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आदिवासियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए हस्तक्षेप की मांग की

पत्र में आग्रह किया गया है कि मणिपुर में दो महीने से भी अधिक समय से चल रही हिंसा को रोकने के लिए तुरंत सभी संभव प्रशासनिक और कानूनी उपाय किए जाएं ताकि वहां के आदिवासी और मैतेई समुदायों और विशेषकर महिलाओं की जान-माल की रक्षा की जा सके.

मणिपुर में ढ़ाई महीने से ज्यादा वक्त से हिंसा हो रही है. लेकिन इतने लंबे वक्त से जारी हिंसा पर देश को जागने के लिए एक वीडियो का इंतजार था और वो 19 जुलाई को पहली बार सामने आया.

इस खौफनाक वीडियो जिसमें सैकड़ों नौजवानों के हुजूम के बीच बिना कपड़े के दो महिलाओं को पकड़ कर ले जाया जा रहा है. उनके जिस्म के साथ बर्बरता हो रही है. खबरों के मुताबिक इनमें से एक के साथ कथित तौर पर सामूहिक बलात्कार भी हुआ है.

इस वीडियो के सार्वजनिक होने से पहले ज़्यादातर लोगों को मणिपुर में चल रही जातीय और साम्प्रदायिक हिंसा की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. इस वीडियो के वायरल होने के बाद से देशभर में खासा आक्रोश है और जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं.

इस बीच देश भर के लगभग 90 आदिवासी लेखकों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर मणिपुर में शांति बहाल करने में हस्तक्षेप की मांग की है.

भारत के करोड़ों आदिवासी लोगों की ओर से लिखते हुए ऑल इंडिया फर्स्ट नेशन (स्वदेशी/आदिवासी) लेखक सम्मेलन के सदस्यों ने राष्ट्रपति, जो “इस विशाल और सांस्कृतिक रूप से विविध देश की संवैधानिक प्रमुख” हैं से इस बड़े दुख की घड़ी में मदद की अपील की है.

संगठन की राष्ट्रीय परिषद की सदस्य वंदना टेटे ने पत्र साझा करते हुए बताया, “26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 88 लेखकों ने पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. जिसकी एक प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजी गई है.”

पत्र में कहा गया है, ”हम देश भर के आदिवासी लेखक और आम लोग पिछले दो महीनों से मणिपुर में जारी हिंसा से हैरान और दुखी हैं. इस दुख को और बढ़ाने के लिए 4 मई का एक वीडियो जो कुछ दिन पहले सामने आया था जिसमें दो कुकी आदिवासी महिलाओं को बंधक बना लिया गया था और उनके साथ क्रूरता की गई थी, इसने न सिर्फ भारत के 700 से अधिक आदिवासी समुदायों को बल्कि पूरे समाज को भी झकझोर कर रख दिया है.”

पत्र में आगे कहा गया है, “हमारा मानना है कि महिलाओं के साथ की गई क्रूरता सिर्फ एक अपराध नहीं है बल्कि आत्मा को बड़ा घाव देने वाला एक बुरा कृत्य है. दुख की बात है कि यह घाव अक्सर उन समाजों द्वारा दिया जाता है जिनका इतिहास ऐसे सांप्रदायिक दंगों और युद्धों से भरा है और जो खुद को आदिवासियों की तुलना में अधिक सभ्य और सुसंस्कृत मानते हैं.”

पत्र में याद दिलाया गया, “संविधान सभा में हमारे सर्वोच्च नेता जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था कि नए लोकतांत्रिक भारत में आदिवासियों को समानता और शांति के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए क्योंकि वे ही भारत के निर्माता और मूल निवासी हैं.”

पत्र में कहा गया है, “आदिवासी लोग दुनिया की सबसे पुरानी गणतांत्रिक व्यवस्था के निर्माता और वाहक हैं. हम भारत के आदिवासी लोग नए भारत के संविधान को स्वीकार कर रहे हैं क्योंकि अब यह ‘लोकतंत्र’ पर चलने का संकल्प ले चुका है.”

इसके अलावा पत्र में आरोप लगाया गया है कि आजादी के बाद से आदिवासी लोगों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित किया गया है. साथ ही आदिवासी हितों की रक्षा के लिए संविधान में शामिल पांचवीं और छठी अनुसूची के प्रावधानों को आज तक पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है.

