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अनुसूचित जनजाति में नए समुदायों को शामिल करने की माँग और सरकारों का नज़रिया

बोया समुदाय की एसटी दर्जे में शामिल होने की मांग 60 साल पुरानी है. समुदाय को कर्नाटक और तमिलनाडु में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है.

तेलंगाना (Telangana) में लंबे समय से चली आ रही वाल्मिकी बोया (Valmiki Boya) समुदाय की मांग को आखिरकार राज्य सरकार ने मान लिया है. शुक्रवार को तेलंगाना की के चंद्रशेखर राव (K Chandrashekhar Rao) सरकार ने वाल्मिकी बोया समेत कई अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) सूची में शामिल करने की सिफारिश की है. इनमें वाल्मीकि बोया, पेड्डा बोया, खैती लंबादास, माली साहा बेदार, किराटक, निषादी, भट मथुरा, चमार मथुरा, चंदावल और थलयारी समुदाय शामिल है. इन सभी समुदायों को एसटी सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार केंद्र को सिफारिश भेजेगी.

शुक्रवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने इस पर प्रस्ताव पेश किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने वाल्मिकी बोया, किराटक और अन्य समुदायों को एसएटी सूची में शामिल करने के लिए 2016 में अनुसूचित जनजातियों के लिए जांच आयोग की सिफारिश को स्वीकार कर लिया था और इसे केंद्र को भेज दिया था. हालांकि अब तक केंद्र से इस बाबत उन्हें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.

मुख्यमंत्री ने प्रस्ताव दिया कि आदिलाबाद, कोमाराम भीम आसिफाबाद और मंचिर्याल जिलों में रहने वाले ‘माली’ समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्हें भी एसटी सूची में शामिल किया जाए. मुख्यमंत्री ने बताया कि समुदाय की मांग है कि उन्हें एसटी सूची में शामिल किया जाए. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष पी श्रीनिवास रेड्डी ने प्रस्ताव को स्वीकार किये जाने की घोषणा की.

बोया समुदाय की एसटी दर्जे में शामिल होने की मांग 60 साल पुरानी है. इसे लेकर बोया ज्वाइंट एक्शन कमेटी (JAC) ने साल 2022 में कई बार आंदोलन किए. कमेटी के नेतृत्व में ये आंदोलन न सिर्फ तेलंगाना बल्कि आंध्र प्रदेश में भी बड़े प्रदर्शन पर फैल गया था. तेलंगाना में इस समुदाय की आबादी लगभग 5 लाख है और आंध्र प्रदेश में 40 लाख हैं. समुदाय को कर्नाटक और तमिलनाडु में अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता प्राप्त है. कर्नाटक और महाराष्ट्र में इन्हे बेदास/बेदार/बेदागर भी कहा जाता है.

पिछले कई दिनों में देश के अलग-अलग राज्यों में कई समुदाय ST सूची में शामिल करने के लिए प्रदर्शन करते दिखे. अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने की मांग का शोर राज्यों से लेकर संसद तक सुनाई दिया.

तेलंगाना सरकार की तरह ही ओडिशा सरकार ने भी केंद्र पर उनकी मांगें नहीं सुनने का आरोप लगाया था. जिसके बाद ओडिशा की 169 आदिवासी समुदायों को अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) श्रेणी में शामिल करने की मांग पर केंद्र और राज्य सरकार के बीच टकराव की स्थिति देखी गई.

ओडिशा सरकार का दावा है कि उन्होंने अनुसूचित जनजाति वर्ग की सूची में आदिवासी समुदायों को शामिल करने के लिए पहले ही 169 प्रस्ताव केंद्र को भेज दिए हैं लेकिन केंद्र ने अभी तक इस पर फैसला नहीं किया है.हालांकि केंद्र ने राज्य सरकार के इस दावे को खारिज कर दिया. केंद्र की तरफ से जनजातीय कार्यों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि यह एक संवैधानिक मामला है.

उन्होंने कहा, “राज्य सरकार के पास इस प्रस्ताव का कोई लेखा जोखा नहीं है. इतना ही नहीं 120 समुदायों पर राज्य सरकार ने कोई एंथ्रोपॉलोजिकल रिपोर्ट नहीं भेजा है. वहीं जिन समुदायों का एंथ्रोपॉलोजिकल रिपोर्ट है उनमें से 12 का प्रोसेस शुरू हो चुका है. इसमें भी कुल 109 समुदायों के कोई डेटा राज्य सरकार के पास उपलब्ध नहीं है.”

