मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के शहडोल ज़िले (Shadol District) के केशवाही क्षेत्र में 55 साल की महिला को डायन बताकर सड़क पर मृत्यु होने तक पीटा गया. इस घटना की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.
वीडियों में साफ देखा जा सकता है की कैसे एक महिला दूसरी वृद्ध आदिवासी महिला निराशा अगरिया (Nirasha agriya ) को बीच सड़क में बेरहमी से पीट रही है.
इस मामले के बाद महिला की प़ड़ोसी रिंकी सोनी, संतोषी सोनी और सरिता सोनी पर एफआईआर दर्ज की गई है. कुछ दिन पहले ही इस तरह का एक और मामला राजस्थान के डूंगरपुर से सामने आया था. दरअसल डुंगरपुर ज़िले के गायड़ी अहाड़ा फला में देवर देवरानी ने अपनी भाभी पर डायन होने का आरोप लगाया था.
राजस्थान का मामला
वे उसे इलाज़ कराने के बाहने मनपुर गांव के एक महिला भोपे (तात्रिंक) के पास ले गए थे. महिला के बेटे को घर के बाहर रुकने के लिए कहा और फिर भोपे ने महिला के दोनों हाथों को जला दिया था. इस पूरी घटना में महिला के देवर देवरानी भी शामिल थे. घटना के बाद महिला ने बताया की उसके देवर और देवरानी ने खेतों में बोरवेल खुदवाया था. लेकिन इस बोरवेल में पानी नहीं आया और पूरे परिवार ने इसके लिए महिला को इसका दोषी मान लिया.
डायन प्रथा को रोकने के लिए कानून
राज्य स्तर पर कानून होने के बावजूद ऐसी घटनाएं अक्सर देखने को मिलती रहती है. 2019 में झारखंड के कल्याण कार्यकार्ताओं ने केंद्रीय सरकार से यह आग्रह भी किया था कि वे पूरे केंद्र स्तर पर डायन प्रथा को रोकने के लिए कानून बनाए.
यह प्रथा ज़्यादातर आदिवासी समाज में देखने को मिलती है. वहीं बिहार, राजस्थान और झारखंड सरकार ने इसे रोकने के लिए कानून भी बनाए है. बिहार में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 लागू किया गया है. जिसके तहत कोई भी व्यक्ति जो तांत्रिक डायन को पहचाने का काम करता है. या डायन प्रथा से जुड़ा कोई भी गैर कानूनी कार्य करता है तो उसे 6 महीने के लिए जेल और 1000 से 2000 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
वहीं राजस्थान में डायन प्रथा से संबंधित कोई भी गैर कानूनी कार्य करने पर एक से सात साल की जेल और 50000 से अधिक जुर्माना या फिर दोनों भी हो सकता है.साथ ही अगर डायन प्रथा के अंतर्गत गैर कानूनी काम करने वाला व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की हत्या करता है तो उसे सात साल से आजीवन कारावास हो सकता है या आजीवन कारावास के साथ 1 लाख जुर्माना भी हो सकता है.
इसके अलावा झारखंड के डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1999 के तहत डायन प्रथा के अंतर्गत आने वाले सभी जुर्मो के लिए छ: से एक साल तक की सजा और 1000 से 2000 तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. डायन प्रथा के लिए कई कानून बनाए तो गए है लेकिन ज़मीनी स्तर यह कानून लागू होते हुए नहीं दिख रहे हैं. सिर्फ कानून बनाने से यह प्रथा खत्म नहीं होगी. हमे जरूरत है की इसके बारे में टीवी पर जागरुक अभियान चलाए जाए.
कई आदिवासी क्षेत्रों में टीवी जैसे मानोरंजन सुविधाए नहीं होती है इसलिए वहां हम नाटकीय या नाच के रुप में आदिवासियों तक जागरूक अभियान से संदेश पहुचां सकते हैं.
ज़्यादा से ज़्यादा से शिक्षा को बढ़ावा देने से भी हम इस प्रथा को खत्म कर सकते हैं. सरकार को ऐसी अभियान की शुरूआत करनी पड़ेगी जिनसे इनके भावानाओं को ठेस ना पहुंचे और साथ ही उन तक डायन प्रथा का कुरूता सच भी पहुंच सकें.