HomeAdivasi Dailyओडिशा और आंध्र प्रदेश के आदिवासियों में ज़मीन का झगड़ा

ओडिशा और आंध्र प्रदेश के आदिवासियों में ज़मीन का झगड़ा

आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों में आदिवासियों की भाषाओं के मेल से एक अलग ही भाषा बन गई है. जिसमें ये आसानी से एक दूसरे से बातचीत करते हैं. लेकिन जंगल की ज़मीन पर खेती करने के मसले पर कई बार आदिवासी आमने-सामने आ जाते हैं. इसकी वजह है कि ज़्यादातर राज्य सरकारों ने वन अधिकार कानून 2006 को गंभीरता से लागू नहीं किया है.

ओडिशा के रायगड़ा जिले के रामनागुडा ब्लॉक के अंतर्गत लागुडा गांव के आदिवासियों का आरोप है कि जब उन्होंने पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के लोगों द्वारा चल रहे अतिक्रमण का विरोध किया तो कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया.

जिसके बाद उन्होंने इस मामले में रामनागुड़ा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है और अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने पर आंदोलन करने की धमकी भी दी है.

सूत्रों ने बताया कि लगभग छह महीने पहले आंध्र प्रदेश के केदारपुर के कुछ लोग जबरन इन आदिवासी इलाकों में घुस आए और खेती के लिए कृषि भूमि पर जुताई शुरू कर दी. यहां के ग्रामीणों ने इस मामले से स्थानीय राजस्व अधिकारियों को अवगत कराया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई.

आंध्र प्रदेश के अतिक्रमणकारियों ने कथित तौर पर वहां सब्जियों की खेती शुरू कर दी. ऐसे में और कोई विकल्प नहीं होने के कारण आदिवासियों ने इस उम्मीद में कटाई के मौसम का इंतजार किया कि इसके बाद उन्हें अपनी जमीन वापस मिल जाएगी.

हालांकि, अतिक्रमणकारी अगले दौर की खेती के लिए खेत की जुताई करने के लिए बुधवार को फिर से लौट आए. और फिर विरोध करने पर उन्होंने कथित तौर पर ग्रामीणों की पिटाई कर दी. जिसके बाद नाराज होकर आदिवासी संघर्ष मोर्चा के नेता तिरूपति गमांग के नेतृत्व में आदिवासी रामनागुड़ा पुलिस स्टेशन पहुंचे और शिकायत दर्ज कराई.

तिरूपति ने आरोप लगाया कि बार-बार शिकायतों के बावजूद ओडिशा के राजस्व अधिकारियों ने उनकी समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया. जिससे आंध्र के अतिक्रमणकारियों को उनके क्षेत्रों में बार-बार घुसपैठ करने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

साथ ही उन्होंने धमकी दी, “अगर प्रशासन हमारी समस्याओं का समाधान करने और इस तरह की घुसपैठ को रोकने में विफल रहता है तो आदिवासी जल्द ही तहसील कार्यालय के सामने धरना देंगे.”

आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा के सीमावर्ती इलाकों में जंगल की ज़मीन पर खेती करने के लिए कई बार आदिवासी आमने-सामने आ जाते हैं.

इसकी एक बड़ी वजह ये है कि आज भी आदिवासियों के लिए जीने के दो ही सहारे, खेती और जंगल से मिलने वाले वन उत्पाद हैं. इसलिए ज़मीन उसके लिए एक बड़ा मुद्दा है.

लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि वन अधिकार कानून 2006 के लागू होने के बावजूद इस तरह के टकराव देखे जाते हैं. क्योंकि प्रशासन जंगल की ज़मीन पर मालिकाना हक के लिए आदिवासियों के पट्टों को लंबे समय तक लंबित रखता है.

इस वजह से अक्सर ज़मीन के मालिकाना हक को लेकर वन विभाग और आदिवासियों या फिर आदिवासियों के बीच ही संघर्ष की स्थिति पैदा हो जाती है.

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में तो पोडु भूमि पर अधिकार का एक ऐसा मसला है जो लगातार बना रहता है. यह देखा जाता है कि जब भी मानसून शुरू होता है तो इस तरह के संघर्षों की ख़बरें बढ़ जाती हैं.

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