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एकलव्य स्कूलों में अब आदिवासी छात्रों के पाठ्यक्रम में AI भी होगा शामिल

एकलव्य स्कूलों का निर्माण यह सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ किया गया था कि आदिवासी छात्रों को उनके शहरी बच्चों के समान शैक्षिक अवसरों तक पहुंच प्राप्त हो और आदिवासी समुदायों के समग्र विकास को बढ़ावा दिया जाए. वर्तमान में पूरे भारत में ईएमआरएस में 1 लाख 5 हज़ार 609 आदिवासी छात्र पढ़ रहे हैं.

दूरदराज के आदिवासी इलाकें, जहां प्रौद्योगिकी तक पहुंच अभी भी एक लंबा संघर्ष बना हुआ है, वहीं कुछ स्कूलों में अब एक बड़ा बदलाव आ रहा है. केंद्रीय जनजातीय मामलों का मंत्रालय कई एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (Eklavya Model Residential Schools) के पाठ्यक्रम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है.

इससे आदिवासी छात्रों, जिनमें से कई पहली पीढ़ी के पढ़ने वाले बच्चें हैं, को अपने शहरी समकक्षों के समान अवसर मिलेगा.

दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक शुरुआत में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) का एआई पाठ्यक्रम लगभग दो महीनों में कुल 401 एकलव्य स्कूलों में से 54 में कक्षा 8-9 के छात्रों के लिए शुरू किया जाएगा.

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRSs) की स्थापना 1990 के दशक में कम से कम 50 प्रतिशत जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों में आदिवासी छात्रों को माध्यमिक और वरिष्ठ माध्यमिक शिक्षा प्रदान करने के लिए की गई थी, जिसमें न्यूनतम संख्या 20 हज़ार लोग थे.

स्कूलों का निर्माण यह सुनिश्चित करने के लक्ष्य के साथ किया गया था कि आदिवासी छात्रों को उनके शहरी बच्चों के समान शैक्षिक अवसरों तक पहुंच प्राप्त हो और आदिवासी समुदायों के समग्र विकास को बढ़ावा दिया जाए. वर्तमान में पूरे भारत में ईएमआरएस में 1 लाख 5 हज़ार 609 आदिवासी छात्र पढ़ रहे हैं.

फिलहाल जनजातीय मामलों के मंत्रालय के तहत नेशनल एजुकेशन सोसाइटी फॉर ट्राइबल स्टूडेंट्स (NESTS) पाठ्यक्रम की मैपिंग, उदाहरणों और गतिविधियों के साथ मॉड्यूल तैयार करने पर काम कर रहा है, जिसके साथ छात्र एआई की अवधारणा से जुड़ सकते हैं और उसे समझ सकते हैं.

हालांकि, नाम न छापने की शर्त पर NESTS के अधिकारियों ने मीडिया को बताया कि शुरुआत के लिए चुने गए 54 स्कूल कंप्यूटर से लैस हैं लेकिन असली चुनौती सभी एकलव्य आदिवासी स्कूलों में पाठ्यक्रम शुरू करना होगा.

कई लोगों के पास विशेष रूप से आंतरिक क्षेत्रों में पर्याप्त आईटी बुनियादी ढांचा या कनेक्टिविटी नहीं है.

ओडिशा में ईएमआरएस सिरिगुडा में शिक्षक समन्वयक संगीता रथ ने दूरदराज के स्कूलों के सामने आने वाली कुछ विशिष्ट व्यावहारिक बाधाओं पर प्रकाश डाला.

उन्होंने कहा, “छात्र वास्तव में कंप्यूटर और कोडिंग के बारे में जानने के लिए उत्साहित हैं. लेकिन उन्हें प्रैक्टिस करने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता है क्योंकि हमारे पास बहुत कम नए कंप्यूटर हैं और पुराने का उपयोग नहीं किया जा सकता. दूसरी समस्या खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी है. ये छात्र Code.org का उपयोग करके कोडिंग करते हैं. लेकिन जब इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध नहीं होता है तो वे कंप्यूटर लैब का उपयोग नहीं कर सकते हैं.”

इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने ईएमआरएस में स्मार्ट क्लासरूम स्थापित करने और बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ साझेदारी की है.

NESTS के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हम समस्या के समाधान के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं. स्कूलों से भी कंप्यूटर की मांग आ रही है, जिस पर हम गौर कर रहे हैं.”

कोडिंग से लेकर AI तक

एकलव्य छात्रों के लिए एआई की शुरूआत इन स्कूलों में प्रौद्योगिकी शिक्षा को बढ़ाने की व्यापक पहल में एक बड़ा कदम है.

NESTS अधिकारी ने पहले बताया था कि इस साल जनवरी में 54 एकलव्य स्कूलों में कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए मूलभूत कोडिंग कक्षाएं शुरू की गईं.

इसे सुविधाजनक बनाने के लिए NESTS ने अमेज़न फ्यूचर इंजीनियर (Amazon Future Engineer) कार्यक्रम जो वंचित समुदायों के लिए कंप्यूटर विज्ञान की शिक्षा प्रदान करने की वैश्विक कंपनी अमेज़न की पहल और इसके सहयोगी एनजीओ, लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन के साथ सहयोग किया.

NESTS के एक दूसरे अधिकारी ने कहा, “हम अगले दो महीनों में इन स्कूलों में कक्षा 8 से 9 के लिए एआई पाठ्यक्रम शुरू करने की योजना बना रहे हैं क्योंकि यहां के छात्र अब कोडिंग से परिचित हैं.”

इस साल से सीबीएसई ने कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए एक एआई पाठ्यक्रम पेश किया. जिसका उद्देश्य क्षेत्र के लिए आवश्यक कौशल और मानसिकता को बढ़ावा देना है.

