HomeAdivasi Dailyकर्नाटक: आदिवासियों के पुनर्वास का प्लान तैयार, लेकिन कितना होगा फ़ायदा

कर्नाटक: आदिवासियों के पुनर्वास का प्लान तैयार, लेकिन कितना होगा फ़ायदा

यहां तक ​​कि चंगड़ी की मिट्टी भी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, और जंगलों से बस्ती की निकटता ने मानव-पशु संघर्ष को बढ़ावा दिया है. दूर-दराज़ के इलाक़े और घने जंगल के बीच बसा यह गाँव मुख्य धारा से बिलकुल कटा हुआ था, और इसीलिए बुनियादी सुविधाओं से कई सालों से वंचित है.

कर्नाटक के एम.एम. हिल्स वन्यजीव अभयारण्य में स्थित चांगड़ी गांव के आदिवासी समुदायों के पुनर्वास के लिए मास्टरप्लान तैयार हो गया है, और इसे सोमवार को मंजूरी के लिए सरकार के पास भेजा जाएगा.

वन और राजस्व विभागों के अधिकारियों ने इसके लिए हनूर के पास वैशम्पल्या में पुनर्वास के लिए जॉइंट सर्वे पूरा कर लिया है. इस सर्वे के तहत चंगडी के परिवारों को दी जाने वाली ज़मीन की सीमा भी तय कर ली गई है. अब बस सरकार की मंज़ूरी का इंतज़ार है.

नई बस्ती में सुविधाएं

नई बस्ती में पशुपालन गतिविधियों के लिए पर्याप्त जगह के अलावा एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आंगनवाड़ी और प्राथमिक विद्यालय भी होगा.

नई जगह पर खेती को बढ़ावा, बांधों और रेनवॉटर हार्वेस्टिंग प्रणालियों का इस्तेमाल, तालाब और बागवानी गतिविधियों पर आदिवासियों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए ज़ोर दिया जाएगा.

हालांकि सरकार ने शुरू में पुनर्वास के लिए चिक्कल्लूर का सुझाव दिया था, लेकिन वैशम्पल्या को समुदाय के लिए बेहतर माना गया.

आधिकारिक आंकड़े कहते हैं कि आदिवासियों के अलावा लगभग 200 परिवार पीढ़ियों से चंगडी में रह रहे हैं. लेकिन दुर्गम इलाक़ा होने की वजह से इन्हें कई योजनाओं और सरकार के विकास कार्यक्रमों का फ़ायदा नहीं मिलता.

यहां तक ​​कि चंगड़ी की मिट्टी भी खेती के लिए उपयुक्त नहीं है, और जंगलों से बस्ती की निकटता ने मानव-पशु संघर्ष को बढ़ावा दिया है. दूर-दराज़ के इलाक़े और घने जंगल के बीच बसा यह गाँव मुख्य धारा से बिलकुल कटा हुआ था, और इसीलिए बुनियादी सुविधाओं से कई सालों से वंचित है.

बस्ती के निवासी पिछले कई सालों से स्थानांतरण की मांग कर रहे थे, और 2018 में इस मांग ने थोड़ी तेज़ी पकड़ी. इसको मंज़ूरी देने वाली सरकारी अधिसूचना 2020 में जारी कर दी गई थी. लेकिन कोविड महामारी ने प्रक्रिया में देरी कर दी.

सरकार के लिए परियोजना की लागत

इस परियोजना के लिए लगभग 178.9 हेक्टेयर ज़मीन की ज़रूरत है, और इसके लिए सरकार को लगभग 35 करोड़ रुपए ख़र्च करने होंगे. अधिकारियों का कहना है कि अगर यह पुनर्वास सफ़ल होता है, तो यह पडुसलनाथा और टोक्केरे समेत दूसरे गांवों के पुनर्वास का खाका बनेगा.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments