अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में एक आदिवासी निकाय ने केंद्र से राज्य को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के कार्यान्वयन के दायरे से बाहर रखने की मांग की है.
छब्बीस बड़े जनजातीय समुदायों के महागठबंधन ‘अरूणाचल प्रदेश इंडिजीनस ट्राइब्स फोरम (AITF)’ ने भारत के विधि आयोग से राज्य को समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के दायरे से बाहर रखने का अनुरोध किया है.
आयोग को भेजे पत्र में एआईटीएफ ने कहा कि 26 बड़ी जनजातियों और 100 से अधिक उप जनजातियों वाले इस राज्य की भिन्न जनजातीय संस्कृति, परंपरा, बोलियां, विश्वास प्रणाली और लोकाचार हैं.
एआईटीएफ ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश की सामाजिक प्रणाली, रीति-रिवाज आधारित कानूनों और अधिकारों को संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त है और ये जारी रहने चाहिए.
पत्र में कहा गया है, ‘‘अरुणाचल प्रदेश छोड़कर शेष भारत में यूसीसी के क्रियान्वयन पर हमें कोई एतराज नहीं है क्योंकि अरूणाचल प्रदेश की अनोखी जनसांख्यिकी, भौगोलिक आकृति और सामाजिक प्रणाली है… इस राज्य को यूसीसी क्रियान्वयन के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए.’’
इससे पहले राज्य में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने यूसीसी के तत्काल कार्यान्वयन का विरोध करने का फैसला किया है. एनपीपी के राज्य महासचिव पाकंगा बागे ने कहा कि यह निर्णय 8 जुलाई को अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर में पार्टी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक में लिया गया.
एनपीपी के राज्य कार्यकारी अध्यक्ष लिखा साया ने संवाददाताओं से कहा कि हालांकि एनपीपी विकासात्मक मुद्दों पर भाजपा के साथ गठबंधन में है लेकिन क्षेत्रीय पार्टी अपनी विचारधारा का पालन करती है.
वहीं पाकंगा बागे ने कहा कि पार्टी ने राज्य की विविध बहुजातीय और बहु-आदिवासी संरचना के साथ-साथ इसकी मजबूत प्रथागत और पारंपरिक पहचान का हवाला देते हुए यूसीसी के विरोध में बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया है.
एनपीपी यूसीसी का विरोध क्यों कर रही है, इसका कारण बताते हुए बागे ने कहा कि क्योंकि अरुणाचल प्रदेश के अपने अनूठे कानून हैं इसलिए एनपीपी ने सर्वसम्मति से कुछ संशोधनों के साथ प्रथागत कानूनों के साथ जाने का प्रस्ताव अपनाया है.
उन्होंने कहा कि राज्य और केंद्र सरकारों को मौजूदा प्रथागत कानूनों को आदिवासी प्रथाओं के साथ संरेखित करने के लिए आवश्यक संशोधनों के साथ संहिताबद्ध करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.
समान नागरिक संहिता…
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) का सीधा अर्थ एक देश-एक कानून है. इसका मतलब है कि भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो. यानी हर धर्म, जाति, लिंग के लिए एक जैसा कानून. वर्तमान में विभिन्न धर्मों के अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं.
विधि आयोग ने 14 जून को राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मुद्दे पर सार्वजनिक और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों सहित हितधारकों से विचार मांगकर यूसीसी पर एक नई परामर्श प्रक्रिया शुरू की थी.
यूसीसी का कार्यान्वन दशकों से भाजपा के एजेंडे में रहा है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में यह भाजपा के प्रमुख चुनावी वादों में शुमार था. उत्तराखंड के अलावा मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक और गुजरात की भाजपा सरकारों ने इसे लागू करने की बात कही थी.
उत्तराखंड और गुजरात जैसे भाजपा शासित कुछ राज्यों ने इसे लागू करने की दिशा में कदम उठाया है. नवंबर-दिसंबर 2022 में संपन्न गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी समान नागरिक संहिता को लागू करना भाजपा के प्रमुख मुद्दों में शामिल था.
लेकिन बीते जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मध्य प्रदेश में एक रैली के दौरान इसकी जोरदार वकालत करने के बाद से इसे लेकर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है.
यूसीसी को लेकर पीएम मोदी की पुरजोर वकालत के बाद मेघालय, मिजोरम और नगालैंड में विभिन्न संगठनों ने इसके खिलाफ विरोधी तेवर अपना लिए हैं. छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज ने इसे आदिवासियों की पहचान और पारंपरिक प्रथाओं लिए खतरा बताया है.
विपक्षी दलों ने प्रधानमंत्री मोदी के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि पीएम कई मोर्चों पर उनकी सरकार की विफलता से ध्यान भटकाने के लिए विभाजनकारी राजनीति का सहारा ले रहे हैं. मुस्लिम संगठनों ने भी प्रधानमंत्री की यूसीसी पर टिप्पणी को गैर-जरूरी बताया था.