पत्र में आगे कहा गया है, “जब आदिवासी लोग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित होते हैं और सरकार तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं तो उन्हें ऐसी बर्बर कार्रवाइयों और क्रूरता का सामना करना पड़ता है. हम भारत के आदिवासी साहित्यकार इस अमानवीय बर्बरता की कड़ी निंदा करते हैं और आपसे आदिवासी महिलाओं के खिलाफ किए गए इस जघन्य अपराध के सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आग्रह करते हैं.”

पत्र में आग्रह किया गया है कि मणिपुर में दो महीने से भी अधिक समय से चल रही हिंसा को रोकने के लिए तुरंत सभी संभव प्रशासनिक और कानूनी उपाय किए जाएं ताकि वहां के आदिवासी और मैतेई समुदायों और विशेषकर महिलाओं की जान-माल की रक्षा की जा सके.

झारखंड के सीएम सोरेने ने भी राष्ट्रपति को लिखा पत्र

इससे पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने भी मणिपुर में हो रही हिंसा को लेकर राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को पत्र लिखा है. हेमंत सोरेन ने अपने पत्र में हिंसा प्रभावित मणिपुर में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार पर दुख व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति से पूर्वोत्तर के इस राज्य में शांति सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया.

सीएम सोरेन ने आगे कहा कि देश मणिपुर में आदिवासियों के साथ “बर्बर तरीके” का व्यवहार नहीं होने दे सकता. मणिपुर में जिस तरह से क्रूरता हो रही है उसके खिलाफ अगर कोई चुप्पी साधे हुए है तो वो भी एक अपराध है. इसलिए मैं आज मणिपुर राज्य में जारी हिंसा पर भारी मन और गहरी पीड़ा के साथ आपको पत्र लिखने को मजबूर हूं.

उन्होंने आगे कहा कि मणिपुर बीते दो महीने से अधिक समय से जल रहा है, वहां से हिंसा के दिल दहला देने वाले वीडियो सामने आ रहे हैं. मणिपुर में जो हो रहा है वो लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन है.

मणिपुर की घटना को अमेरिका ने क्रूर और भयानकबताया

मणिपुर में 2 महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के वीडियो पर दुनियाभर से प्रतिक्रिया आ रही है. अब अमेरिका ने भी इस मामले पर चिंता व्यक्त की है.

अमेरिका ने घटना को ‘क्रूर और भयानक’ बताते हुए समावेशी समाधान की अपील की है. अमेरिकी विदेश विभाग के एक प्रवक्ता ने कहा कि वो भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में 2 महिलाओं को निर्वस्‍त्र घुमाने वाले वीडियो की रिपोर्ट पर खासा चिंतित है और पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करता है.

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, “अमेरिका मणिपुर हिंसा का शांतिपूर्ण और समावेशी समाधान चाहता है. सभी को साथ लेकर विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए.”

अमेरिका ने भारत सरकार से अपील करते हुए कहा कि वो सभी लोगों, घरों और पूजा स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित करे और मानवीय जरूरतों का जवाब दे.

ब्रिटेन की संसद में मणिपुर पर चर्चा

वहीं मणिपुर का मुद्दा ब्रिटेन की संसद में भी उठ चुका है. ब्रितानी सांसद और धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की विशेष दूत फियोना ब्रूस ने ब्रिटेन की संसद में मणिपुर की हिंसा का मुद्दा उठाया है.

ब्रिटेन की संसद में बोलते हुए फियोना ब्रूस ने दावा किया कि मणिपुर में हिंसा में सैकड़ों चर्च जला दिए गए हैं. उन्होंने कहा कि मणिपुर में हुई हिंसा सोची-समझी साज़िश है.

फियोना ब्रूस ने कहा, “मई के बाद से ही सैकड़ों चर्च जला दिए गए हैं, कई बिलकुल नष्ट कर दिए गए. सौ से अधिक लोग मारे गए हैं और पचास हज़ार से अधिक शरणार्थी हैं. न सिर्फ चर्च बल्कि स्कूलों को भी निशाना बनाया गया. इससे साफ है कि ये सब योजना के तहत किया जा रहा है और धर्म इन हमलों के पीछे बड़ा फ़ैक्टर है.”

ब्रूस ने आगे कहा, “इस सबके बावजूद इस बारे में बहुत कम रिपोर्टिंग हो रही है. वहां लोग मदद की गुहार लगा रहे हैं.”

