24 और 25 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (National Security Strategy Conference) में अमित शाह ने देश के बड़े पुलिस अफसरों के साथ बैठक की थी. इसमें उन्होंने पुलिस आधिकारियों को सुझाव दिया की वे आदिवासियों के मुद्दों को बात चीत से सुलाझएं. उन्होनें कहा कि देश में आदिवासियों की कई समस्याएं हैं और उनके कई कारण भी मौजूद हैं.
देश की राजधानी दिल्ली में 24 और 25 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सम्मेलन (National Security Strategy Conference) को इंटेलिजेंस ब्यूरो ( Intelligence Bureau) द्वारा आयोजित किया गया था. इसमें गृह मंत्री अमित शाह ने देश के 750 बड़े पुलिस अफसरों के साथ बैठक की थी.
इस बैठक में उन्होंने पुलिस आधिकारियों से ये आग्रह किया की वो आदिवासी मुद्दों पर नरमी से पेश आए. उन्होंने कहां की देश में कुल जनसंख्या का 9 प्रतिशत आदिवासी समुदाय है. यह भी पता चला है कि उन्होंने नागालैंड के आदिवासियों को आशावसन दिया है कि आदिवासियों को यूनिफॉर्म सिविल कोड (uniform civil code) के दायरे से बाहर रखा जाएगा.
इसके साथ ही संविधान के अनुसूची 6 के दायरे में आने वाले आदिवासी क्षेत्रों को नागारिकता संशोधन अधिनियम 2019 (citizenship amendment act) से भी बाहर रखा जाएगा. संविधान अनुसूचित 6 में मणिपुर, नागालेंड, अरूणाचल प्रदेश इत्यादि आते हैं.
क्या है नागारिकता संशोधन अधिनियम 2019 और यूनिफॉर्म सिविल कोड
नागरिकता संसोधन अधिनियम (citizenship amendment act) को दिसंबर 2019 में पास किया गाय था. इस संसोधन में पाकिस्तान, बांगलादेश और अफगानिस्तान से आने वाले सभी समुदाय को भारत में नागरिकता मिलने के नियम और प्रकिया शामिल है.
वहीं यूनिफार्म सिविल कोड (uniform civil code) या नागरिक संहिता में देश के सभी धर्मो और समुदाय के लोगों को एक समान कानून बनाने की बात कही गई है.
देश के अलग अलग राज्यों में आदिवासियों के मुद्दे
देश के कई राज्यों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के कई मुद्दे हैं जिनके सामाधान की ज़रूरत है. इस सिलसिले में फ़िलहाल सबसे बड़ा मुद्दा तो मणिपुर का है.
मणिपुर में तीन मई से कुकी और मेतई समुदाय के बीच विवाद जारी है. यह विवाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद बढ़ता चला गया. दरअसल मैतई समुदाय की मांग थी की वो भी अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहते हैं.
वहीं झारखंड में भी मणिपुर जैसी ही एक समस्या छिड़ रही है. दरअसल झारखंड के कुड़मी महतो भी अनुसूचित जनजाति में शामिल होना चाहते हें. वहीं झारखंड के आदिवासी समुदाय इस विचार के सकत खिलाफ है.
कुड़मी महतो समुदाय का कहना है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं की गई तो वो झारखंड में मणिपुर जैसी स्थिति बना देंगे.
इसके अलावा झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम में अलग सरना धर्म की मांग हो रही है. इस सिलसिले में आदिवासी लगातार बड़ी जनसभा और प्रदर्शन कर रहे हैं. इनकी मांग है की बाकि अन्य धर्मो की तरह इन्हें भी आने वाले जनगणना में अलग कॉलम दिया जाए.
वहीं छत्तीसगढ़ के सिलगेर गांव में आदिवासियों की भूमि अधिकार को लेकर मांग उठ रही थी. साथ ही कई आदिवासी संगठन बार बार यह मांग कर रहे हैं कि अनुसूचि 5 में आने वाले सभी आदिवासी क्षेत्रों में जो भी आदिवासी समुदाय ईसाई धर्म को मानते हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति के लाभ नहीं मिलने चाहिएं.
इन मुद्दों के अलावा भी देश के कई राज्यों में आदिवासियों की अलग अलग मांग है. जिन्हें सरकार द्वारा अनदेखा कर दिया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योकि यह मांग राजनीति का केंद्र नहीं होती.