एक तरफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) फ्रांस दौरे पर हैं दूसरी तरफ यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा (Manipur violence) को लेकर भारत की तीखी आलोचना की है.
वहीं पिछले दो महीनों से हिंसा झेल रहे मणिपुर के मुद्दे पर यूरोपीय संसद में बहस की बात सामने आने पर भारत ने आपत्ति जताई है.
दरअसल, यूरोपीय यूनियन (European Union) की ब्रुसेल्स स्थित संसद में बुधवार को एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसे भारत सरकार ने खारिज कर दिया है. इस प्रस्ताव में आरोप लगाया गया है कि मणिपुर में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता के चलते ताज़ा हिंसा के हालात पैदा हुए हैं.
प्रस्ताव में चिंता जाहिर की गई है कि राजनीति से प्रेरित विभाजनकारी नीतियों से इस इलाके में हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. साथ ही प्रस्ताव में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति असहिष्णुता के चलते मणिपुर में हिंसा के हालात पैदा हुए हैं.
माना जा रहा है कि मणिपुर हिंसा को लेकर भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ रहा है.
भारत सरकार का कहना है कि मणिपुर का मुद्दा भारत के लिए एक आंतरिक मुद्दा है. भारत का कहना है कि यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पर बहस भारत के मणिपुर हिंसा पर अपना रुख स्पष्ट करने के बावजूद हो रही है.
मणिपुर पर प्रस्ताव में क्या कहा गया?
यूरोपीय संसद में 12 जुलाई को छह संसदीय दलों ने एक प्रस्ताव पेश किया जिसमें मणिपुर हिंसा को न रोक पाने के लिए मोदी सरकार और उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की आलोचना की गई. प्रस्ताव में हिंसा की निंदा करते हुए ईयू के शीर्ष अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वो स्थिति में सुधार के लिए भारत से बात करें.
मणिपुर में हिंसा पर प्रस्ताव में कहा गया है कि मणिपुर राज्य सरकार ने इंटरनेट कनेक्शन बंद कर दिए हैं और मीडिया द्वारा रिपोर्टिंग में गंभीर रूप से बाधा पैदा की गई है. हाल ही में हुए हत्याओं में सुरक्षा बलों के शामिल होने को लेकर प्रस्ताव में कहा गया है कि इससे प्रशासन के प्रति भरोसा और कम हुआ है.
प्रस्ताव के मुताबिक, मणिपुर में बीते 3 मई से हिंसा शुरू हुई और अब तक 120 लोगों की मौत हुई है. 50 हज़ार लोगों को अपने घरों को छोड़ना पड़ा है और 17 हज़ार घरों और 250 चर्च नष्ट कर दिए गए हैं.
यूरोपीय संसद ने कड़े शब्दों में भारतीय प्रशासन से हिंसा पर काबू करने की अपील की है और जातीय और धार्मिक हिंसा रोकने और सभी धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए तुरंत सारे जरूरी उपाय करने को कहा है.
यूरोपीय संसद के सदस्यों ने भारतीय प्रशासन से हिंसा की जांच के लिए स्वतंत्र जांच की इजाज़त देने, दंड से बच निकलने के मामलों से निपटने और और इंटरनेट बैन ख़त्म करने की मांग की है.
साथ ही उन्होंने सभी पक्षों से भड़काऊ बयानबाजी बंद करने, भरोसा कायम करने और तनाव में निष्पक्ष भूमिका निभाने की भी अपील की है.
भारत ने प्रस्ताव को किया खारिज
लेकिन भारत ने ईयू के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है. दिल्ली में पत्रकारों से बात करते हुए विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है. हम यूरोपीय संसद में होने वाली घटनाओं से अवगत हैं और हमने संसद के संबंधित सदस्यों से संपर्क किया है. हमने यह बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है.
हालांकि, विदेश सचिव ने मणिपुर के अखबार की एक रिपोर्ट पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सरकार ने यूरोपीय संसद तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ब्रुसेल्स में एक प्रमुख लॉबिंग फर्म ‘अल्बर एंड गीगर’ से संपर्क किया है, जिसने कथित तौर पर भारत सरकार की ओर से एक पत्र भेजा था.
अखबार ने लिखा है कि यूरोपीय संसद में पेश किए प्रस्तावों पर भारतीय जनता पार्टी पर हेट स्पीच को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया है.
इसमें कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी की नेतृत्व वाली सरकार विभाजनकारी जातीय नीतियों को लागू कर रही है. कुछ दलों ने आफस्पा, यूपीपीए और एफसीआरए नियमों के दुरुपयोग का आरोप लगाया है.
अमेरिका के राजदूत ने मणिपुर हिंसा पर कही थी ये बात
इससे पहले हाल ही में भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गारसेटी ने मणिपुर में स्थिति से निपटने के लिए अमेरिकी मदद की पेशकश की थी. उन्होंने कहा था कि यह एक “रणनीतिक” मुद्दा नहीं है बल्कि एक “मानवीय” मुद्दा है.
एरिक ने कहा था, “हम मणिपुर में शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. मुझे नहीं लगता कि जब हम बच्चों और लोगों को हिंसा में मरते देख रहे हैं तो हमें इसकी चिंता करने के लिए भारतीय होने की जरूरत है. अगर हमसे मदद मांगी गई तो हम हर तरह से मदद के लिए तैयार हैं. हम जानते हैं कि यह भारत का मसला है. हम शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उम्मीद है जल्द ही शांति कायम होगी.”
दो महीने से ज्यादा वक्त से हिंसा से जूझ रहा मणिपुर
गोलीबारी, कर्फ्यू, नाकाबंदी…मणिपुर पिछले दो महीने से ज्यादा वक्त से हिंसा की आग में जल रहा है. हिंसा में मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है और बड़ी संख्या में लोग पायलन की तरफ बढ़ रहे हैं.
राज्य में 3 मई को उस वक्त हिंसा भड़की थी जब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति समूह में शामिल किए जाने की मांग के खिलाफ पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकता मार्च’ का आयोजन किया गया था. इस दौरान राज्य में पहली बार हिंसा भड़क थी. और तब से सिलसिलेवार हिंसा अब तक जारी है.
3 मई से शुरू हुई हिंसा में अब तक 142 लोगों की मौत हो गई है और लगभग 54 हजार लोग विस्थापित हुए हैं.
(File image of the European Parliament, via their Facebook page)