HomeAdivasi Dailyकेरल के जंगल में आदिवासी बच्चों को मिली उम्मीद की टैबलेट

केरल के जंगल में आदिवासी बच्चों को मिली उम्मीद की टैबलेट

जंगल के अंदर टावरों की स्थापना एक कठिन कार्य था. सीमेंट सहित निर्माण सामग्री को सिर पर ढोया गया था क्योंकि टावर स्थानों तक चार पहिया वाहनों से भी नहीं पहुंचा जा सकता था.

केरल के मलप्पुरम जिले में निलंबूर जंगल के अंदर वेट्टिलकोल्ली आदिवासी बस्ती के बच्चों के चेहरों पर खुशी है. क्योंकि उन्होंने शनिवार को जन शिक्षण संस्थान (JSS) के अधिकारियों से अपने टैबलेट लिए. साथ ही लंबी दूरी की वाई-फाई तकनीक की बदौलत पहली बार पलक्कायम, वेट्टिलकोल्ली और अंबुमला आदिवासी बस्तियों को हाई-स्पीड इंटरनेट भी मिला है.

दरअसल मार्च 2020 में पूरे देश की तरह इन आदिवासी बस्तियों में भी कोविड की रोकथाम के लिए स्कूलों को बंद किया गया है. लेकिन स्कूल बंद के बाद से ही यहाँ के बच्चों ने न ही अपनी किताबें देखी हैं और न ही कुछ सीखा है. इसकी दो वजहें थी उनके पास ऑनलाइन क्लास के लिए न तो मोबाइल फोन था और न उनकी बस्तियों में इंटरनेट कनेक्शन था.

जंगल के अंदर तीन अलग-अलग आदिवासी बस्तियों अंबुमला, वेट्टिलकोल्ली और पलक्कायम में रहने वाले 142 छात्रों ने भी डेढ़ साल की शिक्षा खो दी क्योंकि वे ‘इंटरनेट कवरेज क्षेत्र से बाहर’ रहते थे.

लेकिन अगस्त के आखिरी हफ्ते में इंटरनेट, टैबलेट और स्मार्ट टेलीविजन सेट मिलने के बाद उनकी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई है.

अब वेट्टिलकोल्ली के लोगों का कहना है कि इंटरनेट ने उनकी बस्तियों में बहुत सारे बदलाव लेकर आया है. बच्चों के माता-पिता का कहना है कि बच्चों ने डेढ़ साल बाद कुछ सीखना शुरू किया है. उन्हें एक साथ पढ़ते हुए देखना बहुत राहत की बात है.

आदिवासी छात्र जन शिक्षण संस्थान (JSS) के मलप्पुरम जिला अध्याय द्वारा शुरू की गई एक परियोजना का लाभ उठा रहे हैं. जो तीन आदिवासी बस्तियों में ग्रामीण आबादी को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए भारत सरकार की पहल है.

मलप्पुरम जिले में जन शिक्षण संस्थान के परियोजना निदेशक वी उमर कोया ने कहा, “जेएसएस ने इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी के बारे में सुनने के बाद तीनों बस्तियों में इंटरनेट की सुविधा प्रदान करने का फैसला किया. इसके बाद हमने लंबी दूरी की वाईफाई कनेक्टिविटी देने के लिए वायनाड स्थित प्रौद्योगिकी कंपनी, C4S के साथ भागीदारी की. हमें इसके लिए कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन हम इस परियोजना को जल्दी से पूरा करके खुश हैं.”

जेएसएस ने परियोजना को पूरा करने के लिए 7 लाख रुपये खर्च किए. जिसमें राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने 5 लाख रुपये का योगदान दिया. जबकि जन शिक्षण संस्थान ने बाकी 2 लाख रुपये का योगदान दिया.

इसके साथ ही राज्यसभा सदस्य और मलप्पुरम जिले में जेएसएस के अध्यक्ष पी वी अब्दुल वहाब ने 50 टैबलेट का योगदान दिया. जबकि मालाबार गोल्ड ने 10 टैबलेट दिए जिसकी बदौलत छात्रों की पहुंच अब ऑनलाइन कक्षाओं तक है.

