HomeLaw & Rightsग़रीबों में भी सबसे ग़रीब आदिवासी (PVTG) की लूटी गई ज़मीन वापस...

ग़रीबों में भी सबसे ग़रीब आदिवासी (PVTG) की लूटी गई ज़मीन वापस मिलेगी

लोधा आदिवासियों में कुपोषण और भुखमरी के हालात हैं. इनको कुछ जीविका कमाने के लिए सरकार ने प्लॉट दिये थे. ये प्लॉट पुलिस लाइन के पास थे और उनकी क़ीमत बढ़ गई थी. 2.5 एकड़ में फैले इन प्लॉटों की फ़िलहाल बाज़ार भाव से क़ीमत 6 करोड़ से ज़्यादा बताई जा रही है. लालच और मुनाफ़े में अंधे लोगों ने इन आदिवासियों की यह ज़मीन छल से हड़प ली.

यह पश्चिम बंगाल में ग़रीबों में भी सबसे ग़रीब आदिवासियों की ज़मीन लूटने और फिर उस ज़मीन को वापस पाने के संघर्ष की कहानी है. राज्य के जंगलमहल इलाक़े में झारग्राम ज़िला है. यहाँ पर लोधा आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं. 

लोधा आदिवासियों को सरकार ने विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति घोषित किया है. यानि सरकार यह मानती है कि इन आदिवासियों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. इसलिए इनके विकास और कल्याण के लिए सरकार की तरफ़ से ख़ास योजनाएँ बनाई जाती हैं. 

लोधा आदिवासियों को अंग्रेज़ों ने जन्मज़ात अपराधी समुदाय घोषित किया था. आज़ादी के बाद इस कानून को रद्द कर दिया गया और लोधा जनजाति भी विमुक्त यानि डीनोटिफाइड जनजाति बन गई.

लेकिन हमने यह पाया कि आज भी लोधा जनजाति के लोगों के प्रति एक पूर्वाग्रह आस पास के लोगों में मिलता है. इसलिए इन्हें अपनी बस्तियों के आस-पास काम मिलना बड़ा मुश्किल होता है.

मजबूरन इन आदिवासियों को काम की तलाश में दूर निकलना पड़ता है. लगातार काम की तलाश में भटकते रहने की वजह से इस समुदाय में शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों ही प्रभावित होता है. 

झारग्राम में 2003 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने लोधा जनजाति के लोगों को जीविका कमाने के लिए 2.5 एकड़ ज़मीन का एक टुकड़ा दिया. 

ज़मीन का यह टुकड़ा झारग्राम पुलिस लाइन के पास है और फिलहाल इसकी कीमत 6 करोड़ से ज़्यादा बताई जाती है. 

आदिवासियों की कीमती ज़मीन पर नज़र गड़ाए लोगों ने स्थानीय प्रशासन में कुछ लोगों से मिल कर इस ज़मीन के रिकॉर्ड में हेराफेरी कर दी.

उन्होंने आगे कहा, “मैंने ख़ुद इस पूरे मामले की जाँच की है. मैंने यह पाया कि यह शिकायत पूरी तरह से सही है कि आदिवासी परिवारों की ज़मीन हड़प  ली गई है और रिकॉर्ड में हेराफेरी भी हुई है. मैंने आदेश दिया है कि ज़मीन के रिकॉर्ड को ठीक किया जाए. इसके साथ ही आदिवासी परिवारों को उनकी ज़मीन वापस दिलाने की प्रक्रिया भी शुरू हो गई है.”

इस मामले में दर्ज FIR का पहला पेज
FIR का पेज नंबर 2

इस मामले की लड़ाई लड़ने वाले लोधा सबर कल्याम समिति के अध्यक्ष ने MBB से बात करते हुए कहा, “हमें खुशी है कि इस मामले में प्रशासन ने हमारी शिकायत का संज्ञान लिया है. प्रशासन ने लोधा आदिवासियों की ज़मीन को उन्हें वापस दिलाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. “

लेकिन हमें ऐसा लगा कि उनके मन में कुछ शंका है. जब हमने उनसे पूछा कि क्या अभी भी उन्हें कुछ आशंका है तो वो कहते हैं, “हमें खुशी है कि प्रशासन ने ज़मीन वापस दिलाने की कार्रावाई शुरू कर दी है. लेकिन कई परिवारों ने लालच में आ कर अपनी ज़मीन के बदले थोड़े बहुत पैसे ले लिये हैं. उन्हें ज़मीन मिल पाएगी या नहीं अभी पता नहीं है.”

वो आगे कहते हैं,“वैसे भी यह तो एक मामला है. लेकिन यह आम बात है कि लोधा आदिवासियों की मजबूरी और अशिक्षा का फ़ायदा उठा कर उनकी ज़मीन हड़प ली जाती है. ज़रूरत इस बात की है एक व्यापक जांच हो और लोधा और सबर आदिवासियों की लूटी गई ज़मीन उन्हें वापस दिला दी जाए.”

जब यह सवाल हमने एसडीओ बाबूलाल महतो के सामने रखा तो उनका कहना था, “यह बात सही है कि कुछ परिवारों को ज़मीन के बदले में पैसा मिला है. लेकिन उसके बावजूद हमने यह तय किया है कि ज़मीन उस परिवार को दे दी जाएगी जिसे सरकार ने दी थी.” 

उन्होंने कहा, “हमने आदिवासियों को भी कहा है कि अगर अब वो पैसा ले कर सरकार से मिली ज़मीन को बेचते हैं तो फिर उनके खिलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज कराई जाएगी.”

इस मामले में लोधा समुदाय के लोगों की तरफ से प्रशासन के सामने पैरवी करने वाले सीपीआई एम के नेता दिबाकर हंसदा ने कहा, “जब हमें पता चला कि झारग्राम में कई जगहों पर लोधा आदिवासियों की ज़मीन हड़पी जा रही है तो हमने इस मामले में प्रशासन के पास शिकायत दर्ज कराई.”

उन्होंने दावा किया कि 2003 में लोधा आदिवासियों को मिली ज़मीन के अलावा भी कई जगहों पर आदिवासियों की ज़मीन लूटी जा रही है. इस सिलसिले में उन्होंने बताया, “बॉम्बे रोड़ के पास भी आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा किया गया है. हम उसकी शिकायत भी प्रशासन से करेंगे.”

उन्होंने आरोप लगाया कि यहां पर अच्छी ज़मीन पर नज़र गड़ाए लोग आदिवासियों को बहका कर या फिर डरा कर ज़मीन लूट लेते हैं. लेकिन यह काम प्रशासन और स्थानीय नेताओं की मिली भगत के बिना तो संभव ही नहीं है.

उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी प्रशासन पर लगातार दबाव बना रही है कि आदिवाियों की ज़मीन आदिवासियों को वापस मिल सके. अफ़सोस की बात ये है कि आदिवासियों की ज़मानत की इस लूट में कुछ तथाकथित समाजिक कार्यकर्ता भी मिले हुए थे.

जिन लोगों ने सरकार से आदिवासियों को दी गई ज़मीन हड़पी थी, उनके ख़िलाफ़ क्या क़ानून कार्रवाई की जाएगी, इस पर प्रशासन ने कुछ नहीं कहा है. हमें स्थानीय लोगों ने बताया कि यह पूरा मामला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सज्ञान में भी है.

क्योंकि जब वो झारग्राम आई थीं तो उनके सामने लोधा और सबर समुदाय के लोगों ने यह मामला उठाया था. 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments