मणिपुर में कुकी और मैतई हिंसा में करीब 5000 से ज़्यादा घरों को जला दिया गया. इस हिंसा में 160 लोग मारे गए. ज़ाहिर है अपनों को खो देने वाले परिवारों का दुख: बहुत गहरा होगा.
लेकिन दंगों के दौरान जो लोग अपनी जान बचा कर भागने में कामयाब रहे वो भी अपनी आगे की ज़िंदगी को ले कर आशंकित हैं. मणिपुर में जब 3 मई को हिंसा शुरू हुई तो फिर रूकी ही नहीं, अब तो लगभग तीन महीने हो चले हैं. इस हिंसा में जो लोग अपने घर छोड़कर भागने को मजबूर हुए उनकी संख्या 50 हज़ार से ज़्यादा बताई जाती है.
कुकी आदिवासी पहाड़ी की तरफ भागे और मैतई घाटी की तरफ…अब इस राज्य में कोई ऐसा इलाका नहीं बचा है जहां इन दो समुदायों के लोग मिलजुल कर रहते हैं.
जो लोग घाटी और पहाड़ी के सीमावर्ती इलाकों में थे यानि जहां मिलीजुली आबादी रहती थी…वहां हिंसा का असर बहुत ज़्यादा था. जो लोग इस हिंसा में बेघर हुए उन्होंने रिलीफ़ कैंपों में शरण ली. इन कैंपों में दिन गुज़ार रहे लोगों से मिलने हम सबसे पहले कांगपोकपी के एक रिलीफ़ कैंप में पहुंचे.
रिलीफ़ कैंप में रह रहे लोगों की व्यथा कथा जानने के लिए लिंक पर क्लिक कर पूरी ग्राउंड रिपोर्ट आप देख सकते हैं.