केरल (kerala) के वायनाड (Wayanad district) में आदिवासियों को भूमि आधिकार दिलाने के लिए ज़िला प्रशासन के खिलाफ जनवरी में विरोध प्रदर्शन किया जाएगा
इस विरोध प्रदर्शन में समुदाय के नेता सी के. जानू (C. K. Janu) और सीपीआई (एमएल) रेड स्टार (CPI ML Red Star) सहित अन्य राजनीतिक दल शामिल होंगे.
प्रदर्शनकारियों का आरोप है की सरकार 60,000 एकड़ भूमि (60,000 acres occupied by western companies and land owners) को विदेशी कंपनियों और अन्य भूमि मालिकों से लेने में विफल रही है.
इनकी मांग है की इस भूमि को आदिवासी समुदायों को सौंप दिया जाए. क्योंकि इनका दावा है की ये ज़मीन आदिवासियों की ही है.
आदिवासी गोत्र महासभा के अध्यक्ष जानू ने बताया की आदिवासी समुदाय को विस्थापित करके ज़िले में ब्रिटिश प्लांटटेशन की स्थापना की गई थी.
उन्होंने कहा कि सरकार को अब ये सभी ज़मीन भूमिहीन आदिवासियों को सौंप देनी चाहिए और भूमि स्वामित्व भी आदिवासियों को देना चाहिए.
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इसी संदर्भ में 2019 में राज्य ग्रामीण विकास विभाग द्वारा ये सुझाव दिया गया की इन विदेशी कंपनियों और अन्य भूमि मालिकों से ज़मीन लेन के लिए जिला प्रशासन को सिविल कोर्ट में मुकदमा करना चाहिए.
इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक वायनाड में ऐसे 48 क्षेत्र है, लेकिन जिला प्रशासन ने अभी तक इनमें से एक भी क्षेत्र के भूमि मालिकों के खिलाफ केस दर्ज नहीं किया है.
ये भी पता चला है की 2001 में सरकार द्वारा कई आदिवासी और दलित लोगों को पटाया मेला के तहत भूमि पट्टे दिए गए थे. लेकिन इसमें भी सभी आदिवासियों को भूमि से संबंधित प्रमाण पत्र ही मिले थे, जबकि अन्य लोगों को स्वामित्व पत्र मिले थे.
आदिवासियों को जो भूमि से संबंधित प्रमाण पत्र मिले है, उसके ज़रिए वे भूमि कर तक नहीं दे सकते है. जिसका साफ मतलब है की इन ज़मीनों के बदले वे जरूरत पड़ने पर कर्ज भी नहीं ले सकते हैं.
इसके अलावा जिन आदिवासियों को स्वामित्व पत्र मिला है, उन्हें ये तक नहीं पता की उनकी भूमि जंगल के किस स्थान पर है.
आदिवासी गोत्र महासभा के अध्यक्ष जानू ने ये भी बताया की राज्य के मालाबार के विभिन्न हिस्सों में आदिवासियों को भूमि हक दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इसके अलावा नीलांबुर में विरोध प्रदर्शन को 250 दिन से ज्यादा हो गए हैं.
फिर भी सरकार आदिवासियों के ज़मीन वितरण के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है.
वहीं राजनीतिक पार्टी के वायनाड सचिव के. वी. प्रकाश ने कहा, “ज़िला प्रशासन द्वारा सिविल कोर्ट में कोई केस दर्ज नहीं किया है, जिसके कारण अब कई विदेशी कंपनियां भूमि को गैर आदिवासी लोगों को सौंप रही है.