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छत्तीसगढ़ में 12 आदिवासी समुदायों के नए नाम अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हुए

अफ़सोस की बात ये है कि मणिपुर में इतनी संगीन हिंसा के बावजूद सरकार की नज़र चुनाव पर ही टिकी है. छत्तीसगढ़ में इस साल विधान सभा के चुनाव हैं. इसलिए राज्य सभा मे विपक्ष की अनुपस्थिति में बिल पास करा लिया गया. 

मंगलवार यानि 25 जुलाई को राज्य सभा ने 12 आदिवासी समुदायों के अलग अलग नाम को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने के लिए बिल पास किया. जिन आदिवासी समुदायों के अलग-अलग नाम अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हैं वे सभी छत्तीसगढ़ के समूह हैं.

यह बिल पास होने के बाद राज्य में कम से कम 72000 लोगों के नाम अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल हो जाएगा. यह बिल राज्य सभा में विपक्ष की अनुपस्थिति में पास कराया गया है. जब मणिपुर के मुद्दे पर नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को बोलने की अनुमति नहीं मिली तो विपक्ष ने वॉक आउट किया था.

इस बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए आदिवासी मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी जनसंख्या 78 लाख 22 हज़ार है. इस लिहाज़ से 72 हज़ार का आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं है. लेकिन सरकार के इस कदम से पता चलता है कि वह कितनी संवेदनशील है.

अर्जुन मुंडा ने कहा कि स्पेलिंग में मामली सी भूल की वजह से कई आदिवासी समुदायों के हज़ारों लोग अनुसूचित जनजाति की सूचि से बाहर रह गए थे. अर्जुन मुंडा ने कहा कि स्पेलिंग में ये ग़लतियां ग़लत उच्चारण की वजह से हुई हैं, या फिर रिकॉर्ड रखने वाले ने कई बार शायद नाम ठीक से सुना ही नहीं था.

12 आदिवासी समुदायों के अलग अलग नाम अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं में दर्ज किये गये हैं जिससे आने वाले समय में कोई संशय ना रहे. अर्जुन मुंडा ने कहा कि स्पेलिंग में ग़लती की वजह से आदिवासी समुदाय के हज़ारों लोग आरक्षण और अन्य लाभ से वंचित थे.

इस सिलसिले में पास बिल यानि संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (5वां संशोधन) बिल, 2022 पिछले साल लोकसभा में पास होने के बाद राज्य सभा में लंबित था. 

इस बिल के राज्य सभा में पास होने के बाद अब धनुहार, धनुवार, किसान, सौंरा, सौंरा और बिझिंया समुदायों को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल कर लिया गया है. इस विधेयक में भरिया, भूमिया समुदाय के पर्यायवाची के रूप में भुइंया, भुइयां और भुइयां समुदायों को शामिल किया गया है.

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री ने मांग की थी

इस मामले में 11 फ़रवरी 2021 को छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति की सूचि में कुछ नाम या उपनाम जोड़ने का आग्रह किया था.

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत हिस्सा आदिवासियों का ही है. इनमें से 5 आदिवासियों को केंद्र सरकार ने अति पिछड़ा जनजाति में शामिल किया गया है. 

इसके अलावा राज्य सरकार ने 2 जनजातियों की अति पिछड़ा माना है. लेकिन इसके बाद भी राज्य के कई जातिय समुदाय आदिवासी होने के बाद भी केवल जाति के नाम पर मात्रात्मक त्रुटि के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था पर अब भारत सरकार ने सुधार कर दिया है.

अनुसूचित जनजाति का दर्जा एक संवेदनशील विषय

केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ के अलावा कई अन्य राज्यों में अनुसूचित जनजाति की सूचि में त्रुटियों को दूर करने के लिए 2022 में कई बिल संसद में पेश किये थे. इन बिलों पर चर्चा के दौरान बार-बार विपक्ष ने सरकार से अनुसूचित जनजाति में मौजूद त्रुटियों में सुधार और कुछ अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर सरकार को व्यापक स्टडी करानी चाहिए. 

संसद में विपक्ष ने सरकार को सलाह दी थी कि इस कुछ अन्य समुदायों के नामों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करने की माँग के बारे में एक व्यापक बिल संसद में लाया जाए. लेकिन सरकार ने विपक्ष की सलाह को ख़ारिज करते हुए हिमाचल प्रदेश के हाटी समुदाय को अनुससूचित की सूचि में शामिल करने के लिए बिल लोक सभा में पास करवा लिया.

लेकिन हिमाचल प्रदेश में बीजेपी के हार जाने के बाद यह बिल राज्य सभा से अभी तक पास नहीं कराया गया है. इस सिलसिले में हाटी नेता दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मिलने भी आए थे. लेकिन इन नेताओं को मिलने का समय नहीं दिया गया.

देश के कई राज्यों में अलग अलग समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किये जाने की मांग कर रहे हैं. इनमें झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल में कुड़मी समुदाय कई बड़े प्रदर्शन कर अपनी मांग के समर्थन में दबाव बना रहा है.

उधर ओडिशा ने अलग अलग समुदायों के 120 नामों की सूचि केंद्र सरकार को भेजी जिन्हें वह अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल करवाने की मांग कर रही है. इस तरह से असम में कम से कम टी ट्राइब कहे जाने वाले आदिवासी समुदायों के अलावा कई अन्य समुदाय ऐसी ही मांग कर रहे हैं.

मणिपुर में जो आज हालात हैं वे भी मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग की वजह से ही बने हैं. 

अफ़सोस की बात ये है कि मणिपुर में इतनी संगीन हिंसा के बावजूद सरकार की नज़र चुनाव पर ही टिकी है. छत्तीसगढ़ में इस साल विधान सभा के चुनाव हैं. इसलिए राज्य सभा मे विपक्ष की अनुपस्थिति में बिल पास करा लिया गया. 

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