असम (Assam) सरकार ने चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों के दैनिक न्यूनतम पारिश्रमिक में 18 रुपये की बढ़ोतरी करने का सोमवार को फैसला किया.
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (Himanta Biswa Sarma) की अध्यक्षता में हुई राज्य मंत्रिमंडल की एक बैठक में यह फैसला किया गया. पारिश्रमिक में बढ़ोतरी ब्रह्मपुत्र और बराक घाटी दोनों ही जगहों के बागान श्रमिकों पर एक अक्टूबर से लागू होगी.
मुख्यमंत्री ने बैठक में लिए गए इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा, ‘ब्रह्मपुत्र घाटी में दैनिक मजदूरी 232 रुपये से बढ़ाकर 250 रुपये कर दी गई है जबकि बराक घाटी में बागान श्रमिकों को अब 210 रुपये के बजाय 228 रुपये का पारिश्रमिक मिलेगा.’
मुख्यमंत्री ने ये भी कहा कि सरकार ने आने वाले दुर्गा पूजा के त्योहारों के लिए उद्यान प्रबंधन यानी गार्डन मैनेजमेंट को 20 फीसदी बोनस देने का निर्देश दिया है जिससे वो अपने मजदूरों को त्योहारी सीजन में अच्छी आर्थिक सौगात दे सकें.
उन्होंने कहा कि तत्काल प्रभाव से चाय बागान श्रमिकों और आदिवासी लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में तीन फीसदी आरक्षण भी होगा. ये मुख्य तौर पर नॉन क्रीमी-लेयर के लिए होगा.
अन्य राज्यों की तुलना में दिहाड़ी सबसे कम
असम में करीब 850 पंजीकृत चाय बागान हैं जिनमें से 555 चाय बागान ऊपरी असम इलाके में हैं. असम सरकार के श्रम विभाग द्वारा साल 2020 में 26 अगस्त को जारी की गई मज़दूरी की न्यूनतम दरों के अनुसार अर्ध-कुशल श्रमिक की मज़दूरी 352 रुपये 29 पैसे निर्धारित की गई थी जबकि अकुशल श्रमिक की मज़दूरी 303 रुपये 76 पैसे तय की गई.
हालांकि इसकी तुलना में चाय श्रमिकों की प्रतिदिन न्यूनतम मज़दूरी काफी कम है. देश के अन्य कई राज्यों में काम करने वाले चाय मज़दूरों की तुलना में भी असम के चाय श्रमिकों की दिहाड़ी सबसे कम है.
एक बार फिर से असम सरकार ने टी ट्राइब्स को ठगने का काम किया गया है. चाय श्रमिकों की लंबे वक्त से मजदूरी बढ़ाने की मांग को कुछ हद तक पूरा कर एक बार फिर मुख्यमंत्री ने समुदाय की विशिष्ट मांगों के लिए कोई ठोस प्रतिबद्धता पर स्पष्ट नहीं किया.
टी-ट्राइब को असम की राजनीति में एक अहम वोटबैंक के रूप में देखा जाता है. हर बार चुनाव से पहले कई वादे इनसे किए जाते हैं लेकिन आज तक ज़्यादातर वादे अधूरे ही हैं.
कौन हैं टी ट्राइब
टी ट्राइब आदिवासी समुदायों के वे सदस्य हैं जिन्हें अंग्रेजों द्वारा चाय बागानों में काम करने के लिए असम लाया गया था. टी ट्राइबल कहे जाने वाले आदिवासियों के पूर्वज वर्तमान यूपी, बिहार, झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से हैं.
आजादी से पहले उन्हें पूरे असम में 160 चाय बागानों में काम करने के लिए लाया गया था. उनमें से कई ने आजादी के बाद भी चाय बागानों में काम करना जारी रखा.
आजादी के बाद जब ये जनजातियां अपने गृह राज्यों में एसटी श्रेणी में आ गईं, तो असम में छोड़े गए परिवारों को “टी ट्राइब” के नाम से जाना जाने लगा.
वे एक विषम, बहु-जातीय समूह हैं और सोरा, ओडिया, सदरी, कुरमाली, संताली, कुरुख, खारिया, कुई, गोंडी और मुंडारी जैसी विविध भाषाएं बोलते हैं.
उन्होंने औपनिवेशिक काल में इन चाय बागानों में काम किया था और उनके वंशज आज भी राज्य में चाय बागानों में काम कर रहे हैं. वे असम को अपना घर बना रहे हैं और इसके समृद्ध सामाजिक-सांस्कृतिक ताने बाने को जोड़ रहे हैं. लेकिन हर बार सरकार इनकी मांगों और इनसे किए वादों का पूरा नहीं करती है.
अनुसूचित जनजाति दर्जे की मांग
चाय श्रमिक विभिन्न आदिवासी समुदायों से आते हैं जिन्हें अन्य राज्यों में एसटी का दर्जा दिया गया है इसलिए असम में भी वो ऐसा ही चाहते हैं. अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने से सदस्यों को आरक्षण और छूट जैसे कुछ सामाजिक लाभ मिलते हैं, जो वर्तमान में चाय जनजातियों के लिए नहीं हैं.
पिछले साल केंद्र सरकार ने अनुसूचित जनजाति सूची को अपडेट किया और इनमें पांच राज्यों- छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश की 12 जनजातियां और पांच उप-जनजातियां शामिल थीं.
लेकिन सूची में असम की छह जनजातियां – ताई अहोम, मोरन, मटक, चुटिया, कोच राजबंशी और चाय जनजाति को छोड़ दिया गया. ये जनजातियां लंबे समय से एसटी दर्जे की मांग कर रहे हैं.
बीजेपी ने इन समुदायों को एक नहीं बल्कि दो लगातार राज्य विधानसभा चुनाव घोषणापत्रों में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा किया था. लेकिन वादा पूरा करने में नाकाम रही हैं.
हालांकि, असम की सरकार का दावा है कि चाय बागान के आदिवासियों को वो सभी लाभ मिलते हैं जो किसी अनुसूचित जनजाति को हासिल होते हैं.
राज्य सरकार के इस दावे को स्वीकार भी कर लिया जाए तो भी इन समुदायों को राजनीतिक आरक्षण और हिस्सेदारी तो नहीं मिलती है. चाय बागानों के आदिवासी समुदायों के लिए यह निश्चित ही एक बड़ा मसला है.
असम में चाय जनजाति के लोगों का इतिहास डेढ़ सौ साल पुराना है लेकिन आज भी यह समुदाय राज्य के सबसे पिछड़े समुदायों में से एक माना जाता है.