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नागरहोल टाइगर रिजर्व के दो आदिवासी गांव का अंधेरा ख़त्म होने की उम्मीद

इन आदिवासी बस्तियों में आज तक बिजली जैसी ज़रूरी सुविधा नहीं पहुंच सकी है. अब यह उम्मीद बंधी है कि जल्दी ही इन बस्तियों के लोगों को भी बिजली नसीब होगी. जिसके लिए एक संगठन, क्रेस्ट द्वारा माइक्रोग्रिड स्थापित किए गए है.

कर्नाटक (Karnataka) के मैसूर ज़िले (Mysuru district) के नागरहोल टाइगर रिजर्व के पास स्थित दो आदिवासी बस्तियों (two tribal hamlets near the nagarhole tiger reserve) को जल्द ही माइक्रोग्रिड पर आधारित नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से बिजली (provide electricity through microgrid on the basis of renewable energy) की सुविधा उपलब्ध करवाई जाएगी.

इन दो आदिवासी बस्तियों के नाम बिलेनाहोसल्ली (Billenahosalli) और लक्ष्मणपुरा (Lakshmanapura) बताए जा रहे हैं.

इन आदिवासी बस्तियों में आज तक बिजली जैसी ज़रूरी सुविधा नहीं पहुंच सकी है. अब यह उम्मीद बंधी है कि जल्दी ही इन बस्तियों के लोगों को भी बिजली नसीब होगी.

सेंटर फॉर रिन्यूएबल एनर्जी एंड सस्टेनेबल टेक्नोलॉजी (CREST), NIE द्वारा इन बस्तियों में माइक्रोग्रिड स्थापित किए गए है.

इस माइक्रोग्रिड के अंतर्गत अलग अलग नवीकरणीय ऊर्जा शामिल है, जिसके माध्यम से इन दोनों बस्तियों को बिजली प्रदान की जाएगी.

इस बारे में मिली जानकारी के मुताबिक ये बिजली सुविधा इन बस्तियों के 75 आदिवासी घरों को रोशन करेगी. इन घरों को बिजली देने के लिए सौर ऊर्जा और बायोडीजल का उपयोग किया जाएगा.

इस प्रोजेक्ट की शुरूआत छ: महीने पहले हुई थी और इसे बनाने में 30 लाख रुपये की लागात आई थी. अब ये माइक्रोग्रिड प्रोजेक्ट बिजली सुविधा देने के लिए पूरी तरह से तैयार है.

क्रेस्ट (CREST) के प्रमुख शामसुंदर सुब्बाराव बताते है की माइक्रोग्रिड प्रोजेक्ट (microgrid project) के लिए इन बस्तियों का चयन एक सरकारी संगठन डीईईडी द्वारा किया गया था.

इस संगठन ने चयन से पहले इन दोनों ही बस्तियों में सर्वेक्षण किया, जिसके बाद ही इन्हें प्रोजेक्ट के लिए चुना गया था.

उन्होंने ये बताया की हमने 8 किलोवाट के सौर पैनल और 7.5 किलोवाट के बायोडीजल जनरेटर स्थापित किए है.

इसके अलावा इन दोनों बस्तियों के सभी 75 घरों में 5 वाट की तीन एलईडी लाइटों का इस्तेमाल किया जा सकता है, सिर्फ इतना ही नहीं इसके ज़रिए स्ट्रीटलाइट्स का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

शामसुंदर ने ये भी बताया की आदिवासियों को अगले एक साल तक बिजली मुफ्त दी जाएगी. उसके बाद एक स्थायी मॉडल के माध्यम से इसे आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाएगी.

आत्मनिर्भर के लिए स्थानीय लोग (क्रेस्ट) CREST को पोंगामिया और अन्य बीज देगें, जिनका उपयोग बायोडीजल के ज़रिए बिजली उत्पादन में किया जाएगा.

इसके अलावा (क्रेस्ट) CREST आदिवासी लोगों को रोज़गार में भी मदद करेगा. जिसके लिए आटा मिलें और अन्य उद्योग स्थापित करके रोज़गार उपलब्ध करवाएं जाएंगे.

ये दो आदिवासी बस्तियां रिजर्व फॉरेस्ट में बसी हैं. इसलिए यहां तक सड़क बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं पहुंचाना आसान नहीं होता है.

क्योंकि इसके लिए वन विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है.

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