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कैसे एक आदिवासी पार्टी दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी जिलों में राजनीतिक समीकरण बदल रही

भाजपा राजस्थान विधानसभा चुनावों में स्पष्ट विजेता के रूप में उभरी और 200 विधानसभा क्षेत्रों में से 115 पर जीत हासिल की. लेकिन वह डूंगरपुर और बांसवाड़ा में नौ सीटों में से केवल दो ही जीत सकी.

इस महीने की शुरुआत में भाजपा ने राजस्थान में आगामी लोकसभा चुनावों के लिए 15 उम्मीदवारों की घोषणा की. राजस्थान एक ऐसा राज्य जहां पिछले दो आम चुनावों में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने सभी 25 संसदीय सीटें जीती हैं.

भाजपा द्वारा नामित उम्मीदवारों में अनुभवी आदिवासी राजनेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय भी शामिल हैं, जो पिछले महीने कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो गए थे. महेंद्रजीत को बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नामित किया गया है.

वर्तमान में बांसवाड़ा संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व भाजपा सांसद कनकमल कटारा कर रहे हैं, जिन्हें इस बार पार्टी के उम्मीदवार चयन प्रक्रिया में नजरअंदाज कर दिया गया है.

कई बार विधायक और पूर्व सांसद रहे, मालवीय राज्य में अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली पिछली कांग्रेस सरकार में मंत्री थे.

1990 के दशक से कांग्रेस से जुड़े रहे मालवीय ने 2008 से लगातार चार बार बांसवाड़ा जिले के बागीदौरा विधानसभा क्षेत्र से जीत हासिल की.

राजस्थान में पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करने के बावजूद मालवीय ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए बागीदौरा सीट 41,000 से अधिक वोटों से जीती थी.

ऐसे में भाजपा को उम्मीद है कि क्षेत्र में अच्छा खासा प्रभाव रखने वाले मालवीय को शामिल करने से उसकी बांसवाड़ा लोकसभा सीट पर लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने की संभावना बढ़ जाएगी.

भाजपा में शामिल होने के बाद, मालवीय ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे बागीदौरा सीट खाली हो गई.

मालवीय इससे पहले 1998 में बांसवाड़ा से कांग्रेस सांसद रह चुके हैं.

दक्षिणी राजस्थान की ST सीटों पर बीजेपी का खराब प्रदर्शन

तो फिर भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद कटारा, जिन्होंने आरएसएस से संबंधित वनवासी कल्याण परिषद के साथ इस क्षेत्र में दशकों तक किया. उनको टिकट देने से इनकार करते हुए स्थानीय मजबूत, कांग्रेस नेता, मालवीय को क्यों शामिल किया और उन्हें बांसवाड़ा से मैदान में उतारा?

इसका जवाब आदिवासी बहुल डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों में भाजपा के हालिया प्रदर्शन से लगाया जा सकता है. जहां सभी नौ विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए आरक्षित हैं.

दरअसल, भाजपा राजस्थान विधानसभा चुनावों में स्पष्ट विजेता के रूप में उभरी और 200 विधानसभा क्षेत्रों में से 115 पर जीत हासिल की. लेकिन वह डूंगरपुर और बांसवाड़ा में नौ सीटों में से केवल दो ही जीत सकी.

बाकी सात निर्वाचन क्षेत्रों में से भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) ने तीन सीटों पर जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस चार निर्वाचन क्षेत्रों में विजयी रही.

बांसवाड़ा लोकसभा सीट, जिसमें डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलों के अंतर्गत आने वाले नौ विधानसभा क्षेत्रों में से आठ शामिल हैं. उसपर वर्तमान में भाजपा का कब्जा होने के बावजूद इसका खराब प्रदर्शन भारत आदिवासी पार्टी के बढ़ते दबदबे को दर्शाता है, जिसने दक्षिणी राजस्थान में राजनीतिक समीकरण बदल दिए हैं.

BAP का उदय

साल 2023 के विधानसभा चुनावों में बाप एक डार्क हॉर्स के रूप में उभरी और उसने डूंगरपुर और बांसवाड़ा जिलो में तीन सीटें जीतीं. ऐसे राज्य में इसे हासिल करना आसान काम नहीं है जहां राजनीति काफी हद तक कांग्रेस और भाजपा के इर्द-गिर्द घूमती है और किसी तीसरी राजनीतिक ताकत के लिए बहुत कम जगह है.

BAP गुजरात स्थित भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) से एक अलग समूह के रूप में उभरा था. वर्तमान BAP के अधिकांश नेता पहले BTP से जुड़े थे.

साल 2018 में बीटीपी ने इस क्षेत्र में दो सीटें जीती थीं. इसके बाद दक्षिणी राजस्थान में स्थानीय आदिवासी नेताओं और बीटीपी नेतृत्व के बीच मतभेद पैदा हो गए, जिसके कारण बीएपी का निर्माण हुआ.

बीएपी का गठन 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले किया गया था और इसे जनजातीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लोकप्रिय समर्थन प्राप्त था. अपने पहले ही चुनावी मुकाबले में BAP ने तीन सीटें – आसपुर, चोरासी और धरियावद जीतीं और दक्षिणी राजस्थान में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के रूप में उभरी.

इन तीन सीटों पर विजयी रहने के अलावा बीएपी उम्मीदवार चार निर्वाचन क्षेत्रों बागीदौरा, डूंगरपुर, सागवाड़ा और घाटोल में दूसरे स्थान पर रहे. वहीं अन्य चार सीटों बांसवाड़ा, गढ़ी, कुशलगढ़ और आदिवासी जिलों डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में तीसरे स्थान पर रहे.

