HomeAdivasi Dailyछत्तीसगढ़: जिसने बस्तर जीता उसने राज्य जीत लिया

छत्तीसगढ़: जिसने बस्तर जीता उसने राज्य जीत लिया

छत्तीसगढ़ के बस्तर ज़िला में मुख्य रूप से आदिवासी ही रहा करते हैं. इस राज्य का कुल जनसंख्या का 30 प्रतिशत आदिवासी है. इसलिए हर चुनाव में पार्टियों द्वारा बस्तर को महत्व दिया जाता है.

कहते है जिसने बस्तर जीत लिया उसने छत्तीसगढ़ जीत लिया. क्योंकि इस राज्य की जनसंख्या का 30 प्रतिशत आबादी आदिवासियों का है.

इस 30 प्रतिशत का भी सबसे बड़ा भाग बस्तर और सरगुजा में रहते हैं.

अगर अकेले बस्तर की बात की जाए तो यहां की 70 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. इसलिए जिस भी पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में आदिवासियों को दिल जीत लिया, उसने सत्ता पूरे राज्य में हासिल कर ली.

ये कहना भी गलत नहीं होगा की इस चुनावी महौल में सभी पार्टियों की नज़र बस्तर में ही टिकी है.

इस साल विधानसभा चुनाव (Assembly election) पूरे राज्य में दो चरण 7 नवंबर और 17 नवंबर को आयोजित किए जाएंगे.

चुनाव की तारीख घोषित होते ही सभी पार्टियों ने एड़ी चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया.

इस साल के चुनाव के बारे में बात करने से पहले आइए पिछले साल छतीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के क्या नतीजें रहे हैं. उसे जान लेते हैं

छत्तीसगढ़ में 15 साल लगातार बीजेपी (BJP) का ही दबदबा बना हुआ था. लेकिन 2018 के इस चुनाव में बीजेपी के लिए नतीजे अच्छे साबित नहीं हुए. वहीं कांग्रेस (Congress) ने बाजी मार ली.

कांग्रेस ने राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 68 सीटों पर विजय हासिल की. वहीं बीजेपी ने महज़ 15 सीटें और जीसीसी (जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़) ने 5, बीएसपी (बहुजन समाज पार्टी) ने 2 सीटें जीती थी.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक कांग्रेस की सत्ता छत्तीसगढ़ में 15 साल बाद आई है.

मौजूदा कार्यकाल में राज्य के मुख्यमंत्री कांग्रेस के नेता भूपेश बघेल (bhupesh baghel) है. आमतौर पर इस राज्य में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला रहता है.

लेकिन इस बार सर्व आदिवासी समाज (Sarva Adivasi Samaj) के प्रमुख अरविंद नेताम (Arvind Netam) और आम आदमी पार्टी ने भी छत्तीसगढ़ में चुनाव लड़ने का फैसला किया है.

इन दोनों ही पार्टियों ने अपने अधिकतर उम्मीदवारों के नाम भी घोषित कर दिए है. सर्व आदिवासी समाज के प्रमुख अरविंद नेताम ने हाल ही ये घोषणा की थी की वे सर्व आदिवासी समाज के नाम से नहीं बल्कि एक नई पार्टी के नाम से चुनाव लड़ेगें.

जिसका नाम ‘हमर राज पार्टी’ है. यह पार्टी राज्य की 90 सीटों में से 50 सीटों में चुनाव लड़ने की योजना बना रही है.

वहीं पार्टी ने अपनी पहली लिस्ट भी जारी कर दी है. इसके अलावा बीजेपी और आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं हैं.

आम आदमी पार्टी ने अब तक तीसरी लिस्ट घोषित कर दी है. इन तीनों लिस्टों में वे अब तक 33 विधायकों के नाम घोषित कर चुके हैं.

इसके अलावा बीजेपी ने भी दो लिस्ट जारी कर दी है और कांग्रेस ने भी अब तक 83 प्रत्याशियों के नाम  घोषित कर दिए हैं.

लेकिन छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल करने के लिए इन्हें आदिवासियों की मांग और दिक्कतों को समझना होगा और उनका भरोसा जीतना होगा.

