मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तीन दिन बाद यानि 17 नवबंर को मतदान होने हैं. राज्य के शहरी क्षेत्रों में चुनाव प्रचार के लिए सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के बीच आदिवासी बहुल क्षेत्र झाबुआ के उम्मीदवार अभी भी पारंपरिक ‘खाटला बैठकों’ और ‘हाट जुलूस’ के साथ मतदाताओं को खुश करने में लगे हुए हैं.
भील आदिवासियों के गढ़ झाबुआ के स्थानीय लोगों की बोली में चारपाई को ‘खाटला’ कहते हैं. इसलिए उम्मीदवार खाट पर बैठकर मतदाताओं से बातचीत करने का तरीका बनाया है.
झाबुआ विधानसभा के उम्मीदवारों का मानना है की ‘हाट’ (आदिवासियों का स्थानीय बाजार) में निकाली जाने वाली खटला बैठकों और जुलूस काफी प्रभावी होता है. झाबुआ के दूरदराज में रहने वाले आदिवासी समुदाय और बस्तियों में रहने वाले मतदाताओं के साथ बेहतर तरीकों से उनसे जुड़ने में मदद मिल सकता है.
वहीं आदिवासी बहुल झाबुआ निर्वाचन क्षेत्र में ऐसी बैठकें बढ़ गई हैं, जो आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है क्योंकि 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर है.
दरअसल हाल ही में झाबुआ के एक ग्रामीण इलाके में शाम ढलने के बाद हुई ऐसी ही एक बैठक के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार विक्रांत भूरिया ने कहा कि खाटला बैठक आदिवासियों की संस्कृति से जुड़ी है. यह केवल चुनाव के बारे में नहीं है. यहां के लोग वैसे भी खाट पर बैठते हैं और सभी मुद्दों को आपसी बातचीत से सुलझाया करते हैं.
इसी के साथ उन्होंने कहा की हाट झाबुआ के आदिवासी इलाकों में सामाजिक बातचीत के लिए प्रमुख स्थान माना गया है. भाजपा प्रत्याशी भानु भूरिया इन साप्ताहिक बाजारों में खाटला सभाओं के साथ जुलूस निकालकर मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं.
बोरी गांव में ऐसे ही एक जुलूस के दौरान बीजेपी उम्मीदवार ने कहा, ”चुनाव के दौरान शहरी इलाकों में सोशल मीडिया लोकप्रिय हो रहा है. लेकिन यहां खटला बैठकों का अपना आकर्षण है. खाटला (चारपाई) उनके लिए गौरव और सम्मान है.”
आदिवासी क्षेत्रों में किसी व्यक्ति को खाट पर बैठाना सम्मान का संकेत होता है और खाट पर ऐसी बैठकों के दौरान बड़े खुशी के साथ बातचीत होती है. झाबुआ में ‘खाटला’ सभाएं राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा हो गया है और बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशियों के बीच इस बात की होड़ मची हुई है.
झाबुआ में खटला सभाओं के पिछे चुनावी रणनीति का भौगोलिक कारण भी है. इस क्षेत्र की एक बड़ी जनजातीय आबादी दूरदराज के इलाकों में स्थित ‘फलियास’ (घाटियों पर बने घरों वाली बिखरी हुई बस्तियां) में रहती है. जहां सार्वजनिक बैठकें आयोजित करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो सकता है.