HomeLaw & RightsEMRS: आदिवासी इलाक़ों में बेहतरीन स्कूलों के वादों और दावों की हक़ीक़त

EMRS: आदिवासी इलाक़ों में बेहतरीन स्कूलों के वादों और दावों की हक़ीक़त

आदिवासी इलाक़ों में एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूलों का शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान रहा है. मोदी सरकार ने यह वादा किया था कि 2022 तक 452 नए EMRS की स्थापना हो जाएगी. 2022 ख़त्म हो रहा है और सरकार अपने वादे का एक चौथाई काम भी नहीं कर पाई है.

साल 1997-98 में आदिवासी छात्रों के लिए एक बेहतरीन शुरुआत की गई. सरकार ने यह फ़ैसला किया कि आदिवासी इलाक़ों में भी पढ़ाई लिखाई की अच्छी व्यवस्था की जाएगी.

इसके तहत एकलव्य मॉडल रेज़िडेंशियल स्कूल की स्थापना की शुरुआत हुई. इन स्कूलों का मॉडल जवाहर नवोदय विद्यालयों से मिलता जुलता है.

इनके नाम से ही आप अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इन स्कूलों में हॉस्टल की व्यवस्था होती है. फ़िलहाल देश भर के अलग अलग आदिवासी इलाक़ों में कुल 226 एकलव्य आदर्श आवासीय स्कूल चल रहे हैं. इनमें से 68 CBSE से affiliated हैं. इन स्कूलों में से हर एक में छठी से बारहवीं कक्षा तक के 480 छात्रों की व्यवस्था होती है. 

आगे की बात करने से पहले यह नोट करना भी ज़रूरी है कि इन स्कूलों में पढ़ाई लिखाई के साथ साथ खेल-कूद, गीत-संगीत, संस्कृति के अलावा अन्य कौशल में छात्रों को पारंगत करने का लक्ष्य भी रखा गया था.

अभी तक का अनुभव बताता है कि इन स्कूलों को जिस लक्ष्य के साथ स्थापित किया गया था, उस दिशा में इन स्कूलों का योगदान क़ाबिले तारीफ़ कहा जा सकता है.

लगभग दो दशक के अनुभव के बाद यह महसूस किया गया कि आदिवासी इलाक़ों में इन स्कूलों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए. और सरकार ने साल 2018-19 के बजट में नए एकलव्य स्कूलों की स्थापना से जुड़ी एक बड़ी घोषणा की.

सरकार ने संसद में यह ऐलान किया कि साल 2022 तक देश की हर उस तहसील या ब्लॉक में कम से कम एक एकलव्य आदर्श आवासीय स्कूल यानि EMRS की स्थापना कर दी जाएगी, जहां की आधी जनसंख्या आदिवासी है या फिर कम से कम 20 हज़ार आदिवासी वहाँ रहते हैं.

सरकार के इस फ़ैसले को 17 दिसंबर 2018 को CCEA यानि आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने मंज़ूरी भी दे दी थी. 

इसका मतलब क्या हुआ ? इसका मतलब ये हुआ कि अब देश के हर आदिवासी ब्लॉक में एक हॉस्टल युक्त स्कूल आदिवासी छात्रों के लिए मौजूद होना चाहिए.

होना चाहिए…..लेकिन है नहीं. सरकार ने ऐलान किया था कि 2022 तक कम से कम 452 नए एकलव्य स्कूल स्थापित कर दिये जाएँगे. जब सरकार ने इन स्कूलों को बनाने का ऐलान भी किया और कैबिनेट कमेटी की मंज़ूरी भी 2018 में ही मिल चुकी थी तो फिर इन स्कूलों की स्थापना क्यों नहीं हुई ?

इन स्कूलों की स्थापना के रास्ते में अड़चन क्या है? इस मामले पर क्या सरकार से कभी किसी ने कोई सवाल नहीं पूछा ? अगर सवाल पूछा तो सरकार का जवाब क्या था ? 

ये सारी बातें बेहद ज़रूरी हैं और हम ये सारी बातें करेंगे भी…लेकिन आईए पहले EMRS यानि एकलव्य मॉडल रेजिडेंशियल स्कूलों की स्थापना से जुड़े कुछ ज़रूरी तथ्यों को समझ लेते हैं. इससे शायद उन बातों को समझना आसान होगा जो हम आगे करने वाले हैं. 

