HomeAdivasi Dailyकेरल: वायनाड में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बनेगा संग्रहालय

केरल: वायनाड में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बनेगा संग्रहालय

आजादी की लड़ाई के दौरान भारतीय आदिवासियों द्वारा किए गए बलिदानों के बारे में बात करने वाले अभी भी कई स्थान मौजूद नहीं हैं. इसलिए भारत सरकार ने देश में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय खोलकर ऐसी साहसी आत्माओं को सम्मानित करने का फैसला किया है.

15 नवंबर 2021 को आदिवासियों के स्वतंत्रता सेनानी के योगदान को सम्मानित करते हुए सरकार ने जनजातीय गौरव दिवस की घोषणा की थी. इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में 10 आदिवासी संग्रहालय बनाने की बात कही थी.

इसी कड़ी में जल्द ही केरल (Kerala) के वायनाड ज़िले (Wayanad District) में आदिवासी संग्रहालय का निमार्ण किया जाएगा.

इस म्यूज़ियम को KIRTADS यानी केरल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ट्रेनिंग एंड डेवलपमेंट स्टडीस ऑफ शेडयूल कास्ट एंड शेडयूल ट्राइब द्वारा बनाया जा रहा है.

1972 में केरल के आदिवासियों के विकास के लिए KIRTADS का निर्माण किया गया था

इसके साथ ही अनुसूचित जनाजाति, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गो के कल्याण के मंत्री के. राधाकृष्णन (K. Radhakrishnan) ने आज म्यूज़ियम की नींव रखी है.

और पढ़ें: आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी

म्यूज़ियम के निर्माण में होगें 16.66 करोड़ खर्च

म्यूज़ियम के निर्माण में 16.66 करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा. साथ ही इसे 20 एकड़ की ज़ामीन में बनाया जा रहा है. इस ज़ामीन को ट्राइबल पुनर्वास विकास मिशन के द्वारा खरीदा गया था.

म्यूज़ियम का निर्माण सुगंधगिरि क्रेडेमॉम परियोजना के तहत किया जाएगा. यह परियोजना 1970 में बनाई गई सबसे बड़ी पुनर्वास परियोजनाओं का एक भाग है. जिसे वायनाड के बंधुआ आदिवासियों के पुनर्वास के लिए बनाया गया था.

दर्द आदिवासियों के लिए भी बनाया गया म्यूज़ियम

पिछले महीने ही जम्मू-कश्मीर के दर्द आदिवासियों की पहचान को बचाए रखने के लिए राज्य के बांदीपुरा जिले में संग्रहालय बनाया गया था. इन आदिवासियों की आबादी बेहद कम बची है.

दर्द आदिवासियों के क्षेत्र में रोज़गार के बहुत कम विकल्प मौजूद है. इसलिए रोज़गार की तलाश में यह आदिवासी अन्य जगहों पर जाकर बस रहे हैं.

ये बात तो सच है की संग्रहालय के निर्माण से आदिवासियों की संस्कृति, उनकी भाषा और पहचान आम लोगों तक पहुंचती है. साथ ही आदिवासी समाज के बारे में और जागरूकता फैलती है.

लेकिन संग्रहालय के निर्माण से आदिवासी समाज के सामने खड़ी अनेकों समस्याओं का समाधान नहीं होता. क्योंकि इन संग्रहालयों से उन्हें रोज़गार का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं करवाया जाता.

इसलिए ऐसा कहना गलत नहीं होगा की आज कुछ संग्रहालयों को छोड़कर बाकी सभी ज्ञान और मनोरंजन का साधान बनकर रह गए हैं.

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