HomeAdivasi Dailyछत्तीसगढ़: बीजेपी को ‘घर वापसी’ के सहारे जीत की आस

छत्तीसगढ़: बीजेपी को ‘घर वापसी’ के सहारे जीत की आस

दिलीप सिंह जूदेव जशपुर के अंतिम शासक राजा विजय भूषण सिंह देव के छोटे बेटे थे. वह दो बार संसद सदस्य और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे. जबकि 2003 में उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री बनाया गया था.

उनके निधन के एक दशक बाद भी भाजपा छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में आदिवासी समुदायों (Tribal communities) के बीच अपनी किस्मत को पुनर्जीवित करने के लिए दिवंगत “घर वापसी” प्रचारक दिलीप सिंह जूदेव (Dilip Singh Judeo) की विरासत पर भरोसा कर रही है.

राज्य की 29 आदिवासी सीटों में से सिर्फ दो पर जीत हासिल करने वाली पार्टी ने जूदेव के मंझले बेटे प्रबल सिंह जूदेव (Prabal Singh Judeo) को कोटा और सबसे छोटी बहू संयोगिता सिंह जूदेव (Sanyogita Singh Judeo) को चंद्रपुर से टिकट दिया है. हालांकि यह माना जा रहा है कि ‘बहू रानी’ को सुरक्षित सीट दी गई है.

दोनों उम्मीदवार धर्मांतरण और विकास सहित अन्य मुद्दों पर मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं.

दिलीप सिंह जूदेव जशपुर के अंतिम शासक राजा विजय भूषण सिंह देव के छोटे बेटे थे. वह दो बार संसद सदस्य और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे.

दिलीप सिंह जूदेव जशपुर के अंतिम शासक राजा विजय भूषण सिंह देव के छोटे बेटे थे. वह दो बार संसद सदस्य और तीन बार राज्यसभा सांसद रहे. जबकि 2003 में उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री बनाया गया था.

उनके परिवार के मुताबिक, ‘छत्तीसगढ़ के आदिवासी राजा’ के रूप में जाने जाने वाले जूदेव भारत में किसी शाही परिवार के पहले और एकमात्र सदस्य थे, जिन्होंने आदिवासी लोगों के पैर धोए और उन्हें हिंदू धर्म में वापस लाया.

उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के ‘घर वापसी’ अभियान के लिए समर्पित कर दिया.

उनका पतन तब शुरू हुआ जब एक स्टिंग ऑपरेशन में उन्हें छत्तीसगढ़ में खनन अधिकारों के लिए एक होटल के कमरे में रिश्वत लेते दिखाया गया. जूदेव ने छत्तीसगढ़, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले नवंबर 2003 में इस्तीफा दे दिया था.

उनके निधन के बाद जूदेव की विरासत उनके छोटे बेटे और संयोगिता सिंह जूदेव के पति दिवंगत युद्धवीर सिंह जूदेव ने संभाली. युद्धवीर सिंह 2008 और 2013 में दो बार चंद्रपुर सीट जीते थे. लेकिन लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया और उन्होंने कमान अपनी पत्नी को सौंप दी. वह 2018 के राज्य चुनावों में हार गईं थी.

उस हार के बाद भी आरएसएस का मानना ​​है कि सिर्फ संयोगिता ही चंद्रपुर सीट के लिए उपयुक्त हैं क्योंकि उनके पति ने यहां बहुत काम किया है. इसके अलावा चंद्रपुर जूदेव की कर्मभूमि जशपुर के भी बहुत करीब है लेकिन यह एक आरक्षित सीट है.

भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा कि 2018 के चुनावों में चंद्रपुर में ‘बहू रानी’ के तीसरे स्थान पर रहने और प्रताप सिंह की राज्य की राजनीति में केवल “मामूली” उपस्थिति होने के बाद भी, दोनों को उम्मीदवार के रूप में चुना गया है क्योंकि आरएसएस इस बार टिकट वितरण में दबदबा ज्यादा रहा.

