HomeIdentity & Lifeआदिवासियों पर डाला तिरपाल, G20 प्रतिनिधियों से छुपाना था

आदिवासियों पर डाला तिरपाल, G20 प्रतिनिधियों से छुपाना था

इन हरे रंग के पर्दों के पीछे चेंचू जनजाति, कोंडादेवरा और मोदीबांडा समुदाय के करीब 400 लोग रहते है. ये लोग यहां भयानक ग़रीबी यानि लगभग अमानवीय परिस्थितियों में रहते है.

भारत इस साल जी20 (G20) की अध्यक्षता कर रहा है. जिसको लेकर इन दिनों देश के कई शहरों में जी20 की बैठक हो रही है. आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के विशाखापत्तनम (Vishakhapatnam) में भी 28 और 29 मार्च को इस बैठक का आयोजन किया गया. ऐसे में पूरे शहर को सजाया गया. प्रशासन ने शहर के सौंदर्यीकरण के लिए कथित तौर पर 157 करोड़ रुपए खर्च किए.

इस दौरान सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी और कार्यकर्ता ईएएस सरमा (EAS Sarma) ने कुछ तस्वीरें साझा की, जिसने प्रशासन और आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी (Jagan Mohan Reddy) सरकार पर सवाल उठा दिए है.

विशाखापत्तनम शहर के बीचों बीच प्रशासन ने सड़क के दोनों ओर हरे रंग का तिरपाल लगाया है. ऐसा बताया गया है कि यह तिरपाल वहां के झुग्गियों (Slums) में रहने वाले आदिवासियों (Tribals) को छिपाने के लिए लगाया गया.

इस तिरपाल के पीछे करीब 134 परिवार बसे है उनमें से करीब 80 परिवार चेंचू समुदाय (Chenchu community) के हैं. चेंचू समुदाय विशेष रुप से कमजोर जनजाति वर्ग यानी PVTG में शामिल है. ये लोग यहां भयानक ग़रीबी यानि लगभग अमानवीय परिस्थितियों में रहते है.

इन तस्वीरों को साझा कर ईएएस सरमा ने प्रशासन और सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने कहा, “जीवीएमसी (GVMC) यानी ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर पालिका की ये नई नौटंकी है कि यह हवाई अड्डे से शहर तक के मार्ग के किनारे स्थित झुग्गियों को हरा-भरा कर रही है. ये मलिन बस्तियां जीवीएमसी और सरकार की विफलता का एक स्थायी प्रमाण हैं. यहां तक ​​कि जीवीएमसी द्वारा अनुमोदित नवीनतम बजट में, झुग्गी विकास के लिए बजटीय राशि का 40 प्रतिशत प्रदान करने के बजाय, निगम ने ठेकेदार द्वारा संचालित कार्यों के लिए धन आवंटित किया है, जो भ्रष्टाचार की भयावहता को दर्शाता है.”

एएसआर नगर में आदिवासियों को छिपाने के लिए लगाए जा रहा हरा तिरपाल.

कुछ खबरों के मुताबिक इन झु्ग्गियों में रहने वाले लोगों का घर वास्तव में सिर्फ अस्थायी झोंपड़ियाँ हैं जिनमें एस्बेस्टस की छतें और तिरपाल में ढकी लकड़ी की दीवारें हैं. ASR नगर नाम की इस कॉलोनी में 400 से अधिक निवासी हैं.

ये लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर है. खबरों के मुताबिक सुविधाओं के नाम पर इस इलाके में नगरपालिका के 2 पानी के नल है और एक ‘पे एंड यूज’ सार्वजनिक शौचालय है.

जब सौंदर्यीकरण के नाम पर इन झुग्गियों को ढ़का जा रहा था तब लगभग 14 किमी दूर एक लक्ज़री होटल में, दुनिया भर के प्रतिनिधि ‘फाइनेंसिंग सिटीज़ ऑफ़ टुमॉरो: इनक्लूसिव, रेजिलिएंट एंड सस्टेनेबल’ विषय पर विचारों का आदान-प्रदान करने के लिए इकट्ठे हुए.

दो दिवसीय कार्यक्रम में 20 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

झुग्गियों में रहने वाले समुदाय

इन हरे रंग के पर्दों के पीछे चेंचू जनजाति, कोंडादेवरा और मोदीबांडा समुदाय के करीब 400 लोग रहते है. इसमें कोंडादेवरा और मोदीबांडा डीनोटिफाइट घुमंतू समुदाय है जो सामाजिक और आर्थिक रुप से पिछड़े है.

इन लोगों के पास सामुदायिक प्रमाण पत्र नहीं हैं और इसलिए वे किसी भी सरकारी योजना का लाभ उठाने में असमर्थ हैं. इन झुग्गियों में रहने वाले बहुत से निवासी कूड़ा बीनने या अन्य अनौपचारिक कार्यों के माध्यम से अपना जीवनयापन करते हैं.

चेंचू जनजाति, आंध्र प्रदेश में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह (पीवीटीजी) के रूप में वर्गीकृत हैं. आंध्र के नल्लमाला जंगलों में इस जनजाति की अत्यधिक सघन आबादी है. विजग के ASR नगर में रहने वाले चेंचू परिवार 70 साल पहले जंगल छोड़ यहां चले आए थे.

चेंचू दक्षिणी भारत की पहाड़ियों में रहते हैं, मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश राज्य में. अमराबाद पठार की ऊंची श्रंखलाओं मे घने जंगल है में यो लोग बसे हुए है.

आंध्र प्रदेश की चेंचू जनजाति के लोग.

