HomeAdivasi Dailyआदिवासी छात्रों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट चिंता की बात

आदिवासी छात्रों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट चिंता की बात

आदिवासी छात्रों को अपनी बस्तियों के बाहर के छात्रों के साथ तालमेल बैठाने और अपनी पहचान बनाने में भी मुश्किल होती है.

केरल में आदिवासी छात्रों का स्कूल ड्रॉपआउट रेट भले ही सरकार की कोशिशों से कुछ कम हुआ है, लेकिन फिर भी जारी है.

राज्य के सामान्य शिक्षा विभाग के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 10 सालों में स्कूल छोड़ने वाले कुल 1,39,916 छात्रों में से अनुसूचित जनजाति (एसटी) के छात्रों की संख्या लगभग 19,000 थी.

इसके अलावा, विभाग ने यह भी पाया कि आदिवासी छात्रों में स्कूल छोड़ने की दर नौवीं और दसवीं कक्षा में अपने चरम पर पहुंचती है.

समग्र शिक्षा केरल (एसएसके) के विशेष कार्यक्रम अधिकारी अमूल रॉय ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि स्कूल छोड़ने के पीछे की वजहें अलग अलग हैं. लेकिन सबसे बड़ी वजह है पढ़ाए जाने वाले विषय को समझने में मुश्किल.

“पहले तो उन्हें मलयालम में पढ़ाई करने में दिक्कत आती है. ऊपर से विज्ञान, गणित और अंग्रेजी भी उन्हें मुश्किल लगती है. इसलिए, चुनौती लेकर विषयों को सीखने की कोशिश करने के बजाय, वे पढ़ाई छोड़ने का आसान रास्ता चुनते हैं,” उन्होंने कहा.

एसएसके ने समस्या से निपटने के लिए आदिवासी भाषाओं में लिखी गई किताबें निकाली हैं. इसके अलावा, वीडियो रिकॉर्ड किए जाते हैं, और उन्हें आदिवासी बस्तियों के स्टडी सेंटर में चलाया जाता है.

आदिवासी छात्रों के पढ़ाई छोड़ने का एक दूसरा कारण यह है कि बच्चों, खासकर किशोरों को घरेलू आय में मदद करने के लिए काम करने के मजबूर किया जाता है.

“यह मुख्य रूप से कॉफी और काली मिर्च की फसल के मौसम के दौरान होता है. बच्चे कक्षाएं छोड़ते हैं और एक बार दूर रहने के बाद वे कभी नहीं लौटते” सामान्य शिक्षा विभाग के अध्ययन में कहा गया है.

अमूल ने यह भी बताया कि इन छात्रों को अपनी बस्तियों के बाहर के छात्रों के साथ तालमेल बैठाने और अपनी पहचान बनाने में भी मुश्किल होती है.

“दूसरे बच्चे उन्हें चिढ़ाते हैं और इससे वे असुरक्षित महसूस करते हैं. साथ ही, इन बच्चों को स्वतंत्रता की आदत होती है. लेकिन, जब स्कूल आते हैं तो खुद को बहुत अनुशासित माहौल में पाते हैं, जिससे तालमेल बिठाना उनके लिए मुश्किल होता है, और इस वजह से भी वो बाहर हो जाते हैं,” उन्होंने कहा.

ऊपर से इन आदिवासी बच्चों के माता-पिता ज्यादातर अनपढ़ होते हैं, और शिक्षा के महत्व को नहीं समझ पाते. इसके अलावा आदिवासी इलाकों में नशीले पदार्थों और शराब का सेवन भी होता है, और कभी कभार बच्चे इन चीजों के आदि हो जाते हैं, तो पढ़ना और स्कूल जाना पीछे छूट जाता है.

अध्ययन के अनुसार, आदिवासी छात्रों के बीच ऊंची ड्रॉपआउट दर के लिए एक और वजह स्कूलों द्वारा ग्यारहवीं कक्षा में खराब प्रदर्शन करने वाले छात्रों के परिणामों को रोकने का फैसला है.

दूसरी वजह है कि कुछ आदिवासी समुदायों में लड़कियों की शादी बहुत कम उम्र में कर दी जाती है, जिसके बाद उन्हें गांव से बाहर जाने की अनुमति नहीं होती. यह आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा है.

लड़कियों को स्कूल वापस लाने का इकलौता तरीका उनके माता-पिता और आदिवासी सदस्यों को शिक्षित करना है.

एक और मुद्दा जो आदिवासी बच्चों को स्कूली शिक्षा छोड़ने पर मजबूर करता है, वो है दूर स्थित स्कूलों तक यात्रा करने की झिझक.

इसका हल निकालने के लिए, एसएसके ने आदिवासी लड़कों के लिए स्कूलों के पास ही रहने का इंतजाम किया है. वायनाड, निलंबूर, मरयूर और तिरुवनंतपुरम में स्थापित ये निवास स्थल आदिवासी छात्रों को उनके स्कूली दिनों के दौरान सुरक्षित आवास देते हैं.

एक और समस्या है बच्चों का 10वीं के बाद स्कूल छोड़ना, क्योंकि ज्यादातर बच्चे दसवीं के बाद अपने माता पिता के साथ काम पर निकल जाते हैं. इसके लिए SSK केरल स्टेट ओपन स्कूल (SCOLE) सुविधा का उपयोग कर रहा है.

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