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महाराष्ट्र: मुंबई में आयोजित हुआ 15वां ट्राइबल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम, पूरे एक हफ्ते चलेगा

नेहरू युवा केंद्र संगठन द्वारा आयोजित होने वाला आदिवासा युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम इस बार मुंबई में आयोजित हुआ है. जो 27 अक्टूबर से लेकर 2 नवम्बर तक यानी पूरा एक हफ्ता चलेगा और इसके लिए 8 राज्य के कुल 220 आदिवासी युवाओं को चुना गया है.

आदिवासी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं के साथ ही पढ़ाई-लिखाई का भी अभाव है और जो स्कूल बने हैं वो आदिवासी बस्तियों और इलाकों से काफी दूरी पर है. इन्हीं बातों को ध्यान में रहते हुए नेहरू युवा केंद्र संगठन ने आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम (Tribal Youth Exchange Programme) की शुरुआत की है.

मुंबई विश्वविद्यालय के कलिना परिसर में 1 हफ्तें के लिए ट्राइबल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम शुरु हुआ है. जो 27 अक्टूबर से लेकर 2 नवम्बर तक चलेगा.

ट्राइबल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम

ट्राइबल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम की शुरुआत साल 2006 में हुआ और अब यह इसका 15वां संस्करण मुंबई में हो रहा है.

इस कार्यक्रम का आयोजन नेहरू युवा केंद्र संगठन ने केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के साथ मिलकर शुरु किया है.

इस कार्यक्रम के लिए 220 आदिवासी युवाओं को चुना गया है. जो गुमला, खूंटी, झारखंड के खरसावां ज़िले के लातेहार और सरायकेला, विशाखापत्तनम, तेलंगाना के भद्रादी ज़िले और बिहार के जमुई और लखीसराय ज़िले से मुंबई पहुंचे हैं.

15वें आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सीआरपीएफ पश्चिमी सेक्टर के डीआईजीपी श्री वैभव निंबालकर ने यह निवेदन किया है की कड़ी मेहनत और नशे वाले किसी भी प्रदार्थ से दूर रहकर आदिवासी युवाओं को देश का जिम्मेदार नागरिक बनना चाहिए.

कार्यक्रम में उपस्थित महाराष्ट्र के नेहरू युवा केंद्र संगठन के राज्य निदेशक श्री प्रकाश कुमार खाद ने कहा कि आशा है कि यह कार्यक्रम आदिवासी युवाओं को देश के अन्य हिस्सों में अपने सहकर्मी समूहों के साथ भावनात्मक संबंध विकसित करने में मदद करेगा और इस तरह उनके आत्म सम्मान को बढ़ाएगा.

यह उनके मूल स्थान पर जाने के बाद उनके समुदाय और सहकर्मी समूह के बीच उनके ज्ञान और बुद्धिमत्ता के लाभ को भी बढ़ाएगा.

उन्होंने कहा है कि इसी उद्देश्य के लिए कार्य शिविरों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, स्वच्छता अभियान और भाषण प्रतियोगिताओं के साथ-साथ विभिन्न विषयों पर मार्गदर्शन सत्र आयोजित भी किया जाएगा.

इसके अलावा कार्यक्रम में श्री अशोक घुले, रजिस्ट्रार, मुंबई विश्वविद्यालय; श्री दीप नारायण शुक्ला, डीन, पोदार कॉलेज, मुंबई और श्री रामकुमार पाल, मुंबई में वरिष्ठ समाज सेवक उपस्थित थे.

आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम का उद्देश्य

15वें आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम का उद्देश्य 8 राज्य के 25 ज़िलों के दूर-दराज के चुने हुए आकांक्षी आदिवासी युवाओं को 25 अलग स्थानों का सांस्कृतिक लोकाचार, भाषा, जीवन शैली, सामाजिक-आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास और हमारे राष्ट्रीय जीवन के विविधता में एकता के पहलू को दिखाने का है.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासी युवाओं के विकास और सशक्तिकरण को सुविधाजनक बनाना है और जो आदिवासी आबादी देश के ऐसी जगह में रहते हैं जहां पर देश-दुनिया में हो रही घटनाओं की जानकारी नहीं पहुंच पाती है.

इसी को ध्यान में रखते हुए इस कार्यक्रम का आयोजन किया है क्योंकि इस कार्यक्रम में छात्र और युवाओं को देश के अन्य स्थानों के उनके समकक्षों और सहकर्मी समूहों से जोड़ना है ताकि उन्हें पर्याप्त जानकारी और अवसरों के साथ सशक्त बनाया जा सके. जिससे सकारात्मक जुड़ाव और शिक्षा प्राप्त हो सके.

इस प्रयास से उनके बीच उग्रवादी गतिविधियों पर भी नियंत्रण किया जा सकेगा.

ट्राइबल यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम में देश के विभिन्न हिस्सों में तकनीकी और औद्योगिक प्रगति, कौशल विकास, शिक्षा और रोजगार के अवसरों के बारे में जागरूक करने के लिए विभिन्न विकासात्मक कल्याण योजनाओं पर जागरूकता सत्र कराया जाएगा.

इसके अलावा आदिवासी युवाओं को उनकी समृद्ध पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत के बारे में जागरूक करना भी आदान-प्रदान कार्यक्रम का एक हिस्सा है.

आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम के प्रतिभागी

आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम के प्रतिभागी सोमवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री रमेश बैस से बातचीत के लिए राजभवन मुंबई गए थे.

मंगलवार को प्रतिभागी विधान भवन जाएंगे और बुधवार को रैपिड एक्शन फोर्स के साथ एक सत्र में भाग लेने के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस तलोजा, मुंबई परिसर जाएंगे.
इसके अलावा उन्हें मुंबई के उल्लेखनीय पर्यटन स्थलों जैसे भारतीय सिनेमा का राष्ट्रीय संग्रहालय, गेटवे ऑफ इंडिया, मरीन ड्राइव और जुहू बीच भी ले जाने की बात कही गई है.

इन बतों से यह पता चलता है कि इस आदिवासी युवा आदान-प्रदान कार्यक्रम में आदिवासी युवाओं को बहुत कुछ सिखाया जाएगा. लेकिन सोचने की बात यह है कि जिन आदिवासी गांव के युवाओं को इस कार्यक्रम के लिए नाम नहीं चुना गया है, वो युवा कैसे इन सब चीजों का लाभ उठा पाएंगे.

इसके अलावा कई आदिवासी इलाकों में एक भी स्कूल नहीं है और जो हैं उसके लिए बच्चों को लंबा सफर तय करना पड़ता है. जिसके कारण कई बार बच्चों को विवश होकर अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ती है.

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