हालांकि संसद में जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने केंद्र के पास लंबित अनुसूचित जनजाति के दर्जे के अनुरोधों की संख्या पर पूछे गए सवाल को टाल दिया था. लोकसभा में ओडिशा के कांग्रेस सांसद सप्तगिरी शंकर उलाका ने पूछा था कि ऐसे कितने मामले केंद्र के पास लंबित है. कांग्रेस सांसद के इस सवाल पर जनजातीय मामलों के राज्य मंत्री बिश्वेश्वर टुडू ने सीधा जवाब देने के बजाय जनजातियों के शेड्यूलिंग के लिए जटिल प्रक्रिया का हवाला दिया और कहा, “ऐसे कई प्रस्ताव इसलिए हो सकते हैं जो विभिन्न स्तरों पर जांच के अधीन रहते हैं.”

मंत्रालय ने कहा कि उत्तर प्रदेश में छह समुदायों को तीन जिलों में एसटी घोषित किया गया था जबकि अरुणाचल प्रदेश और झारखंड की 2 जनजातियों को एसटी सूची से हटा दिया गया है. वहीं असम के सांसद अब्दुल खालिक के सवाल पर भी जनजातिय मंत्रालय ने टालमटोल कर दी. सांसद ने असम की कोच राजबंशी और पांच अन्य समुदायों -ताई-अहोम, चुटिया, मटक, मोरन और टी ट्राइब जनजाति को एसटी सूची में शामिल करने के प्रस्ताव की स्थिति केंद्र से जवाब मांगा था.

दरअसल पिछले तीन वर्षों में चार जनजातियाँ को अनुसूचित जनजाति सूची में जोड़ा गया है. इसमें झारखंड की पुराण जनजाति, त्रिपुरा में दारलोंग की उप-जनजाति, और तमिलनाडु में नारीकोरवन और कुरुविकरण शामिल है. संसद के शीतकालीन सत्र में कई समुदायों को ST सूची में शामिल करने पर विधेयक लाए गए थे. इन विधेयकों पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों को कई सांसदों ने अपने अपने राज्यों के समुदायों को इस सूची में शामिल करने की मांग उठाई थी.

संसद सत्र के दौरान विपक्षी दलों ने मांग की कि सरकार को टुकड़ों में समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के बजाय जनजातियों की एक व्यापक सूची बनानी चाहिए और उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में शामिल करने और मान्यता देने की दिशा में सार्थक कदम उठाने चाहिए.

अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का मुद्दा और सरकारों का नज़रिया

ओडिशा, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल या फिर झारखंड राज्य सरकारें लगातार कई समुदायों को आदिवासी मान कर अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की माँग कर रही हैं.

केंद्र सरकार ने कई समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का फ़ैसला किया भी है. लेकिन यह एक ऐसा मसला जो संसद के लगभग हर संसद सत्र में उठ रहा है.

लेकिन सरकार ने इस मसले पर संसद में कोई चर्चा अभी तक नहीं करवाई है. क्योंकि सरकार इस मामले में एक व्यापक नीतिगत फ़ैसला लेने से बचती रही है.

कुछ नए समुदायों से जुड़ी राज्य सरकारों की माँगो में से कुछ में तथ्य हो सकता है लेकिन अफ़सोस की बात है कि राज्य सरकारों के आग्रह में भी दिखावा ज़्यादा है.

राज्य सरकारें भी संजीदगी से इन मुद्दों पर काम नहीं कर रही है. वरना इन समुदायों से जुड़े ज़रूरी शोध और आँकड़े सार्वजनिक किये ही जा सकते थे.

यह एक ऐसा मसला है जिसे संविधान में काफ़ी गंभीरता से दर्ज किया गया है. इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि सरकार संसद में इस मसले पर एक विस्तृत चर्चा कराए.

इस चर्चा के बाद सरकार इस मामले में नीतिगत पहल कर सकती है और इस गंभीर मसले को एक तर्कसंगत तरीक़े से सुलझाया जा सकता है.

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