झारखंड प्राकृतिक रूप से जितना सुंदर एवं धनी है उतनी ही यहां की जनता इस सुंदरता एवं धनी होने के कारण पीड़ित एवं शोषित है. झारखंडकी धरती पर 40% से ज्यादा प्राकृतिक खनिज संपदा उपलब्ध हैं जो भारत राज्य में अग्रणी है.
इस क्षेत्र में 25% कोयला का भंडार उपलब्ध है जो इसकी सुंदरता एवं धनाढ्य होने का प्रमाण है. प्रारंभ से ही झारखंड में खनिज संपदा की प्रचुरता का दंश यहां के लोग विस्थापित होकर झेल चुके है और आनेवाले समय में भी झेलेंगे.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि झारखंड जितना संपन्न एवं धनी राज्य है उतनी ही यहां की जनता गरीबी एवं बेरोजगारी, पलायन के दंश से त्रस्त है. प्रतिव्यक्ति आय के हिसाब से झारखंड भारत देश के अन्य राज्यों से काफी पिछड़ा है.
यहां प्रत्येक साल लाखों लोग रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर पलायन करते हैं जो झारखंड की दिशा और दशा को बताने के लिए काफी है. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड भारत में दूसरे सबसे ज्यादा गरीबी वाले राज्यों की सूची में आता है.
इस समस्या को बढ़ाने में सरकार की असफल नीतियां भी है जो यहां के लोगों को गरीबी की पीड़ा झेलने पर मजबूर कर रही है. झारखंड अलग हुए लगभग 22 साल हो गए परंतु इतने सालों में हमारा झारखंड कहां है, किस अवस्था में है इस आंकड़ा का अगर हम अध्ययन करें तो इस का हमें अत्यंत दयनीय एवं चिंतनशील परिणाम प्राप्त होगी.
झारखंड में झारखंडियों के इलाके में खनन के नाम पर विस्थापन जारी है. यह बलिदान सिर्फ आदिवासी के गांव में होता रहा है. उदाहरण के तौर पर हम झारखंड में जितने भी औद्योगिक शहर देख रहे हैं वहां कभी आदिवासियों, मूलवासियों की जमीनी हुआ करती थी.
लेकिन विकास के नाम पर उन्हें अपनी जमीनों से बेदखल करके कहीं जंगलों में विस्थापित करके बसाया गया है. ऐसे शहरों में रांची, बोकारो, धनबाद, हजारीबाग, जमशेदपुर, सराइकेला, रामगढ़ जैसे शहर प्रमुख रूप से हैं जहां पर खनन और विकास के नाम पर क्षेत्र के लोगों को विस्थापित किया गया.
आज ऐसे विस्थापित लोगों की जीवनदशा कैसी है किस अवस्था में है कहां है? इसकी कोई प्रॉपर जानकारी एवं आंकड़े किसी के पास नहीं है. आज हम उसी कड़ी में झारखंड के पलामू प्रमंडल के लातेहार जिले में 32 आदिवासी टाना भगत तथा 5 आदिवासी महिला प्रशासन और डी वी सी कम्पनी का षंडयंत्र के शिकार हो गये.
रांची राजधानी से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक गांव है तुबेद जो (बालूमाथ) लातेहार जिला पलामू प्रमंडल में स्थित है. इस क्षेत्र में कोयला का भंडार पाया जाता है.
इस क्षेत्र में खनन के नाम पर आदिवासियों की जमींन डी वी सी कम्पनी 2014 में डी सी ने एन ओ सी भी दे दी अभी वन विभाग का किलारनेश नहीं मिला है. गांव में विगत 2021 से गांव में खनन करने के बहाने तरह तरह के घटना घट रही है.
गांव में धुमकुडिया की एक योजना पास हुई चूँकि तुबेद उरांव आदिवासी इलाका है इस लिए धूमकुडिया घर की योजना पास हो गयी. उस इलाके के दंबग अन्य समुदाय ने इस योजना पर रोक लगा कर बजरंगबली का झंडा लगा दिया गया.
धूमकुडिया बनाने वाले ने झंडा लगने का विरोध किया. इससे दोनों समुदाय के बीच विवाद शुरू हो गया. गांव में पुलिस आई और झंडा को धूमकुडिया से 10 फिट की दुरी में लगा दिया. उसी दिन तुबेद गांव में कम्पनी ने ग्रामसभा की बैठक बुलाई थी.
जिसकी सुचना गांव के लोगो को नहीं थी गांव वाले ने इस बैठक का विरोध किया तो कम्पनी वाले ने गुंडों से पिटवा दिया इस इन दोनों घटना से को लेकर मंगरा गांव के चोक में घरना दिया गया था. धरने में शामिल लोगों की माँग थी के हमला करने और करवाने वाले को गिरफ्तार करो, सरकारी पदाधिकारी ने सुध तक नहीं ली.
लोगो में रोष हो गया उन्होंने एक आरोप प्रशासन पर यह भी लगाया कि पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों की बातों या समस्याओं के निदान के लिए प्रशासनिक सेवा में लगे लोग उनका सहयोग नहीं करते हैं.
इधर 10 अक्तूबर 2022 को लातेहार में पांचवी अनुसूचित करने के टाना भगत समुदाय के किसान, मजदूर और महिलाएं ने एक रैली का आयोजन किया गया. उस रैली का आयोजन करता अखिल भारतीय टाना भगत समिति के बैनर तले हुआ रैली शांति पूर्ण तरीके से 12 बजे निकली और लातेहार मुख्यालय गयी.
जिसमे जिस 6 गांव धूमकुडिया और झंडा को लेकर विवाद चल था. उस गांव के कम लोग शामिल हुए. लेकिन प्रशासन में मंगरा गांव के लगभग 28 लोगों पर नामजद ऍफ़आईआर कर दिया और गांव में पुलिस की छापामारी शुरू कर दी.
गांव में डर का माहौल बना दिया गया 28 लोग गांव छोड़ कर भाग गए और कम्पनी वाले ने उस मंगरा गांव में रोड बनाने का काम चालू कर दिया.
5 महिला सहित 32 टाना भगत की गिरफ्तारी कर जेल में बंद कर दिए गए है जिसमे अधिकतर 60 साल की महिला व पुरुष है. इधर 10 अक्तूबर 2022 रैली शांति पूर्ण थी. रैली में शामिल लोगों ने पांचवी अनुसूचित लागू करने की मांग लेकर गए थे.
चूँकि पहले ही धूमकुडिया और झंडा विवाद का समाधान प्रशासन के द्वारा नहीं किया गया इन सभी मामले साथ में जुड़ते चले गए प्रशासन पर उठते लगे सवालो से बचने के लिए शांति पूर्ण प्रदर्शन कर रहे टाना भगत की रैली पर आंसू गैस, व लाठी चार्ज कर लोगो को जबरन व्यवहार न्यायलय बचने के लिए भाग कर जाना पड़ा और प्रशासन ने उनपर ताला लगने और गेट तोड़ने का आरोप लगा कर उन प्रदर्शनकारी उपर लाठी से दमभर मरकर जेल में डाल दिया गया.
टाना भगत हिंसा से दूर रहते हैं
टाना भगत, यह नाम सुनते ही आज भले ही माथे पर सफ़ेद टीका लगाए हुए , सफ़ेद वस्त्र धारण किए हुए और सुबह शाम घंटी के साथ अपनी दिनचर्या प्रारंभ करने जैसे कार्य की करने लोगो की एक मानचित्र मस्तिष्क पर छा जाती है.
भले टाना भगत समुदाय की जीवन शैली अलग हो, लेकिन भारत के स्वतंत्रता के इतिहास मे इनके पूरे समुदाय को समर्पित रूप से गांधीवादी विचारधारा के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए जाना जाता है.
महात्मा गांधी स्वाधीनता के जिन आंदोलनों के कारण आज पूजनीय हैं, टाना भगत समुदाय ने अहिंसा के उस पाठ को पहले ही पढ़ लिया था. महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में टाना भगत समुदाय के लोगों ने गांधी के कहने पर अहिंसक रूप से अपनी भागीदारी दी थी और देश की स्वतंत्रता में अपनी अहम भूमिका निभाई थी.
झारखंड में टाना भगत समुदाय की आबादी विशेष रूप से दक्षिणी छोटानागपुर के गुमला जिले और लातेहार जिले में पाई जाती है.
यह समुदाय अपने सरल स्वभाव एवं सादगी के लिए जानी जाता है. इनका रहन-सहन,खान-पान अत्यंत सरल एवं सादा होता है. ये मांस,मछली एवं मदिरापान का सेवन नहीं करते हैं एवं अपने समूह में ही रहना पसंद करते हैं. यह समुदाय पूर्ण रूप से प्राकृतिक सेवक होते हैं. उनपर सरकारी तन्त्र और कम्पनी का हमला पर जाँच होना चाहिए.
(आलोका कुजुर एक जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता हैं. झारखंड की सभी मसलों पर पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख लगातार छपते हैं. वे राँची में रहती हैं.)