तो इस इस सिलसिले में पहला तथ्य ये है कि एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालयों को स्थापित करने का पूरा ख़र्च केंद्र सरकार देती है

संविधान की धारा 275(1) के तहत यह ख़र्च उपलब्ध कराया जाता है

एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय कम से कम 15 एकड़ ज़मीन पर बनाया जाता है

इन स्कूलों के निर्माण के लिए केंद्र सरकार  20 करोड़ रूपये उपलब्ध कराती है

उत्तर-पूर्व या फिर चरमपंथ से प्रभावित इलाक़ों में इन स्कूलों की स्थापना के लिए 20 प्रतिशत अतिरिक्त धन उपलब्ध कराया जाता है

इसके अलावा केंद्र सरकार हर साल इन स्कूलों में पढ़ने वाले हर छात्र के लिए के लिए 1 लाख 09 हज़ार रूपये उपलब्ध कराती है

आईए अब उन बातों पर आते हैं जो 2018 में हर आदिवासी ब्लॉक में ऐसे स्कूलों को बनाने के लिए किये गए ऐलान से जुड़ी हैं. इस सिलसिले में सबसे पहले कुछ ज़रूरी आँकड़ों को देखते हैं.

तो जैसा हमने आपको पहले बताया कि 2022 तक 452 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय बनाने का टार्गेट रखा गया था. सरकार ने 12 Day Boarding स्कूलों की स्थापना का लक्ष्य भी रखा था.

अब सिलसिलेवार देखते हैं कि कि हुआ क्या है तो अभी तक सरकार ने कुल 396 स्कूलों के निर्माम को मंजूरी दे दी है. इनमें से 100 स्कूलों में निर्माण का काम चल रहा है. 332 स्कूलों के निर्माण का काम मार्च 2023 में शुरु होने की उम्मीद है.

यानि 2018 में आदिवासी इलाक़ों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूलों की स्थापना का जो लक्ष्य रखा गया था, वो लक्ष्य अभी काफ़ी दूर नज़र आता है.

अब सरकार ने औपचारिक तौर पर यह कहा है कि 2025 तक इस लक्ष्य को हासिल कर लिया जाएगा. क्या सरकार से इस बारे में कभी कोई सवाल नहीं पूछा गया…तो सरकार ने इसका क्या जवाब दिया? 

जी हाँ सरकार से इस बारे में सवाल पूछा गया, संसद में भी पूछा गया और जनजातीय कार्य मंत्रालय के काम काज की समीक्षा के लिए बनी संसदीय कमेटी ने भी विस्तार से इस मामले पर सरकार से जवाब माँगे.

सरकार ने अपनी सुविधा के अनुसार कुछ सवालों के जवाब दिए भी हैं. सरकार की तरफ़ से कमेटी की तरफ़ से स्कूलों की स्थापना में आई अड़चनों के बारे में जो सबसे बड़ा कारण बताया गया है वह स्कूल के अनुकूल ज़मीन का उपलब्ध ना होना बताया गया है. 

लेकिन एकलव्य स्कूलों के बारे में कमेटी के सवालों का जवाब देते हुए मंत्रालय के अधिकारियों ने सबसे पहले कमेटी की जानकारी दुरुस्त की है.

अधिकारियों ने कमेटी को बताया कि सरकार के कहने का मतलब यह नहीं था कि 2022 तक सभी स्कूल बना दिए जाएँगे . इन अधिकारियों का कहना है कि सरकार के कहने का मतलब था कि इस दौरान स्कूलों के प्रस्ताव को मंज़ूरी देने और निर्माण का काम फ़ेज़ वाइज़ शुरू किया जाएगा.

अच्छा…लेकिन जनजातीय कार्य मंत्रालय की वेबसाइट पर तो लिखा है कि 2022 तक देश सभी आदिवासी ब्लॉक में इन स्कूलों की स्थापना की जाएगी….तो क्या यह भी जुम….नहीं नहीं इतना नकारात्मक नहीं होते….साल 2025 तक देख लेते हैं….शायद यह वादा पूरा हो जाए….

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