आजकल जातिगत जनगणना के बारे में हर कोई बात कर रहा है. इस विषय को लेकर नेता एक दूसरे पर तंज कसते नज़र आ रहे हैं. बिहार में इस विषय के बारे में सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है.
लेकिन अब बिहार के जातिगत जनगणना से अलग असम में मूल जनजातीय मुस्लिम समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की समीक्षा कि जाएगी.
इसका ऐलान मंगलवार को असम सरकार ने किया. जिसमें यह कहा गया था की राज्य के 5 मूल जनजातीय मुस्लिम समुदायों के सामाजिक-आर्थिक स्थिति की समीक्षा यानी की सर्वे किया जाएगा.
इस सर्वे का उद्देश्य उनकी उपस्थिती का पता लगाकर उनका उत्थान करने के प्रति एक बड़ा कदम उठाना है.
इस ऐलान के बाद मंगलवार को ही असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा ने एक बैठक की. इस बैठक में राज्य सचिवालय के वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल थे और बैठक के दौरान राज्य के मूल जनजातीय मुस्लिम समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की समीक्षा पर विस्तार से चर्चा की गई थी.
इस बात कि जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉम एक्स(X)पर दिया.
जिसमें उन्होंने लिखा की मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जनता भवन में एक बैठक के दौरान यह फैसला लिया. उन्होंने अधिकारियों को असम के मूल जनजातीय मुस्लिम समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति समीक्षा करने का निर्देश दिया है.
इसके साथ लिखा है की राज्य के मूल जनजातीय मुस्लिम समुदायों में गोरिया, मोरिया, देशी, सैयद और जोल्हा आदि शामिल हैं. इसमें कहा गया है कि इस सर्वे के नतीजे मूल जनजातीय अल्पसंख्यकों के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षणिक बेहतरी के उद्देश्य से कदम उठाने के लिए राज्य सरकार का मार्गदर्शन करेंगे.
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने सोमवार को जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए.
बिहार में नीतीश कुमार नीत सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए. इसके मुताबिक राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है.
वहीं असम में विपक्ष के नेता देबब्रत सैकिया ने कहा कि राज्य में सभी समुदायों खासतौर पर पिछड़े वर्ग से जुड़े लोगों का सर्वेक्षण किया जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि गोरिया और मोरिया मूल मुस्लिम समुदाय हैं और ओबीसी श्रेणी से संबंधित हैं। फिर सरकार चयनात्मक सर्वेक्षण क्यों कर रही है? अगर उनका इरादा अच्छा है तो ओबीसी के साथ-साथ एससी और एसटी सभी के लिए सर्वेक्षण होना चाहिए.
हालांकि, इस बात पर ध्यान देने कि जरूरत है कि ये सब मुद्दे क्या जनजाति और अलग-अलग धर्मों के लोगों का भरोसा जीतकर उनसे वोट मांगने का एक तरीका है.