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राधा ने जंगल के भीतर डोली में ही बच्चे को जन्म दे दिया

राधा की डोली को ले कर उनके परिवार के लोग 15 किलोमीटर का रास्ता तय कर चुके थे. पहाड़ का दुर्गम रास्ता और कंधों पर डोली ले कर चलना आसान नहीं था. लेकिन फिर वो चले जा रहे थे. लेकिन 15 किलोमीटर चल कर जब वो सुस्ताने के लिए रूके तो राधा प्रसव पीड़ा से तड़पने लगी. राधा ने वहीं बच्चे को जन्म दे दिया.

आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम एजेंसी इलाके के आदिवासियों की स्वास्थ्य संबंधी मुश्किलों से जुड़ी खबरों का मीडिया में आना आम बात है. इनमें ज्यादातर खबरें स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी, सड़क संपर्क के अभाव में मरीजों का डोलियों में ले जाना और इससे होने वाली परेशानियों से जुड़ी होती हैं.

ऐसी ही एक खबर एएसआर ज़िले से आई है, जहां गर्भवती महिला ने वन क्षेत्र में ‘डोली’ (अस्थायी स्ट्रेचर) में एक बच्चे को जन्म दिया. महिला को अस्पताल ले जाया जा रहा था. उत्तरी आंध्र प्रदेश में पिछले एक हफ्ते में यह तीसरी ऐसी घटना है जब बीमार या गर्भवती महिलाओं को डोली में ले जाया गया.

घटना एएसआर(Alluri Seetarama Raju) ज़िले के जी मदुगुला मंडल के अंतर्गत आने वाले वन क्षेत्र में हुई. जी मदुगुला के निट्टाममिडी गांव की आदिवासी महिला के. राधा को गुरुवार की तड़के प्रसव पीड़ा हुई. लेकिन महिला के पहाड़ी गांव से सड़क का कोई संपर्क नहीं है.

राधा के पति और परिवार के सदस्यों ने सुबह होने का इंतजार किया क्योंकि अंतरे में उसे सड़क तक लाना संभव नहीं था. जब सुबह हुई तो फिर परिवार ने राधा को अस्पताल ले जाने का फ़ैसला किया. इसलिए राधा को डोली में लिटा कर सड़क तक ले जाना था. क्योंकि गाँव तक सड़क नहीं है इसलिए एम्बुलेंस सेवा वहाँ तक नहीं पहुँचती है. 

इसका मतलब था कि इस परिवार को राधा को डोली में लिटा कर पहाड़ी रास्ते से क़रीब 20 किलोमीटर तक पैदल ले जाना था. क्योंकि वासममिडी गाँव जहां तक सड़क आती है वह जगह लगभग 20 किलोमीटर दूर है. 

वे गुरुवार को सुबह 8 बजे चले और 15 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद राधा की प्रसव पीड़ा तेज़ हो गई. हालात ये बन गए कि राधा ने जंगल में ही डोली में एक बच्चे को जन्म दिया. शिशु डोली से गिर गया और उसकी आंख के पास चोट लग गई.

राधा का परिवार कुछ देर रुकने के बाद वे फिर से चला और वासमामिडी पहुंचे जहां एक एम्बुलेंस इंतजार कर रही थी. एम्बुलेंस कर्मचारियों ने शिशु और महिला को प्राथमिक उपचार प्रदान किया और फिर बच्चे और मां दोनों को पडेरू के सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित कर दिया.

डॉक्टरों ने कहा कि मां और बच्चे की हालत स्थिर है और शिशु को सिर्फ मामूली चोट आई है. इस मसले पर MBB से बात करते हुए पडेरू में गिरिजन संघम के नेता सुरेन्द्रा किल्लो ने कहा, “कल ही हमें ख़बर मिली की एक बीमार बुजुर्ग को डोली में लिटा कर अस्पताल ले जाया जा रहा था. लेकिन रास्ते में ही उन्होंने दम तोड़ दिया.” 