फियोना ब्रूस की टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिसमें कहा गया है कि भारतीय सरकार को मणिपुर में शांति बहाली के लिए अधिक संख्या में सैन्य बल तैनात करने चाहिए ताकि आदिवासी गांवों की सुरक्षा हो सके. इस रिपोर्ट में हिंसा के धार्मिक आज़ादी पर हुए असर की विस्तृत जांच करने की मांग भी की गई है.

EU की संसद ने पारित किया था प्रस्ताव

इससे पहले 11 जुलाई, 2023 को फ्रांस के स्ट्रासबुर्ग में यूरोपीय संसद के सांसदों ने मणिपुर में हो रही हिंसा पर प्रस्ताव पारित किया था. इसमें भाजपा के नेताओं पर नफरती भाषण देने और केंद्र सरकार पर विभाजनकारी नीति लागू करने का आरोप लगाया गया था.

प्रस्ताव में सरकार से मणिपुर में इंटरनेट बहाल करने का भी आग्रह किया गया था और यूरोपीय संघ को भारत के साथ मानवाधिकारों पर बातचीत करने की अपील की गई थी.

अमेरिकी राजदूत ने कहा था- घटना दिल दुखाने वाली

भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने कहा था, “मणिपुर में जारी हिंसा भारत का आंतरिक मामला है लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा था, जब भी इस तरह की घटना होती है तो मानवीय पीड़ा होती है और हमारा दिल टूट जाता है. चाहे वो हमारे पड़ोस में हो, दुनियाभर में हो या जहां हम रह रहे हैं वहां हो.”

6 जुलाई को दिए एक अन्य बयान में गार्सेटी ने मणिपुर मामले पर मदद की पेशकश की थी.

ग्लोबल मीडिया में भी चर्चा

दरअसल, कुकी समुदाय की महिलाओं का परेशान करने वाला वीडियो सामने आने के बाद एक बार फिर दुनियाभर के मीडिया का ध्यान मणिपुर की तरफ गया है. ग्लोबल मीडिया में भी अब मणिपुर के हालात पर रिपोर्ट किया जा रहा है.

अमेरिकी मीडिया संस्थान सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मणिपुर के परेशान करने वाला वीडियो सामने आया है जिसमें भीड़ दो महिलाओं को नग्न करके उनका जुलूस निकाल रही है.

सीएनएन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भले ही ये घटना 4 मई की हो लेकिन गिरफ़्तारियां वीडियो के सामने आने के बाद ही हुई हैं.

ये वीडियो घटना के दो महीने बाद आया है. हिंसा शुरू होने के बाद मणिपुर में इंटरनेट बंद कर दिया गया था.

वहीं न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मणिपुर में यौन हिंसा की घटना को सामने आने में दो महीनों का समय लगा, जिसकी एक वजह राज्य में इंटरनेट बंद होना भी है.

अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि हिंसक नस्लीय झड़पों के दौरान जानकारी के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट बंद करना सरकार की रणनीति बनता जा रहा है.

अखबार लिखता है, ऐसे में जब बुधवार को दो महिलाओं को नग्न किये जाने और उनका जुलूस निकाले जाना का वीडियो सामने आया तो पूरा देश हैरान रह गया. इससे तनाव और बढ़ गया और एक बार फिर से ध्यान मणिपुर में जारी संघर्ष की तरफ़ गया.

अखबार लिखता है कि वीडियो आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पहली बार मणिपुर के हालात के बारे में सार्वजनिक टिप्पणी की.

इसके अलावा ब्रिटेन के अखबार गार्डियन ने भी मणिपुर के हालात पर एक लेख प्रकाशित किया है.

गार्डियन ने ताजा हालात को समझाते हुए लिखा है कि मणिपुर में नस्लीय हिंसा का इतिहास भारत की 1947 में मिली आज़ादी से भी पुराना है. अखबार लिखता है कि ताजा हिंसा से पहले भी मैतेई और कुकी समुदायों के बीच कई बार हिंसा हो चुकी है.

मणिपुर में 3 मई से मैतेई और कुकी समूहों के बीच हिंसा हो रही है. मैतेई अधिकतर हिंदू हैं जबकि कुकी आदिवासी अधिकतर ईसाई हैं. मणिपुर हाई कोर्ट के एक विवादित फैसले के बाद दोनों समुदाय आमने-सामने हैं. ढाई महीने बाद भी मणिपुर के हालात सामान्य नहीं हुए हैं.

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