हालांकि, आदिवासी स्कूलों में NESTS अधिकारी इस पाठ्यक्रम को अपना रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह उन छात्रों के लिए अधिक प्रासंगिक और सुलभ हो, जिन्हें अभी-अभी कंप्यूटर की बुनियादी बातों से परिचित कराया गया है.

पहले NESTS अधिकारी ने कहा, “इन छात्रों के लिए नवीनतम तकनीक के बारे में जानना महत्वपूर्ण है. हमने पाया है कि ये बच्चे, जिनमें से कुछ ने अपने स्कूलों में पहली बार कंप्यूटर देखा है और अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं, जो एक बहुत अच्छी बात है. कोडिंग पर हमारे प्रारंभिक कार्यक्रम की प्रतिक्रिया बहुत उत्साहजनक रही है.”

व्यावहारिक गतिविधियां, खेल, 20 घंटे का ‘कोड-ए-थॉन’ कोर्स

एएफई के तहत काम करने वाला शिक्षा गैर-लाभकारी लर्निंग लिंक फाउंडेशन, एआई पाठ्यक्रम को मैप करने और एकलव्य स्कूलों में पढ़ाए जा सकने वाले मॉड्यूल तैयार करने के लिए एनईएसटीएस के साथ सहयोग कर रहा है.

लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन के एएफई प्रोग्राम मैनेजर नित्यानंद चन्नूर ने कहा, “हम प्रौद्योगिकी के सैद्धांतिक सीखने के बजाय अनुभवात्मक सीखने पर जोर दे रहे हैं ताकि छात्रों के लिए इसे समझना आसान हो सके.”

उन्होंने कहा, “हमने सीबीएसई एआई पाठ्यक्रम की मैपिंग की है और प्रत्येक शिक्षण मॉड्यूल के लिए हमने अवधारणाओं की बेहतर समझ के लिए व्यावहारिक गतिविधियों के एक सेट की सिफारिश की है.”

चन्नूर ने बताया कि पाठ्यक्रम छात्रों को एआई में नवीनतम तकनीकों, एल्गोरिदम विकसित करने की प्रक्रिया और वांछित आउटपुट उत्पन्न करने के लिए मशीनों को प्रशिक्षित करने के लिए डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है, के बारे में सिखाएगा.

उन्होंने कहा कि 54 स्कूलों में बच्चों को एआई के बारे में पढ़ाना आसान होगा क्योंकि उन्हें पहले ही कंप्यूटर विज्ञान और कोडिंग की कुछ बुनियादी बातें सिखाई जा चुकी हैं.

उन्होंने कहा कि कक्षा 6-8 के छात्रों को कोडिंग के बुनियादी सिद्धांतों में तेजी लाने के लिए 20 घंटे का “कोड-ए-थॉन” कोर्स भी कराया गया.

लर्निंग लिंक्स फाउंडेशन में एएफई की क्षेत्रीय प्रमुख सुनाक्षी राजदान ने बताया, “हमने सबसे पहले इन स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षकों और कंप्यूटर लैब के प्रभारी लोगों के लिए दो दिवसीय प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया. बच्चों को एक ओपन-सोर्स लर्निंग प्लेटफॉर्म, Code.org का उपयोग करके कोडिंग सिखाई गई. हमने विज़ुअल प्रोग्रामिंग का उपयोग करके कोडिंग की अवधारणाओं को समझाने के लिए छात्रों के लिए वर्चुअल कक्षाएं भी आयोजित कीं.”

छात्रों को शामिल करने के लिए चन्नूर ने कहा कि उन्हें कंप्यूटर गेम के पीछे के विज्ञान के बारे में सिखाया गया था, क्योंकि बहुत सारे छात्र पहले से ही डिजिटल उपकरणों पर गेम्स खेलना जानते थे.

उन्होंने कहा, “हमने ‘उपभोग से सृजन’ का दृष्टिकोण अपनाया, जिसका अर्थ है कि उन्हें यह समझाना कि वे गेम, जिन्हें वे खेलना पसंद करते हैं, कोड का उपयोग करके कैसे विकसित किए जाते हैं. इसका उद्देश्य बच्चों की कोडिंग में रुचि जगाना है. पाठ्यक्रम के दौरान हमने उन्हें प्रोग्रामिंग की मूल बातें सिखाईं जैसे कि एल्गोरिदम, अनुक्रमण, स्थितियां आदि क्या हैं और इन्हें रोजमर्रा के दैनिक गतिविधियों में कैसे देखा जा सकता है.”

राज़दान ने कहा, Code.org में प्रत्येक गतिविधि के लिए विज़ुअल ब्लॉक हैं. उन्होंने बताया कि “छात्रों को बस अपने प्रोजेक्ट के मुताबिक विज़ुअल कोड को खींचना और छोड़ना होगा, जैसे कि गीला और सूखा कचरा अलग करना और इसे चलाना होगा यह देखने के लिए कि यह कैसे काम करेगा.”

चन्नूर ने कहा कि पढ़ाते समय छात्रों की मूल भाषा का उपयोग करना और उदाहरणों को स्थानीय बनाना महत्वपूर्ण है ताकि इनसे जुड़ना आसान हो सके.

उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए, अगर हमें कोई पीने की चीज़ तैयार करवानी हैं, तो हम उन्हें स्टेप बाय स्टेम चीज़े बताते है, उन्हें सीधा मिल्कशेक का उदाहरण नहीं देते हैं. हम उनसे कोई भी ऐसा ड्रिंक तैयार करने को कहते हैं जो उन्हें पीना पसंद है, और ऐसे ही हम उन्हें कोडिंग भी विकसित करना सिखाते हैं.”

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