कुल मिलाकर तथ्य यह है कि इनमें से कई सीटों पर बाप को कांग्रेस या भाजपा की तुलना में अधिक वोट मिले. यह क्षेत्र में पार्टी के बढ़ते समर्थन आधार को दर्शाता है, जो आदिवासी आबादी के लिए आरक्षण में वृद्धि और आदिवासी भील समुदाय के लिए एक अलग राज्य जैसे मुद्दों पर निर्भर है.

बाप नेता लोकसभा चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार

बाप के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल रोत ने कहा कि हमें बांसवाड़ा सीट जीतने का पूरा भरोसा है. उन्होंने कहा कि हम राजस्थान में बांसवाड़ा, उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और टोंक-सवाई माधोपुर सहित लगभग छह-सात सीटों पर चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. बीएपी की ताकत देखकर ही बीजेपी ने मालवीय को शामिल किया है.

उन्होंने आगे कहा कि आदिवासी जिलों में कांग्रेस धीरे-धीरे सिकुड़ रही है और बीएपी भाजपा के लिए मुख्य खतरा बनकर उभर रही है. हमारा कैडर 2 लाख मजबूत है और हर गांव में हमारे समर्थक हैं.

रोत ने कहा कि बीएपी वर्तमान में अन्य दलों के साथ गठबंधन पर निर्णय ले रही है.

कांग्रेस की दुविधा और BTP से गठबंधन की बातचीत

दक्षिणी राजस्थान में अपने सबसे बड़े नेता महेंद्रजीत सिंह मालवीय को भाजपा के हाथों खोने के बाद कांग्रेस, जिसने 2023 के विधानसभा चुनाव में बांसवाड़ा और डूंगरपुर के आदिवासी जिलों में अच्छा प्रदर्शन किया था, हालांकि वह हार गई. वो वर्तमान में दुविधा में है और इस क्षेत्र में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर रही है.

कांग्रेस नेता बीजेपी में शामिल होने पर मालवीय की तीखी आलोचना कर रहे हैं.

गोविंद सिंह डोटासरा ने हाल ही में पत्रकारों से कहा था, “उन्हें (मालवीय) भाजपा में स्वीकार नहीं किया जाएगा. हमारे कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उन्हें इतना बड़ा नेता बनाया था और उन्होंने धोखा दिया. वो किसी राजा के पुत्र नहीं थे. वह एक आदिवासी के बेटे थे, जो कांग्रेस के कारण आगे बढ़े, मंत्री बने और उन्हें महत्वपूर्ण विभाग दिए गए.”

उन्होंने आगे कहा कि कार्यकर्ता यह सुनिश्चित करेंगे कि वह लोकसभा चुनाव हारें. वह कांग्रेस कार्यकर्ताओं के कारण नेता थे.

मालवीय के जाने से कांग्रेस को क्षेत्र में बीएपी के साथ संभावित गठबंधन के विकल्प तलाशने पर भी मजबूर होना पड़ा है.

जबकि राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डोटासरा ने कहा कि अन्य दलों के साथ गठबंधन पर कोई भी निर्णय लेने के लिए पार्टी के आलाकमान द्वारा गठित समिति द्वारा लिया जाएगा. राजस्थान कांग्रेस के सूत्रों ने पुष्टि की कि गठबंधन की बातचीत वर्तमान में बीएपी के साथ चल रही है.

हालांकि, कांग्रेस नेता बीएपी के साथ किसी भी संभावित गठबंधन के बारे में चुप्पी साधे हुए हैं. लेकिन सूत्रों ने कहा कि सबसे पुरानी पार्टी के भीतर एक वर्ग बीएपी के साथ संभावित गठबंधन पर गंभीरता से विचार कर रहा है क्योंकि कांग्रेस तीन-तरफा गठबंधन से चूकना नहीं चाहती है.

उस क्षेत्र में जहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था, वहां खुद को, भाजपा और बीएपी को शामिल करते हुए मुकाबला किया.

वहीं भाजपा नेताओं ने कहा कि पार्टी को मालवीय जैसे लोकप्रिय आदिवासी नेता की मदद से बांसवाड़ा सीट एक बार फिर जीतने का भरोसा है.

राजस्थान भाजपा प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने कहा, “महेंद्रजीत मालवीय लगातार चार बार विधायक रहे. वह पहले भी सांसद रहे हैं और उनके परिवार के सदस्य पिछले 25 वर्षों से जिला प्रमुख रहे हैं. कांग्रेस चुनाव हार रही थी लेकिन मालवीय जीत रहे थे. अगर कांग्रेस किसी को चुनाव जिताने में सक्षम होती तो वह राहुल गांधी को अमेठी से जीत दिला सकती थी.”

उन्होंने कहा कि मालवीय जनता के समर्थन वाले नेता हैं और वह कांग्रेस के कारण नेता होने के बजाय यह कांग्रेस थी जो उनके प्रभाव के कारण क्षेत्र में मौजूद थी. मालवीय के कांग्रेस छोड़ने के साथ पार्टी पूरे क्षेत्र से मिट गई है. मालवीय के पार्टी में शामिल होने से भाजपा को फायदा होगा.

साल 2014 में बीजेपी ने राज्य की सभी 25 लोकसभा सीटें जीती थी. वहीं 2019 में पार्टी 24 सीटों पर विजयी रही थी. जबकि राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, जो उस समय उसकी सहयोगी थी और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा थी, ने नागौर संसदीय सीट जीती थी.

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