आंध्र प्रदेश के साथ ही इस समुदाय के लोग तमिलनाडु, कर्नाटक और उड़ीसा राज्यों में पाए जा सकते हैं. उनकी मूल भाषा चेंचू ही है. हालांकि कई लोग तेलुगु भी बोलते हैं.

चेंचू अपने जीवनयापन के लिए पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर है. मूल रूप से वे शिकारी और वन उत्पाद इक्ट्ठा करते है. इस समुदाय के पुरुषों को बांस काटने और शहद के संग्रह के विशेषज्ञ माना जाता है.

लेकिन धीरे-धीरे इनके जीने के तरीके में बदलाव देखने को मिलता है. बढ़ती खेती-किसानी ने इन लोगों को जंगलों से बाहर ला दिया है. अब ये लोग किसानों या वन मजदूरों के रूप में काम करते हैं.

सरकारों ने किए वादे, मिला कुछ नहीं

साल 2018 में, पिछली तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) सरकार ने सरकारी आवास योजना के तहत एएसआर नगर में रहने वाले इन लोगों को आंध्र प्रदेश टाउनशिप एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (एपीटीआईडीसीओ) द्वारा निर्मित स्थायी घरों का वादा किया था.

लेकिन जब तक ये मकान आवंटित हो पाते, उससे पहले ही चंद्रबाबू नायडु सरकार ने उन्हें कहीं और रहने के लिए कहा. ऐसे में जहां ये लोग सालों से रह रहे थे वहां इनके अस्थायी घरों को तोड़ दिया गया.

हालांकि लेकिन शहर में वैकल्पिक आवास खोजना एक बड़ी चुनौती थी. इन लोगों के मुताबिक अधिकांश संपत्ति मालिकों द्वारा हमारी संस्कृति, व्यवसाय और भोजन की आदतों को हीन माना जाता है. जो लोग कूड़ा बीनने का काम करते हैं और सूअर का मांस खाते हैं, उन्हें घर कौन देगा?” समुदाय के एक युवक ने कहा.

सरकार से कोई अंतरिम सहायता नहीं मिलने के चलते निवासियों ने अस्थायी संरचनाओं का निर्माण किया जहां वे अब रहते हैं. प्रत्येक परिवार पर लगभग 7,000 रुपये से 10,000 रुपये खर्च होते हैं. यह नई एएसआर नगर कॉलोनी पुरानी, ​​उजड़ी हुई कॉलोनी के स्थल से कुछ ही मीटर की दूरी पर स्थित है.

इसके बाद साल 2019 में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के सत्ता में आने के बाद, आवास परियोजना को कुछ समय के लिए ठप कर दिया गया. जिसको बाद एक बार फिर से निविदाएं आमंत्रित की गईं और ठेकेदार बदल दिया गया. जबकि निर्माण पिछले साल पूरा हो गया था, घरों में अभी भी पानी और बिजली कनेक्शन सहित बुनियादी सुविधाओं का अभाव है.

बार-बार कहने पर भी जब जगह खाली नहीं की तो पर्दों से ढ़क दिया

ASR नगर कॉलोनी के निवासियों का आरोप है कि पिछले छह महीनों में कम से कम तीन बार उन्हें जगह छोड़ने के लिए परेशान किया गया.

ईएएस सरमा के मुताबिक निवासियों को पिछले साल नवंबर में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान और इस साल मार्च के पहले सप्ताह में हाल ही में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (जीआईएस) के लिए जमीन खाली करने के लिए कहा गया था.

ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान निवेशकों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने कहा था कि राज्य की राजधानी को जल्द ही विजग में स्थानांतरित कर दिया जाएगा.

जी-20 बैठक के लिए सजा शहर.

इतना ही नहीं YSRCP सरकार इस शहर को एक प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) हब में बदलने के वादे कर रही है.

विजग के आंध्र विश्वविद्यालय के कुछ विशेषज्ञों ने 2021 के एक अध्ययन में शहर की मलिन बस्तियों में बढ़ती आबादी के लिए तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण को जिम्मेदार ठहराया है.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, शहर की लगभग 41% आबादी झुग्गी निवासियों के रूप में दर्ज की गई थी.

28 मार्च को दो दिवसीय जी20 बैठक शुरू होने से एक दिन पहले जीवीएमसी के अधिकारियों ने एएसआर नगर का दौरा किया और हरी चादरें लगाईं. स्थानीय लोगों के विरोध के बावजूद अधिकारी काम में जुटे रहे.

इस दौरान लोगों ने पूछा, “उन्होंने हमें इन चादरों से क्यों छुपाया? नेता चुनाव के दौरान बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमें पहले से आवंटित मकान दिए जाए. अगर उन्होंने हमें अपना घर दिया होता तो इन सबकी कोई जरूरत नहीं होती.”

जानकारों का मानना है कि जी-20 की बैठक एक बड़ा अवसर थी. इस दौरान सरकार झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों के सम्मान के साथ पुनर्वास कर सकती थी. ऐसा करने के बाद इसे जी-20 बैठक में सफलता की कहानी के रूप में पेश कर सकती थी.

लेकिन इसके उलट सरकार ने इन चादरों के पीछे अपनी नाकामियों को छुपाने की कोशिश की है.

हालांकि ये पहली बार नहीं है जब इस तरह के मामले सामने आए हो. यह एक परिचित कहानी है. साल 2017 में इवांका ट्रम्प की यात्रा के लिए हैदराबाद में भिखारियों को अपराधी बनाने से लेकर 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली में गरीबों को बेदखल करने या छुपाने जैसी खबरें हमने देखी.

बार बार ये देखा गया कि लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को ठीक करने के बजाय विदेशी मेहमानों को आकर्षित करने के लिए शहरों को जल्दबाजी में बनाया गया और उन्हें सजाया गया.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments