कोरोना की दूसरी लहर ने भारत में हाहाकार मचा दिया था और इसके कहर से दूरदराज के इलाकों में बसे आदिवासी भी अछूते नहीं रहे थे. इन हालातों में मदुरै के एक आदिवासी समुदाय ने खुद को अभी तक इस वायरस से बचा कर रखने में कामयाबी हासिल की है.
बोडिनायकन्नूर थेनी के मुथुवाकुडी गांव के मुथुवन आदिवासियों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया. इसके अलावा यह भी माना जा रहा है कि उनके खाने पीने में भी स्थानीय फसल और फल शामिल हैं. इनके इस्तेमाल करने से उन्हें शायद कोविड -19 महामारी का अच्छी तरह से मुकाबला करने में मदद मिली है.
35 परिवारों वाले मुथुवाकुडी गांव में कोई भी व्यक्ति अब तक कोरोना संक्रमण की चपेट में नहीं आया है. कोट्टाकुडी पहाड़ियों के ऊपर स्थित मुथुवाकुडी गांव एक आरक्षित जंगल में है.
इस गांव के रहने वाले एक आदिवासी थंगप्पन ने कहा, “ताजे पानी के केकड़े और तुर्की बेरी (Turkey Berries) हमारे सामान्य पारंपरिक भोजन हैं. इन चीज़ों को हम कोविड -19 महामारी शुरू होने के बाद से नियमित रूप से लेते थे ताकि खांसी और सर्दी से बचा जा सके.”
तुर्की बेरी या ‘सुंदक्कई’ को तला हुआ या बस साग के साथ मिलाकर खाया जाता था. मुथुवन आदिवासी महिलाओं ने कहा कि कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपना ज्यादातर समय घर के अंदर बिताया और अदरक, हल्दी और काली मिर्च का काढ़ा तैयार किया और इम्यूनिटी मजबूत करने के लिए इसका सेवन किया.
आदिवासी भी लॉकडाउन के दौरान कोरोना की पीड़ा को कम करने के लिए जंगल में भोजन की तलाश में अंदर चले गए थे.
एक अन्य ग्रामीण रामदुरई ने कहा कि मुथुवाकुडी गांव ने बस्ती के सभी लोगों के साथ एक बैठक की और फैसला किया कि वे शहरों में बाहर नहीं जाएंगे और साथ ही बाहर से किसी को भी यहां प्रवेश नहीं करने देंगे.
उन्होंने बताया, “अगर हम राशन और सब्जी खरीदने जाते हैं तो हम लक्षणों की पहचान करने के लिए व्यक्ति को दो दिनों के लिए एक झोपड़ी में अलग-थलग कर देते हैं.”
करीब 25 मुथुवन आदिवासियों ने शुक्रवार को संचार विभाग, मदुरै कामराज विश्वविद्यालय और राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संचार परिषद, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा अपने गांव में आयोजित एक जागरूकता शिविर में भाग लिया.
एमकेयू के संचार विभाग के प्रमुख डॉ एस नागराथिनम ने कहा कि आदिवासियों का ज्ञान हमेशा समुदायों को अत्यंत कठिन परिस्थितियों यहां तक कि महामारी से उबरने में मदद करता है.
उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य आदिवासी समुदाय के साथ बातचीत करना और कोविड-19 के बारे में जागरूकता पैदा करना था. हालांकि उनकी समझ और ज्ञान को देखकर आश्चर्य हुआ.”
कार्यक्रम के दौरान एक चिकित्सक डॉ जे इलामुरुगन ने कहा कि आदिवासियों की नई स्थिति को समझने की इच्छा उल्लेखनीय है. मुथुवाकुडी आदिवासियों में 18 वर्ष से अधिक आयु के सभी लोगों ने पहले ही कोविड-19 टीकाकरण भी ले लिया था.
उम्मीद है कि इन आदिवासियों को दूसरा टीका समय पर लग जाएगा. इसके बाद यह गांव खुद को सुरक्षित महसूस कर सकता है. कोविड वैक्सीन के दोनों टीके लगने के बाद गांव के लोग अपना जीवन फिर से सामान्य तरीके से चला पाएंगे.