मंगलवार को दिल्ली में राष्ट्रीय ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Tribal Research Institute) का उद्घाटन किया गया. गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने इस संस्थान की शुरुआत करते हुए कहा कि यह संस्थान राष्ट्र निर्माण में योगदान करेगा.
यह संस्थान आदिवासी संस्कृति और विरासत को बचाने और बढ़ाने का काम करेगा. इसके अलावा इस संस्थान का काम अहम आदिवासी मुद्दों की पहचान और उन पर शोध करना होगा.
यह संस्थान देश के दूसरे संस्थानों को जोड़ कर अकादमिक, कार्यकारी और विधायिका से जुड़े आदिवासी मसलों पर शोध का काम करेगा. यह संस्थान राज्यों में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (TRI) के प्रोजेक्ट्स की निगरानी भी करेगा.
इसके साथ साथ इस संस्थान का काम आदिवासी मामलों के मंत्रालय को नीतिगत मसलों पर जानकारी उपलब्ध कराएगा. इसके साथ साथ राज्यों में आदिवासी कल्याण विभागों को आदिवासी समुदायों से जुड़े अध्ययन और ऐसे कार्यक्रमों में इस संस्थान की भूमिका होगी.
इस संस्थान का काम आदिवासियों के सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ साथ आदिवासी समुदायों से जुड़े ज़रूरी आँकड़े जुटाना होगा. इसके साथ ही यह संस्थान राष्ट्रीय स्तर पर एक ट्राइबल म्यूज़ियम स्थापित करने की रूपरेखा तैयार करेगा.
इस ट्राइबल म्यूज़ियम में आदिवासी संस्कृति और विरासत को एक छत के नीचे प्रदर्शित करने की कोशिश होगी.

एक अच्छी पहल है
आदिवासी समुदायों से जुड़े मसलों पर शोध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक संस्थान की स्थापना निश्चित ही यह बताती है कि इस विषय में सरकार गंभीर है. इस संस्थान का जो लक्ष्य (mandate) बताया गया है वह भी महत्वपूर्ण है.
आदिवासी मामलों का मंत्रालय राज्यों में आदिवासी शोध संस्थानों (Tribal Research Institute) की स्थापना करता है. इसके अलावा मंत्रालय इन संस्थानों को आर्थिक मदद भी करता है.
इन संस्थानों का काम राज्य के आदिवासी समुदायों के बारे में सामाजिक-आर्थिक विषयों पर शोध करना है. यह एक बेहद ज़रूरी काम है जो आदिवासियों के विकास के साथ साथ उनकी संस्कृति और भाषा को बचाने के लिए ज़रूरी है.
देश में अभी भी ज़्यादातर आदिवासी भाषाओं की स्क्रिप्ट नहीं है. आदिवासी समुदायों में से कई समुदाय के लोग तेज़ी से शहरों की तरफ़ बढ़े हैं. इस प्रक्रिया का एक अच्छा पहलू यह है कि उनको मुख्यधारा में शामिल होने का मौक़ा मिला है.

लेकिन इस प्रक्रिया में उनकी संस्कृति के कई पहलुओं का लोप होता जाता है. क्योंकि कोई उसे रिकॉर्ड नहीं कर रहा है.
इसके अलावा आदिवासी इलाक़ों और समुदायों से जुड़े ज़रूरी आँकड़ों का अभाव रहता है. इससे आदिवासी इलाक़ों के लिए विकास योजनाओं और दूसरे कार्यक्रमों की रूपरेखा बनाने में मुश्किल होती है.
इसके साथ ही क्योंकि योजनाओं और कार्यक्रमों के पीछे ठोस जानकारी और आँकड़ों का विश्लेषण नहीं होता है तो इनके परिणाम या तो मामूली रहते हैं या फिर बिलकुल ही नहीं मिल पाते हैं.
इस लिहाज़ से राष्ट्रीय स्तर पर एक ट्राष्ट्रीय ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Tribal Research Institute) की स्थापना का स्वागत होना ही चाहिए.
कड़वा अनुभव और बड़ी चुनौती
संसद में आदिवासी मसलों पर कम ही चर्चा होती है. लेकिन जब भी चर्चा होती है तो यह बात बार-बार सामने आती है कि देश की इस आबादी का जितना अध्ययन होना चाहिए था उतना नहीं हो रहा है.
किसी आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में रखा जाए, या फिर किस समुदाय को इस सूचि से निकाल दिया जाए, इसकी चर्चा संसद के लगभग हर सत्र में होती है.
इस चर्चा में पता चलता है कि ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट (Tribal Research Institute) की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका आदिवासियों के विकास और कल्याण में बनाई गई है.
लेकिन अफ़सोस की एक या दो संस्थानों को छोड़ दें तो ज़्यादातर में नाम के लिए भी काम नहीं होता है. हमें पिछले 6-7 साल में कई बार अलग अलग राज्यों के ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट जाने का मौक़ा मिला.
लेकिन एक दो जगहों को छोड़ कर हर जगह निराशा ही हाथ लगी. राष्ट्रीय स्तर पर बनाए गए इस शोध संस्थान के काम में यह भी जोड़ा गया है कि वो राज्य के आदिवासी शोध संस्थानों के काम पर भी निगरानी रखेगा.
इस काम को यह संस्थान तभी बेहतर तरीक़े से कर पाएगा जब ख़ुद राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों पर अच्छे शोध करेगा.
इसलिए मेरी नज़र में यह एक बेहतरीन शुरूआतें है, बशर्ते यह अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाए.