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5 सालों में ST, SC और OBC के 19 हजार छात्रों ने उच्च शिक्षण संस्थानों को छोड़ा

सरकार का कहना है कि उनकी तरफ से शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों की सहायता के लिए शुल्क में कमी, अधिक संस्थानों की स्थापना, छात्रवृत्ति, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति को प्राथमिकता देने जैसे कई कदम उठाए गए.

2018 से लेकर अब तक सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) में अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes), अनुसूचित जाति (Scheduled Castes) व अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes) के 19 हजार छात्रों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी. इस बात की जानकारी केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने राज्यसभा में एक लिखित प्रश्न के जवाब में दिया.

दरअसल, तमिलनाडु का प्रतिनिधित्व करने वाली संसद सदस्य तिरुचि शिवा ने सरकार से पिछले पांच वर्षों में IIT, IIM और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों से बाहर होने वाले अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों की संख्या के बारे में पूछा था. वह यह भी जानना चाहती थीं कि “क्या सरकार ने इन उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी, एससी और एसटी छात्रों की उच्च ड्रॉपआउट दर के कारणों के संबंध में कोई अध्ययन किया है.”

शिवा के सवाल के जवाब पर सरकार ने बताया कि 6901 ओबीसी छात्र, 3596 अनुसूचित जाति के और 3949 अनुसूचित जनजाति के छात्र केंद्रीय विश्वविद्यालयों से 2018 से 2023 के दौरान बाहर हुए हैं यानि कि उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है. इसी तरह ओबीसी के 2544 छात्र, 1362 एससी और 538 एसटी छात्रों ने आईआईटी की पढ़ाई बीच में छोड़ दी. इसके अलावा 133 ओबीसी, 143 एससी और 90 एसटी छात्रों ने पिछले पांच वर्षों में आईआईएम जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी.

हालांकि, सरकार का कहना है कि उनकी तरफ से शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए आर्थिक पृष्ठभूमि वाले छात्रों की सहायता के लिए शुल्क में कमी, अधिक संस्थानों की स्थापना, छात्रवृत्ति, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति को प्राथमिकता देने जैसे कई कदम उठाए गए. वहीं अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के छात्रों के कल्याण के लिए ‘आईआईटी में ट्यूशन फीस की छूट सहित कई अन्य उपाय भी किए गए हैं.

भले ही सरकार अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के ड्रॉपआउट का कारण नहीं बता रही है. लेकिन आदिवासी और दलित कार्यकर्ता लंबे समय से कहते आए हैं कि इन समुदायों के छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थानों में सामान्य से ज़्यादा दबाव और भेदभाव का सामना करना पड़ता है. और इसका एक बड़ा नतीजा होता है कि यह छात्र अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देते हैं.

नैशनल इंस्टीट्यूट रैंकिंग में पहले 10 स्थानों में खड़े सात आईआईटी से हुए ड्रॉपआउट के विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ संस्थानों में असमानता ज़्यादा है.

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