ओडिशा के राउरकेला (Rourkela) और बांडमुंडा ( Bondamunda) के बीच बन रही रेलवे लाइन का आदिवासियों द्वारा विरोध किया जा रहा है. यह रेलवे लाइन दक्षिण पूर्व रेलवे (SER) द्वारा बनाई जा रही है.
आदिवासियों की ये मांग है की रेलवे लाइन के निर्माण कार्य को शुरू करने से पहले भूमि स्वामित्व के विवाद का समाधान किया जाए.
इस प्रदर्शन में बीरमित्रपुर के विधायक जॉर्ज तिर्की और बंडामुंडा रेलवे क्रियानुष्ठान समिति (बीआरकेसी), महेश्वर तांती जुड़े हुए है.
6 नवंबर, सोमवार को प्रदर्शन के दौरान सभी आदिवासियों ने मिलकर पानपोष सब-कलेक्टर बिजय नायक को ज्ञापन सौंप दिया था.
प्रदर्शनकारियों द्वारा ये आरोप लगाया जा रहा है की ओडिशा सरकार ने अभी तक कानूनी तौर पर ज़मीन रेलवे प्रशासन को नहीं सौंपी है. इसके अलावा उन्होंने ये भी इल्जाम लगाया की रेलवे प्रशासन ने बिना किसी आवश्यक अनुमति के निर्माण कार्य शुरू कर दिया है.
स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) ने भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 का हवाला देते हुए आदिवासियों की ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया था. जिसे बाद में कंपनी ने राज्य सरकार को वापस दे दिया.
लेकिन राज्य सरकार ने ये ज़मीन अपने पास ही रख ली.
प्रदर्शनकारियों ने ये आग्रह किया है की राज्य सरकार जल्द से जल्द आदिवासियों और रेलवे प्रशासन के बीच चल रहे विवाद का समाधान निकाले.
प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि वक्त रहते राज्य सरकार द्वारा कोई भी समाधान नहीं दिया गया तो वो राउरकेला के रास्ते एसईआर की हावड़ा-मुंबई मुख्य लाइन को पूरी तरह से बाधित कर देंगे.
तांते ने कहा की दक्षिण पूर्व रेलवे लाइन बिना किसी कानूनी दस्तवेजों के अलग अलग जगह पर निर्माण कार्य कर रही है. वहीं आदिवासियों की याचिका राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) में लंबित है. जिसका फायदा रेलवे प्रशासन द्वारा उठाया जा रहा है.
इसी सिलसिले में सितंबर में जोनल रेलवे उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति (जेडआरयूसीसी) की 103वीं बैठक हुई थी. बैठक के दौरान, एसईआर के महाप्रबंधक अनिल कुमार मिश्रा ने जनता की कई मांगों को खारिज कर दिया.
जिसमें उड़ीसा संपर्क क्रांति एक्सप्रेस का मार्ग बदलना और नई ट्रेन सेवाओं की शुरूआत शामिल थी.
आदिवासी इलाकों मे ज़मीन अधिग्रहण और विस्थापन एक कड़वी सच्चाई है. अफ़सोस की बात ये है कि आदिवासी की ज़मीन लेने की प्रक्रिया में ज़रूरी पारदर्शिता भी नहीं बरती जाती है.
इसके अलावा विस्तापित आदिवासियों के पुनर्वास का काम भी अक्सर ढंग से पूरा नहीं किया जाता है.