आरएसएस के एक पदाधिकारी ने दावा किया कि संघ के कई स्वयंसेवक जूदेव के रिश्तेदारों को उनके अभियानों में मदद करने के लिए पहले ही चंद्रपुर और कोटा चले गए थे.

उन्होंने कहा, “जूदेव के कारण ही भाजपा को छत्तीसगढ़ की आदिवासी आबादी में मजबूत समर्थन प्राप्त था. सिर्फ उनका परिवार ही खोए हुए विश्वास को पुनर्जीवित कर सकता है.”

प्रताप जूदेव अब 30.62 फीसदी अनुसूचित जनजाति आबादी वाले राज्य में संघ के ‘घर वापसी’ अभियान का चेहरा हैं. दक्षिणपंथी समूहों का मानना है कि एसटी को ईसाई मिशनरियों द्वारा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण का सामना करना पड़ रहा है.

प्रताप का कद पिछले नवंबर में पार्टी में तब बढ़ गया जब आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने जशपुर में जूदेव की एक प्रतिमा का अनावरण किया. अपने श्रोताओं को संबोधित करते हुए भागवत ने जूदेव की तुलना बिरसा मुंडा से की थी, जो आदिवासी समुदायों द्वारा पूजनीय हैं.

उन्होंने कहा था कि जूदेव और बिरसा मुंडा दोनों के मन में भारत के प्रति अगाध प्रेम था और उनके प्रेम ने भारतीयों को रास्ता दिखाया है. इस दौरान भागवत ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए प्रताप सिंह की भी प्रशंसा की थी.

अपनी एक सार्वजनिक बैठक में प्रताप, जो अमेरिका में हाई सैलरी वाली नौकरी छोड़कर 2013 में अपने पिता की मृत्यु के बाद भारत लौट आए थे. उन्होंने दर्शकों से पूछा कि कांग्रेस उन्हें “बाहरी व्यक्ति” कैसे कह सकती है, जबकि उसके अपने ही नेता “इटालियन” हैं.

प्रताप ने कहा, “मैं कोटा से नहीं लड़ सकता, जो मेरी जन्मभूमि और कर्मभूमि से सिर्फ 400 किलोमीटर दूर है जबकि उनके (कांग्रेस) अपने नेता इटली से आए हैं और भारत पर शासन करना चाहते हैं.”

वह कोटा से जीत को लेकर आश्वस्त दिख रहे हैं और जीत हासिल करने पर बड़ी भूमिका की भी उम्मीद कर रहे हैं.

उन्होंने मीडिया को बताया, “मुझे राज्य की सबसे कठिन सीट दी गई है. इस सीट पर बीजेपी कभी नहीं जीत पाई है. इसलिए यह साफ है कि मेरी जीत को ऐतिहासिक रूप में देखा जाएगा.”

कोटा के लोग जूदेव परिवार से जुड़े हैं लेकिन खराब सड़कों, अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर और नौकरियों सहित क्षेत्र में विकास की कमी के कारण वे भाजपा से नाराज हैं.

कोटा के कारोबारी पवन साहू ने कहा, “मैं इन लोगों के साहस की सराहना करता हूं जो राज्य में कोई विकास नहीं होने के लिए कांग्रेस को निशाना बना रहे हैं. जबकि 15 वर्षों तक भाजपा ने शासन किया था. इसका मतलब है कि छत्तीसगढ़ में पहले सड़कें थीं लेकिन कांग्रेस ने उन्हें गड्ढों में बदल दिया ताकि भाजपा ‘विकास नहीं’ होने का रोना रो सके.”

हालांकि संयोगिता सिंह जूदेव इस बात से असहमत थीं कि भाजपा राज्य में कोई विकास न होने के लिए कांग्रेस पर निशाना साध रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने इस राज्य के लिए बहुत कुछ किया है. यह कांग्रेस है जो हमारे द्वारा किए गए कार्यों को संरक्षित करने में विफल रही.

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