महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम ( एमएसआरटीसी ) के बस चालक गौरव आमले और कंडक्टर मिलन गवई ने एक सराहनीय काम किया है.
उन्होंने एक आदिवासी बच्चे के जीवन को ड्यूटी से ज़्यादा प्राथमिकता दी. इन दोनों ने बस को तय रुट से अलग रास्ते पर ले जाकर उसे स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया.
अफ़सोस की उनके इस प्रयास के बावजूद बच्चे की जान नहीं बचाई जा सकी.
सोमवार को गौरव आमले और मिलन गवई अपनी ड्यूटी पर थे. वे इमामबाड़ा डिपो की बस को भामरागढ़ से नागपुर ले जा रहे थे.
तब बीच में पेरिमिली से एक आदिवासी परिवार अपने बीमार बच्चे को लेकर बस में चढ़ गया.
गढ़चिरौली के अहेरी तालुका के कोरेली गांव के तालांडे परिवार ने पीलिया से पीड़ित 4 वर्षीय आदिवासी बच्चे आर्यन को उसकी तबीयत बिगड़ने पर गांव से 3 किलोमीटर दूर पेरिमिली प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) में भर्ती किया था.
पेरिमिली स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारियों ने उसे अहेरी के तालुका स्तर के ग्रामीण अस्पताल में रेफर कर दिया था जहां बेहतर सुविधाएं उपलब्ध थीं.
लेकिन उस बच्चे को दूसरे अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कोई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी. इसलिए वह परिवार बच्चे को चादर में लपेटकर बस में चढ़ गया.
बस चालक गौरव आमले और कंडक्टर मिलन गवई को निर्धारित मार्ग के अनुसार भामरागढ़ से नागपुर जाना था. बस में करीब 45 लोग पहले से मौजूद थे.
लेकिन बच्चे की गंभीर हालत को देखते हुए उन्होंने फैसला लिया कि उन्हें मानवता का रास्ता चुनकर पहले बच्चे को अस्पताल पहुंचाना चाहिए. फिर बस चालक ने बस को अलापल्ली की तरफ मोड़ दिया और पास के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले गया.
वहां पहुंचने पर स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टरों ने आर्यन को मृत घोषित कर दिया. इस खबर से आर्यन का परिवार, बस चालक, कंडक्टर और यात्री भी दुखी हो गए.
इमामबाड़ा डिपो प्रबंधक स्वाति तांबे ने अमले और गवई के मानवीय व्यवहार की प्रशंसा की है.
उन्होंने बताया कि तालांडे परिवार अलापल्ली से लगभग एक किलोमीटर पहले ही बस से उतरना चाहता था. क्योंकि उन्हें अहसास हो गया था कि आर्यन की जान खतरे में है.
तांबे ने बताया कि गवई को लगा कि परिवार को गांव में उतरने देना अमानवीय होगा और उन्होंने अन्य यात्रियों को इस बात के लिए सहमत किया कि उन्हें दूसरे रास्ते से जाना चाहिए.
गवई को पता चला कि अहेरी सरकारी अस्पताल 10 किमी दूर है और सबसे नजदीकी चिकित्सा सुविधा 2 किलोमीटर दूर अलापल्ली में है. बच्चे की गंभीर हालत के चलते वे उसे अलापल्ली ले गए.
इस तरह बस के ड्राइवर और कंडक्टर ने तो लोगों के सामने एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया और समाज को मानवता के पथ पर चलने का संदेश दिया.
लेकिन इस घटना से महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की ख़राब हालत भी समझ में आती है. इस मामले में दो बातें समझ से परे हैं एक कि इस बच्चे की हालत इतनी बिगड़ने तक उसे बड़े अस्पताल भेजने का इंतज़ार क्यों किया गया. दूसरी बात यह कि इस बच्चे को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए एंबुलेंस क्यों उपलब्ध नहीं थी.
महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में कुपोषण और बीमारियों से बच्चों की मौत के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है. इसके बावजूद वहां के आदिवासी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं में कोई सुधार नज़र नहीं आता है.