झारखंड की पारस नाथ पहाड़ी को लेकर विवाद थमता नहीं दिख रखा है. जैन समुदाय के तीर्थस्थल पर केंद्र सरकार के फैसले का विरोध बढ़ता जा रहा है. आदिवासी संगठनों ने झारखंड के गिरिडीह जिले में जैन समुदाय के “चंगुल” से पारसनाथ पहाड़ियों को “मुक्त” करने की अपनी मांग तेज कर दी है.
संथाल आदिवासी संगठन की ओर से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा कि इस फैसले के विरोध में 10 जनवरी को पारसनाथ पहाड़ी के पास हजारों की संख्या में लोग जुटेंगे और सरकार को एक संदेश देंगे. इतना ही नहीं उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी भी दी कि अगर 25 जनवरी तक इस मामले का समाधान नहीं निकला तो 30 जनवरी से बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू में आदिवासी उपवास पर बैठेंगे.
जेएमएम (JMM) के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने सरकार से पारसनाथ पहाड़ी को आदिवासियों के देवता मरांग बुरू बताते हुए यहां पशु बलि की इजाज़त देने की मांग की है. उन्होंने कहा, “विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने कहा आज यह हाल क्यों हुआ उस जगह पर वर्षों से आदिवासी समाज के लोग रह रहे है. लेकिन उस 10 किलोमीटर की परिधि में बलि चढ़ाने से उन्हें रोका जा रहा है. यहाँ तक कि जंगलों से लकड़ी तक नहीं काटने दी जा रही है. जमीन हमारी पहाड़ हमारे और कब्जा किसी और का यह अब नहीं चलेगा.”
उन्होंने साफ किया कि झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा समेत पांच राज्यों के आदिवासी समुदाय सरकार के इस फैसले के खिलाफ कड़ा विरोध प्रदर्शन करेंगे.
दरअसल जैन समुदाय के विरोध के बाद गुरुवार को केंद्र सरकार ने पारसनाथ पहाड़ियों में पर्यटन को बढ़ावा देने के झारखंड सरकार के कदम पर लगा दी थी. जैन समुदाय ने यह आशंका जताई थी कि अगर यहाँ पर पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा तो लोग इस इलाक़े में मांस-मछली खा सकते हैं.
सरकार के इस फैसले पर आदिवासियों ने नाराजगी जताई है. आदिवासियों का मानना है कि पारसनाथ पहाड़ दरअसल उनके मरांग बुरू यानि सर्वोच्च देवता का स्थान है. आदिवासियों का कहा है कि पारसनाथ धाम को उनके हवाले किया जाना चाहिए.
आदिवासी सेंगेल अभियान के नेता और पूर्व लोक सभा सांसद सालखन मुर्मू ने कहा है कि अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो फिर इस माँग के समर्थन में एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जाएगा. उन्होंने कहा कि इस मामले में दबाव बनाने के लिए उनका संगठन 17 जनवरी को 5 राज्यों के आदिवासी इलाक़ों में धरना आयोजित करेगा.
उधर अंतरराष्ट्रीय संथाल काउंसिल नाम के संगठन के अध्यक्ष नरेश कुमार मुर्मू ने कहा है कि 1956 के गजट और दूसरे दस्तावेज़ों में यह स्पष्ट है कि आज जिसे पारसनाथ धाम के नाम से जाना जाता है वह आदिवासियों के देवता का स्थान है.
इससे पहले अपनी मांगों को लेकर जैन समुदाय ने देश के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन किया था. झारखंड की पारसनाथ पहाड़ियों की सम्मेद शिकारजी चोटी को पर्यटन स्थल घोषित किए जाने के विरोध में कई जैन साधु अनशन पर बैठे थे. ऐसे ही अनशन पर बैठे एक जैन मुनि ने गुरुवार को जयपुर में अंतिम सांस ली. इससे पहले तीन जनवरी को भी सुग्य सागर नाम के एक अन्य साधु ने भूख हड़ताल के दौरान अंतिम सांस ली थी.
मृत साधु के अंतिम संस्कार के दौरान एकत्र हुए जैन मुनियों ने घोषणा की कि सम्मेद सिखरजी को जैनियों का सबसे पवित्र तीर्थ घोषित किए जाने तक आंदोलन जारी रहेगा.