बस्तर के आदिवासियों के मुद्दे

हाल ही में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बस्तर के जगदलपुर में दौरे के लिए आए थे. लेकिन उसके एक दिन पहले रैलियां निकाली गई और आंदोलन हुए. इतना ही नहीं नरेन्द्र मोदी के जगदलपुर पहुंचने से एक दिन पहले बस्तर बंद का ऐलान किया गया.

दरअसल ये बस्तर बंद करके ये आदिवासी अपनी आवाज केंद्र सरकार तक पहुंचाना चाहते थे. मूलभूत मुद्दों यानि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अलावा बस्तर में तीन बड़े मुद्दे हैं.

  • नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण को रोका जाए
  • एन.डी.एम.सी के प्लांट नंबर चार में हो रहे खनन को रोकना
  • जातिगत जनगणना

आइए इन तीनों मांगों को संक्षेप में समझते हैं.

नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण को रोकना

नगरनार स्टील प्लांट सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है. जाहिर है बस्तर में स्थापित इस प्लांट में कई आदिवासी भी काम करते होंगे.

इसलिए इसके निजीकरण से उन्हें कई परेशानियां हो सकती है. ऐसा माना जा रहा है की निजीकरण होने से कई सरकारी सुविधाएं आदिवासियों को नहीं मिल पाएगी.

एन.एम.डी.सी. के प्लांट 4 के खनन को रोकना

सितंबर के महीनें में खनन को रोकने के लिए आदिवासियों ने एन.एम.डी.सी के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन भी किया था. जिसे संगठन को कई लाखों का नुकसान हुआ था.

आदिवासियों का कहना है की संगठन के डिपॉजिट नंबर चार में प्लांट के काम से कई पेड़ों को काटा जाएगा. जिससे पर्यावरण को तो नुकसान होगा ही बल्कि इन पेड़ो के साथ आदिवासियों की धार्मिक मान्यता भी जुड़ी हुई है.

इसके खनन से 10 गांव के हजारों ग्रामीण प्रभावित भी होंगे. इसलिए वे नहीं चाहते की प्लॉट नंबर 4 पर खनन किया जाए

दरअसल खनन से पहले ग्राम सभा में प्रस्ताव पारित करना पड़ता है. उसके बाद ही इस प्लॉट में कोई खनन का कार्य किया जा सकता है. लेकिन संगठन इन नियमों का ना मानते हुए अपनी मर्जी के मुताबिक इस खान को खोलने की तैयारी कर रहे हैं.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक ये आदिवासी पहली बार प्रदर्शन नहीं कर रहे थे. इसे पहले भी ये कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं. लेकिन इनकी ये मांग अभी तक नहीं सुनी गई है.

जातिगत जनगणना

बस्तर के आदिवासियों का मानना है की 2011 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या जितनी बाताई जाती है.

उसे भी आधिक आदिवासी बस्तर में रहते हैं और उन्हें अपनी आबादी के बराबर आरक्षण नहीं मिल रहा है. इस राज्य में 70 लाख के करीब आदिवासी रहते हैं. जिसमें से सबसे अधिक बस्तर में ही बसे हुए है.

इसलिए बस्तर के आदिवासियों की मांग है की इनके ज़िले में फिर से जनगणना की जाएं. इसके साथ ही उन्हें आबादी के बराबर आरक्षण भी मिलना चाहिए.

माओवाद और सुरक्षाबलों का संघर्ष

बस्तर में लंबे समय से माओवादियों और सुरक्षाबलों के बीच संघर्ष चलता रहा है. हाल ही के दिनों में सरकार ने माओवाद प्रभावित ज़िलों मसलन नारायणपुर, कांकेर, सुकमा और दंतेवाड़ा में सुरक्षा बलों के नए कैंप स्थापित करने का फैसला भी किया है.

सरकार का कहना है कि बस्तर में शांति स्थापित करने के लिए सुरक्षा कैंपों का होना बेहद ज़रूरी है. वहीं कई आदिवासी संगठन ये कहते हैं कि सुरक्षा बलों की वजह से माओवादी उन्हें तंग करते हैं.

कई आदिवासी इलाकों में इस तरह की शिकायत भी मिलती है कि सुरक्षा बल माओवादियों को पकड़ने के नाम पर कई बार आदिवासियों पर ज़ुल्म करते हैं.

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