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नासिक: वन अधिकार कानून को बेहतर तरीके से लागू करने को लेकर सड़कों पर उतरे सैकड़ों आदिवासी

महाराष्ट्र के नासिक में सैकड़ों आदिवासियों ने ज़िला क्लेक्टर के दफ्तर के बाहर वन अधिकार अधिनियम को ढंग से लागू करना, बेहतर ऋण सुविधाएं और आदिवासी दिहाड़ी मज़दूरों के लिए पेंशन स्कीम जैसी मांगों को लेकर मोर्चा किया गया था.

मंगलवार को महाराष्ट्र के नासिक में सैकड़ों आदिवासियों ने ज़िला क्लेक्टर के दफ्तर के बाहर वन अधिकार अधिनियम (Forest rights act) को ढंग से लागू करना, बेहतर ऋण सुविधाएं और आदिवासी दिहाड़ी मज़दूरों के लिए पेंशन स्कीम जैसी मांगों को लेकर मोर्चा किया था.

इस मोर्चा का नाम ‘आक्रोश मोर्चा’ रखा गया है. इसका नेतृत्व सीपीआई (एम) नेता और कलवान के पूर्व विधायक, जीवा पांडु गावित और सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (CITU) द्वारा किया गया है.

यह मोर्चा ईदगाह मैदान के पास अनंत कन्हेरे मैदान (गोल्फ क्लब) से शुरू किया गया था. जिसके बाद सभी आदिवासी एनडी पटेल रोड, शालीमार और एमजी रोड से होते हुए कलेक्टोरेट तक पहुंचे.

इस मार्च के कारण प्रभावित क्षेत्रों की सड़कों पर लगभग एक घंटे तक जाम रहा. जिसकी वज़ह से आने-जाने में लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.

मोर्चा में मौजूद गावित ने बताया की हमारी मांग है की वन अधिकार कानून को तेजी से और बेहतर तरीके से लागू किया जाए. इसके साथ ही राज्य में सूखा घोषित करना, फसल बीमा कंपनियों को किसानों के नुकसान की भरपाई करना, न्यूनतम मजदूरी 26,000 रुपये प्रति माह और नियमित करना इत्यादि आदिवासी मांगों में शामिल है.

इसके अलावा उन्होंने बताया की पिछली बार आदिवासियों ने अपनी मांगें रखने के लिए मुंबई तक मोर्चा किया था. हालांकि अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है.

वे तबतक इस मोर्चा को बंद नहीं करेंगे, जबतक सरकार द्वारा इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जाती.

वहीं CITU के पदाधिकारी सीताराम थोंबरे और दिनेश सतभाई ने कहा की आज भी ऐसे कर्मचारी हैं जिन्हें न्यूनतम वेतन नहीं दिया जाता और वे उद्योगों में जान जोखिम में डालकर नौकरी करने को मजबूर हैं.

इसके अलावा, वरिष्ठ नागरिकों और किसानों को भी पेंशन नहीं मिलती है, और हम चाहते हैं कि सरकार मुद्दों पर ध्यान दें.

क्या है वन अधिकार अधिनियम

वन अधिकार अधिनियम आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधन संबंधित उन अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये आदिवासी विभिन्न प्रकार की जरूरतों के लिए निर्भर थे. इन जरूरतों में आजीविका, निवास और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक आवश्यकताएं शामिल है.

यह अधिनियम आदिवासी और जंगल में रहने वाले समुदायों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को दूर करने के लिए बनाया गया था. हालांकि इस अधिनियम के अंतर्गत आदिवासियों को मालिकाना अधिकार नहीं दिए जाते. अर्थात आदिवासी जरूरत पड़ने पर यह जमीन किसी अन्य वयक्ति को नहीं बेच सकता है.

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