वो कहते हैं कि अगर उनके गाँव तक सड़क होती तो उन्हें समय पर अस्पताल पहुँचाया जा सकता था. उनका कहना था, “हमारे इलाक़े में दुर्गम पहाड़ी इलाक़ों में जो आदिवासी समुदाय रहते हैं वे विशेष रुप से पिछड़ी जनजाति (PVTG) हैं. ये आदिवासी अभी भी पूरी तरह से पोडू भूमि पर खेती करते हैं.”

सुरेंद्रा किल्लो कहते हैं कि यहाँ मुख्यतः दो विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति रहती हैं. इनमें एक कोदु और दूसरी कुर्जा जनजाति है. जिन इलाक़ों में ये आदिवासी रहते हैं वहाँ सिर्फ़ सड़क या स्वास्थ्य सुविधाओं की मुश्किल नहीं है. बल्कि वहाँ कम्यूनिकेशन यानि मोबाइल नेटवर्क भी नहीं मिलता है.

इसलिए वहाँ के लोग मदद के लिए किसी को समय पर फ़ोन भी नहीं कर पाते हैं. उसके लिए भी उन्हें अपने गाँवों से चल कर दूर तक आना पड़ता है. 

सुरेन्द्रा किल्लो (दाईं तरफ़ जैकेट पहने हुए)

सुरेंद्रा किल्लो कहते हैं कि सरकार की तरफ़ से ITDA को पर्याप्त फंड नहीं मिलता है. इसलिए इन इलाक़ों में स्वास्थ्य, शिक्षा के साथ साथ संपर्क की सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हो पाती हैं. 

उन्होंने कहा, “अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले में दूरदराज़ के कम से कम 992 गाँव हैं जहां अभी तक सड़क संपर्क नहीं है.”

उसी गाँव के एक स्थानीय निवासी ने कहा, “आजादी के 75 साल बाद भी हमारे गांवों के लिए कोई उचित सड़क संपर्क नहीं है. हमें चिकित्सा सहायता प्राप्त करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. हमने सड़क संपर्क पर अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं को कई अभ्यावेदन दिए, लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे रहा है.”

इस तरह की ये पहली घटना नहीं है. हाल ही में विजयनगरम ज़िले के गंत्याडा मंडल के तहत उचित सड़क संपर्क और पुलिया के अभाव में अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण एक 40 वर्षीय शख्स जोगुलु की मृत्यु हो गई थी.

भारी बारिश और फिसलन भरा रास्ता होने के बावजूद डिगुवा कोंडापर्थी गांव के लोगों द्वारा जोगुलु को अस्थायी स्ट्रेचर पर ले जाया गया लेकिन अस्पताल पहुंचने में देरी के कारण डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

आंध्र प्रदेश की आदिवासी बस्तियों में इस तरह की घटनाएं अक्सर देखने को मिलती है जब गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को सड़क की सुविधा न होने के चलते डोली यानि अस्थायी स्ट्रेचर से अस्पताल पहुंचाया जाता है.

ग्रामीण अक्सर सरकार और प्रशासन से अपनी बस्तियों को सड़क संपर्क से जोड़ने की गुहार लगाते रहते हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है. हाल ही आंध्र प्रदेश के परवतीपुरम मनयम ज़िले के कुरुपम मंडल के बांदीगुड़ा और बोरी गांवों के आदिवासियों ने सरकार की उदासीनता से तंग आकर वोटी गेड्डा धारा पर एक बांस का पुल खुद बनाया.

क्योंकि सड़क संपर्क नहीं होने के चलते बच्चे न तो स्कूल जा पा रहे थे और न ही बीमार लोग नदी को पार करके अस्पताल जाने में समर्थ थे. ऐसे में आदिवासियों ने बांस का अस्थायी पुल खुद बनाया. 

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