HomeAdivasi Dailyआंध्र प्रदेश: आदिवासी नेताओं ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को निरस्त...

आंध्र प्रदेश: आदिवासी नेताओं ने वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 को निरस्त करने के लिए एकजुट होने का किया आह्वान

राज्यसभा द्वारा पारित ये विधेयक सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं के लिए नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा जैसी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ की 100 किलोमीटर भूमि को छूट देता है.

आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में विभिन्न आदिवासी संघों के नेताओं ने आदिवासी लोगों से 2023 वन (संरक्षण) संशोधन अधिनियम के उन्मूलन के लिए एकजुट होकर संघर्ष करने का आह्वान किया है.

उनका कहना है कि वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 का उद्देश्य आखिरकार उन्हें उनके निवास स्थान से विस्थापित करना है.

वे मंगलवार को यहां रेलवे न्यू कॉलोनी स्थित सुब्बालक्ष्मी कल्याण मंडपम में वन संरक्षण संशोधन अधिनियम को रद्द करने की मांग को लेकर आयोजित दो दिवसीय अखिल भारतीय आदिवासी सम्मेलन के उद्घाटन पर बोल रहे थे.

उन्होंने कहा कि लोकसभा ने 26 जुलाई 2023 को दो विधेयकों को मंजूरी दी थी, जो न सिर्फ आदिवासियों के अधिकारों को छीनने वाले थे बल्कि पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले थे.

पहला विधेयक 1980 के वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन करना था और दूसरा जैविक विविधता अधिनियम, 2022 में संशोधन करना था.

उन्होंने आरोप लगाया कि इन अधिनियमों का उद्देश्य पूरे देश में आदिवासियों पर अत्याचार करना और खनिज संपदा को लूटना है.

अखिल भारतीय खेत मजदूर किसान सभा (AIKMKS) के सह-संयोजक एस. झाँसी ने कहा कि वन संरक्षण पर वर्तमान संशोधन अधिनियम पेसा एक्ट और वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को रद्द कर देगा. जिसे आदिवासी लोगों के आंदोलन के बाद लाया गया था.

वहीं प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रफुल्ल सामंत्रे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार जंगलों को कॉर्पोरेट समूहों को सौंपने और आदिवासी लोगों को उनके निवास स्थान से बाहर निकालने पर आमादा है.

उन्होंने आरोप लगाया कि ओडिशा में मोदी सरकार और राज्य सरकारें पहले से ही नए कानून लागू कर आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ रही हैं. उन्होंने 2024 के आम चुनावों में ‘फासीवादी ताकतों’ को हराने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया.

पूर्व विधायक गुम्मदी नरसैया ने याद किया कि कैसे केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों के माध्यम से आम लोगों, किसानों और श्रमिकों के अधिकारों को कुचलने की कोशिश की थी और किसानों ने पूरे एक साल तक दिल्ली में संघर्ष किया था. उन्होंने आरोप लगाया कि जो प्राकृतिक संसाधन लोगों के लिए थे उन्हें मोदी सरकार कॉरपोरेट समूहों को सौंप रही है.

क्या है वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023

दरअसल, 2 अगस्त 2023 को राज्यसभा ने वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 को कमजोर करने के लिए वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2023 पारित किया. जो एकमात्र ऐसा कानून था जो वन भूमि की रक्षा करता है और गैर-वन उद्देश्यों के लिए वन भूमि के डायवर्जन को नियंत्रित करता है.

मणिपुर मुद्दे पर विपक्षी सदस्यों के वॉकआउट करने के बाद सरकार ने इस विधेयक को अलोकतांत्रिक तरीके से चुपचाप पारित करा लिया. विपक्षी सदस्यों को बहस में शामिल किए बिना सिर्फ सत्ता पक्ष के सदस्यों के साथ एक फर्ज़ी बहस आयोजित की गई और विधेयक को ध्वनि मत से जल्दबाजी में पारित कर दिया गया.

यह विधेयक वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों के लिए अधिक से अधिक डायवर्जन के लिए है. वन कार्बन नियंत्रण के समृद्ध स्रोत हैं इसलिए यह कदम भारत के 2070 तक शुद्ध शून्य के जलवायु लक्ष्य के विरुद्ध है.

