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राजस्थान: भारत आदिवासी पार्टी (BAP) क्यों TSP क्षेत्रों को शव सम्मान अधिनियम के दायरे से बाहर करना चाहती है

भारत आदिवासी पार्टी(BAP) ने कहा कि आदिवासी इलाकों में न्याय मांगने के लिए शवों के साथ विरोध प्रदर्शन करने की सदियों पुरानी परंपरा है अगर मौत अप्राकृतिक है तो आर्थिक दंड भी हो सकता है. आदिवासी लोग इसे 'मोटाना' या 'ब्लड मनी' कहते हैं.

राजस्थान (Rajasthan) की नवगठित भारतीय आदिवासी पार्टी (Bharat Adivasi Party) ने राज्य सरकार से इस हफ्ते राज्यपाल द्वारा हस्ताक्षरित राजस्थान ऑनर ऑफ डेथ बॉडी एक्ट (Rajasthan Honour of Death Bodies Act) के दायरे से जनजातीय उपयोजना (Tribal Sub Plan) क्षेत्रों को छूट देने का आग्रह किया है.

पार्टी ने कहा है कि यह कानून आदिवासी आबादी की पारंपरिक प्रथाओं और भारतीय संविधान की अनुसूची V की भावना के खिलाफ है. आदिवासी पार्टी अधिनियम के उस प्रावधान पर आपत्ति जता रही है जो मांगें पूरी कराने के लिए शव का इस्तेमाल कर विरोध प्रदर्शन करने पर प्रतिबंध लगाता है.

भारत आदिवासी पार्टी ने कहा कि आदिवासी इलाकों में न्याय मांगने के लिए शवों के साथ विरोध प्रदर्शन करने की सदियों पुरानी परंपरा है अगर मौत अप्राकृतिक है तो आर्थिक दंड भी हो सकता है. आदिवासी लोग इसे ‘मोटाना’ या ‘ब्लड मनी’ कहते हैं.

इस परंपरा में हिंसक झड़पें और उन परिवारों का पलायन देखा गया है जो बल्ड मनी का भुगतान करने में विफल रहते हैं. अगर कोई परिवार शव लेने से इनकार करता है तो अधिनियम में दो साल तक की कैद का प्रावधान है.

सागवाड़ा विधायक और बीएपी के राष्ट्रीय सदस्य राम प्रसाद डिंडोर ने कहा, “सीआरपीसी और आईपीसी जैसी मौजूदा आपराधिक संहिताओं का इस्तेमाल देश भर में आदिवासियों को दबाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया गया है. वे न्याय की भावना देने में विफल रहे हैं. खासकर जब अपराधी गैर-आदिवासी हो. भले ही हर ग्राम पंचायत पर पुलिस स्टेशन खोले जाएं लेकिन समाज में व्याप्त पूर्वाग्रह आदिवासियों को न्याय नहीं मिलने देते. हमारी पार्टी का स्पष्ट मत है कि यह अधिनियम हमारे सांस्कृतिक लोकाचार का उल्लंघन करता है और संविधान द्वारा हमें दिए गए अधिकारों के खिलाफ है. इसे कड़े विरोध का सामना करना पड़ेगा.”

शव के साथ विरोध प्रदर्शन करके ब्लड मनी की प्रथा को उचित ठहराते हुए बीएपी के एक अन्य राष्ट्रीय सदस्य और विधायक, चोरासी राजकुमार रोत ने कहा, “क्या एक पत्नी जिसके पति की हत्या कर दी गई थी मौजूदा कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से न्याय मांग सकती है जो उसे न तो मुआवजे की गारंटी देती है और न ही न्याय की? उसे शव के साथ विरोध करने और अपने परिवार के समर्थन से मुआवजा मांगने का पूरा अधिकार है. आप हमारी गहरी जड़ें जमा चुकी पारंपरिक व्यवस्था का अपराधीकरण कैसे कर सकते हैं?”

यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने विधानसभा में कहा था कि 2014 से 2018 के बीच परिवारों द्वारा अपने परिजनों के शवों के पास बैठकर विरोध प्रदर्शन करने की 82 घटनाएं सामने आईं, जिसके परिणामस्वरूप 30 पुलिस मामले सामने आए.

वहीं कार्यकर्ताओं का कहना है कि वास्तविक आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं क्योंकि ऐसे कई मामले दर्ज ही नहीं किए जाते हैं.

दरअसल, राजस्थान विधानसभा ने 20 जुलाई को राजस्थान मृत शरीर सम्मान विधेयक, 2023 पारित किया था. जो मृत व्यक्तियों के रिश्तेदारों द्वारा सड़कों या सार्वजनिक स्थानों पर शवों के साथ बैठने पर विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाता है. बिल में कहा गया है कि ऐसे कृत्य अपराध बन जाएंगे और पांच साल तक कैद की सजा हो सकती है. इस बिल में यह भी सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि प्रत्येक मृत व्यक्ति को सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार का अधिकार हो.

