिले के 6 लाख आदिवासियों के घर को लगभग 1,000 नए टावर मिलेंगे. इसके केवल 30 प्रतिशत गांवों में वर्तमान में मोबाइल कनेक्टिविटी है.

नई शुरुआत

जिन आदिवासी गांवों को हाल ही में मोबाइल टावर मिले हैं उन्हें उनका लाभ मिलना शुरू हो गया है. मुलकलापल्ली गांव के वाई गंगा राजू ने कहा कि वे अब अपने घरों में आराम से बैठकर फोन पर बातचीत कर सकते हैं और सरकारी सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं. लेकिन वह अपने बच्चों पर टेक्नोलॉजी के प्रभाव को लेकर चिंतित दिखे. उन्होंने कहा कि बच्चे अब मोबाइल गेम और वीडियो पर बहुत समय व्यतीत कर रहे हैं.

वहीं अनंतगिरी मंडल में चीडिवलसा एक और टोला है जिसे हाल ही में एक टावर मिला है. लेकिन यहां के निवासियों का कहना है कि उन्हें कॉल करने के लिए बाहर निकलना पड़ता है क्योंकि सिग्नल की स्ट्रेंथ घर के अंदर खराब होती है.

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