परियोजना के प्रौद्योगिकी भागीदार C4S ने लंबी दूरी के वाईफाई कनेक्शन को सक्षम करने के लिए पांच टावर लगाए. बेस स्टेशन गाँवों से करीब 25 किमी दूर नीलांबुर में इंदिरा गांधी मॉडल आवासीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में स्थित है. बेस स्टेशन में 100 एमबीपीएस (प्रति सेकंड मेगाबिट्स) वाईफाई कनेक्शन है.

लंबी दूरी के वाईफाई कनेक्शन की विशेषता ये है कि यह तीनों कॉलोनियों में 100 एमबीपीएस कनेक्टिविटी सुनिश्चित करता है. C4S के प्रबंध निदेशक रोशी टी फल्गुणन ने कहा कि हमने निर्बाध बिजली आपूर्ति और इंटरनेट पहुंच सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त सौर पैनल स्थापित किए हैं.

जंगल के अंदर टावरों की स्थापना एक कठिन कार्य था. सीमेंट सहित निर्माण सामग्री को सिर पर ढोया गया था क्योंकि टावर स्थानों तक चार पहिया वाहनों से भी नहीं पहुंचा जा सकता था.

उमर कोया ने कहा, “हमें बस्तियों के निवासियों से बहुत समर्थन मिला जिसके बिना हम परियोजना को पूरा नहीं कर सकते थे. यहां तक कि C4S ने भी मुफ्त में हमारी मदद की.”

पलक्कयम कॉलोनी के रहने वाले अर्थशास्त्र में स्नातक सुनील पी नियमित रूप से तीनों कॉलोनियों का दौरा करते हैं. उनका कहना है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी ने कम समय में आदिवासी बस्तियों में बहुत सारे बदलाव ले आया है.

नीलांबुर जंगल के अंदर पलक्कयम, वेत्तिलाकोल्ली और अंबुमाला आदिवासी बस्तियां चलियार ग्राम पंचायत का हिस्सा हैं जो मलप्पुरम के जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर उत्तर में स्थित है.

पनिया जनजाति से संबंधित पच्चीस परिवार (158 सदस्य) वेट्टिलकोल्ली और अंबुमला बस्तियों में रहते हैं. जबकि मुदुवान जनजाति के 34 परिवार और कट्टुनिका जनजाति के 16 परिवार (154 लोग) पलक्कायम बस्ती में रहते हैं.

सिर्फ चार पहिया वाहन ही यहाँ खतरनाक जंगल के रास्ते से गुजर सकते हैं जहां अक्सर हाथी और जंगली सूअर आते हैं. महामारी से पहले आदिवासी विकास विभाग छात्रों को स्कूल तक पहुँचाता था.

अन्य दो आदिवासी बस्तियों की तुलना में वेट्टिलकोल्ली एक गरीब गांव है. यहां के सभी 25 परिवार तिरपाल से ढके जर्जर मकानों में रहते हैं. बच्चे कुपोषित होते हैं क्योंकि वे दिन में सिर्फ एक बार ही खाना खा सकते हैं.

फील्ड कोऑर्डिनेटर सुनील ने बताया कि बच्चे दिन में एक बार ही हरी मिर्च के साथ चावल का दलिया खाते हैं. लेकिन जन शिक्षण संस्थान अब बच्चों को नाश्ता उपलब्ध कराने की योजना बना रहा है. परियोजना निदेशक उमर कोया ने कहा कि मुफ्त नाश्ता योजना छात्रों को अधिक स्वस्थ बनाएगी और उन्हें अपनी पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी.

साथ ही टेलीमेडिसिन सेवाएं शुरू करने की योजना और कॉलोनियों में जंगल से इकट्ठा शहद और औषधीय पौधों के बिक्री के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी पाइपलाइन में है.

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