क्या है राजस्थान शव सम्मान विधेयक, 2023?

विधेयक के मुताबिक, प्रत्येक मृत व्यक्ति को अपने समुदाय या धर्म के रीति-रिवाज के मुताबिक जितना जल्दी होगा सभ्य और समय पर अंतिम संस्कार का अधिकार होगा. इसमें कहा गया है कि मृतक के परिवार के सदस्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संस्कार जल्द से जल्द किया जाए, जब तक कि निकटतम रिश्तेदार का आगमन न हो या अन्य “असाधारण कारण” न हों.

विधेयक में कहा गया है कि अगर स्थानीय पुलिस अधिकारी या कार्यकारी मजिस्ट्रेट के आदेश के बावजूद परिवार के सदस्य अंतिम संस्कार नहीं करते हैं तो ये सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा.

बिल के मुताबिक, अगर मृत व्यक्ति का परिवार शव के साथ विरोध प्रदर्शन करता है तो जिला प्रशासन को कार्रवाई करने का अधिकार है. इसमें कहा गया है कि ऐसे मामलों में, प्रशासन के पास “शव को जब्त करने” और अंतिम संस्कार करने का कानूनी अधिकार है, जिससे लंबे समय तक सार्वजनिक प्रदर्शन को रोका जा सके.

नए बिल में निर्धारित अपराध एवं सजा के मुताबिक, अगर परिवार का कोई भी सदस्य धारा 5 के प्रावधानों के अनुसार शव को अपने कब्जे में नहीं लेता है तो उसे एक अवधि के लिए कारावास, जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना या दोनों.

बिल अलग-अलग अपराधों के लिए छह महीने, एक साल, दो साल और पांच साल की कैद की सजा का प्रावधान करता है. जैसे किसी शव को कब्जे में लेने से इनकार करना, परिवार के किसी सदस्य या परिवार के सदस्य के अलावा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा शव के साथ प्रदर्शन करना और ऐसे प्रदर्शनों और विरोध प्रदर्शनों के लिए सहमति देना.

क्यों लाया गया बिल?

विधानसभा में संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने बताया कि सरकार ये बिल इसलिए लेकर आई है क्योंकि कुछ लोग शव रखकर ‘अनुचित मांगें’ करते हैं और ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं.

उनका कहना था कि हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आए. जब परिवार के सदस्यों ने शव को लेने से मना कर दिया और मुआवजे और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांगें रखने की मांगें रखते हैं.

शांति धारीवाल ने विधेयक पारित होते समय कहा था, ”किसी शव को सात-आठ दिन तक रखना और नौकरी या पैसा मांगना लोगों की आदत बनती जा रही है.”

धारीवाल के मुताबिक, पिछली बीजेपी सरकार (2014-2018) के दौरान, 82 ऐसे मामले दर्ज किए गए और 30 पुलिस मामले दर्ज किए गए. मंत्री ने कहा कि मौजूदा सरकार (2019-2023) के कार्यकाल में यह संख्या बढ़कर 306 मामलों तक पहुंच गई है.

धारीवाल ने कहा था, ”अब तक ऐसा कोई अधिनियम नहीं था और किसी अन्य अधिनियम के संबंध में कोई प्रावधान नहीं था.”

राज्य सरकार के मुताबिक राजस्थान मृत शरीर सम्मान विधेयक, 2023 का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान लावारिस शवों के डेटा के रखरखाव और संरक्षण के लिए है.

बिल में कहा गया है कि लावारिस शव की आनुवंशिक डेटा जानकारी डीएनए प्रोफाइलिंग के माध्यम से प्राप्त की जानी चाहिए और सावधानी से सौंपी जानी चाहिए, क्योंकि लावारिस शवों की पहचान का पता लगाने के लिए इसकी जरूरत हो सकती है.

विधेयक पर बीजेपी ने क्या कहा था?

विपक्ष के नेता राजेंद्र राठौड़ ने विधेयक की तुलना आपातकाल के दौरान भारत रक्षा अधिनियम (DRI) और आंतरिक सुरक्षा रखरखाव अधिनियम (MISA) से की और कहा था कि हमारी संस्कृति ऐसी है कि कोई भी व्यक्ति अपने परिजनों के शव के साथ तब तक विरोध नहीं करता जब तक कि पूर्ण अन्याय या अत्याचार न हुआ हो. आप भावनाओं से खेल रहे हैं. इस कानून से कोई नहीं डरेगा और हम इसका सामना करने के लिए तैयार हैं.

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