लेकिन विधेयक में जहां तक उद्देश्यों का बयान है, वह जलवायु परिवर्तन से निपटने की बात जोर शोर से करता है और घोषणा करता कि इस विधेयक का उद्देश्य भारत की जलवायु लक्ष्यों की सेवा करना है.

वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 इस अधिनियम के लागू होने से पहले वनों के रूप में दर्ज क्षेत्रों को कवर करता था. लेकिन अब नया विधेयक उन क्षेत्रों को छोड़ देता है. इस तरह विशाल क्षेत्र, यहां तक कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पश्चिमी घाट में भी छूट मिल जाएगी. इसके चलते रियल एस्टेट माफिया मुन्नार या ऊटी में सारी वन भूमि कब्जा सकते हैं.

नए विधेयक में अंधाधुंध छूट

रेलमार्गों या राजमार्गों के दोनों ओर बस्तियों और प्रतिष्ठानों को कनेक्टिविटी प्रदान करने के नाम पर 0.10 हेक्टेयर (या लगभग 25 सेंट) वन भूमि का डायवर्जन किया जा सकता है. रेलवे लाइनें और राजमार्ग पहले से ही बड़ी मात्रा में वन क्षेत्र हड़प चुके हैं. किसी भी रेल लाइन या राजमार्ग के किनारे कितनी भी संख्या में बस्तियाँ और प्रतिष्ठान हो सकते हैं. ऐसे में 25 सेंट की अनुमति देने का मतलब है कि भारी मात्रा में वन भूमि का उपयोग किया जा सकता है.

विधेयक में “सार्वजनिक उपयोगिता” को परिभाषित किए बिना किसी भी “सार्वजनिक उपयोगिता” परियोजना के लिए वामपंथी उग्रवाद क्षेत्रों में 5 हेक्टेयर वन भूमि को छूट देने का प्रावधान है. इस तरह ऐसी “सार्वजनिक उपयोगिताओं” की संख्या असीमित हो सकती है.

इकोटूरिज्म गतिविधियाँ, जंगल सफ़ारी, जूलॉजिकल पार्क और वन कर्मचारियों के लिए सहायक बुनियादी ढाँचा आदि वन भूमि में शुरू किए जा सकते हैं. उनके लिए उपयोग की जाने वाली भूमि को गैर-वन गतिविधियों के लिए डायवर्जन के रूप में नहीं माना जाएगा क्योंकि इन्हें भी विधेयक के अनुसार वन गतिविधियाँ का हिस्सा माना जाता है.

अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के 100 किलोमीटर के भीतर के क्षेत्रों को पूरी छूट

राज्यसभा द्वारा पारित विधेयक सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी परियोजनाओं के लिए नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा जैसी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के साथ की 100 किलोमीटर भूमि को छूट देता है.

यह मानते हुए कि भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की कुल लंबाई लगभग 15,200 किलोमीटर है, यह 15.2 लाख वर्ग किलोमीटर होगी जहां वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 लागू नहीं होगा. यह मानते हुए कि 100 हेक्टेयर में 1 वर्ग किलोमीटर शामिल है.

कुल 1500 लाख हेक्टेयर को किसी भी वन संरक्षण से छूट दी गई है. इन क्षेत्रों में 10 हेक्टेयर वन भूमि को किसी भी सुरक्षा संबंधी परियोजना के लिए डायवर्ट किया जा सकता है. इससे जैव विविधता से समृद्ध हिमालय की तलहटी के पूरे हिस्से और पूर्वोत्तर भारत के विशाल क्षेत्रों को किसी भी वन संरक्षण से छूट मिल जाएगी.

कुछ पर्यावरणविदों का दावा है कि पारित विधेयक के अधिसूचित कानून बनने पर भारत में 20 से 25 प्रतिशत वन क्षेत्रों की सुरक्षा समाप्त हो जाएगी. यह विधेयक वन अधिनियम द्वारा प्रदान किए गए पारंपरिक वन समुदायों के वन अधिकारों के बारे में कुछ नहीं कहता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments