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मणिपुर: पिछले 7 साल में बांटे गए बेशुमार गन लाइसेंस

राज्य में जारी बंदूक लाइसेंस को लेकर गृह मंत्रालय से मिले आंकड़े बताते हैं कि इस साल 20 जून तक 37.7 लाख सक्रिय बंदूक लाइसेंस थे. यह संख्या दिसंबर 2016 - जब डेटा आखिरी बार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हुआ था, में सक्रिय लाइसेंसों से 4 लाख से अधिक है.

पिछले दो महीनों से मणिपुर कुकी और मैतेई समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष की आग में झुलस रहा है. जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 142 लोगों की मौत हो चुकी है. दोनों समुदाय हथियारों के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर में जब इंफ़ाल घाटी में कई लोगों को हथियार ले जाते देखा गया और इनके बारे में पूछा गया तो उनका कहना था ये वैध हथियार हैं. जबकि दूसरे समुदाय के पास लाइसेंस नहीं हैं.

मणिपुरा की इस प्रचलित बंदूक संस्कृति के बारे में द वायर ने दावा किया है कि पिछले 7 सालों में मणिपुर सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में बंदूकों के सबसे अधिक लाइसेंस जारी किये हैं. इस मीडिया समूह ने दावा किया है कि सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के तहत आवेदन दायर किया गया था. जिसके जवाब से पता चला कि मणिपुर ने पिछले सात वर्षों में पूर्वोत्तर क्षेत्र में सबसे अधिक बंदूक लाइसेंस दिए हैं.

राज्य में जारी बंदूक लाइसेंस को लेकर गृह मंत्रालय से मिले आंकड़े बताते हैं कि इस साल 20 जून तक 37.7 लाख सक्रिय बंदूक लाइसेंस थे. यह संख्या दिसंबर 2016 – जब डेटा आखिरी बार सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हुआ था, में सक्रिय लाइसेंसों से 4 लाख से अधिक है.

अपडेटेड आंकड़ों के मुताबिक, मणिपुर में 35 हज़ार 117 सक्रिय बंदूक लाइसेंस हैं. यह संख्या दिसंबर 2016 में 26 हज़ार 836 थी. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार मार्च 2017 में सत्ता में आई. तब से लगभग 8 हज़ार बंदूक लाइसेंस जारी किए गए हैं.

पूर्वोत्तर राज्यों पर नज़र डालें तो सिर्फ नगालैंड में बंदूक लाइसेंस में तुलनीय वृद्धि हुई है लेकिन मणिपुर में अधिक लाइसेंस दिए गए. हालांकि अपडेटेड आंकड़ों के मुताबिक, कुल मिलाकर पूर्वोत्तर में सक्रिय बंदूक लाइसेंसों की सबसे अधिक संख्या नगालैंड में है.

वैसे तो भारत में बंदूक रखने के नियम सख्त हैं. कानूनी रूप से हथियार रखने के लिए किसी नागरिक को पहले लाइसेंस के लिए आवेदन करना होता है और इस प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिए भी कई नियम और कानून हैं.

मणिपुर के पूर्व पुलिस कमिश्नर राज कुमार निमाई ने डेटा को लेकर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा, “सिर्फ पांच सालों में जारी किए गए 8 हज़ार हथियारों (लाइसेंस) का आंकड़ा काफी चौंका देने वाला है और जिला कलेक्टर या मजिस्ट्रेट राज्य को बताए बिना इतनी क्षमता में हथियार जारी नहीं कर सकते हैं. अगर ऐसा हुआ है तो कलेक्टरों पर अधिकारियों का दबाव रहा होगा.”

उन्होंने आगे कहा, “अगर सरकार न चाहे तो कोई भी कलेक्टर उस स्तर पर लाइसेंस जारी नहीं करेगा.” असम के पूर्व डीजीपी जीएम. श्रीवास्तव का कहना है, “सभी हथियारों का लाइसेंस नहीं लिया जा सकता, हो सकता है कुछ चीन और म्यांमार से लाए गए हों. म्यांमार सरकार से नहीं बल्कि म्यांमार के एक समूह से; चीन की रुचि पूर्वोत्तर में आज से नहीं बल्कि 1947 से है.”

गन-कल्चर को लेकर चिंता

राज्य में दो महीने से जारी हिंसा शुरू होने के बाद से लोगों द्वारा थानों और पुलिस शस्त्रागारों से हथियार लूटने की खबरें आई थीं. इस तरह लूटे गए या छीने गए हथियार और गोला-बारूद वापस करने के लिए कई जगहों पर ड्रॉप बॉक्स लगाए गए हैं. भाजपा विधायक और राज्य कैबिनेट में मंत्री एल. सुसींद्रो मैतेई ने इंफाल पूर्व के खुरई में अपने आवास पर एक ड्रॉप बॉक्स लगाया था.

मणिपुरा में यह देखा गया है कि लोग खुलेआम अत्याधुनिक हथियार ले जा रहे थे. मणिपुर में दर्ज हुई एक एफआईआर में एके और इंसास राइफल, बम और अन्य अत्याधुनिक हथियारों की लूट का संकेत मिला है.

राज्य पुलिस के अनुमान के मुताबिक, मई में भीड़ द्वारा कम से कम 3,500 हथियार और 5 लाख से अधिक गोला-बारूद लूटे गए. खबरों के मुताबिक, जून के अंत तक 1,800 हथियार बरामद किए गए थे.

राज्य में हिंसा शुरू होने के बाद से बंदूक लाइसेंस के लिए आवेदनों में भी बढ़ोतरी हुई है. एक अधिकारी ने स्क्रॉल डॉट कॉम को बताया, ‘आमतौर पर हमें एक महीने में औसत आवेदन 50 से अधिक नहीं मिलते हैं.

घटना के बाद से हमें कम से कम 300 आवेदन प्राप्त हुए हैं.’ अधिकारियों ने इस वेबसाइट को यह भी बताया कि हालांकि आवेदनों में वृद्धि हुई है लेकिन नए लाइसेंस नहीं दिए जा रहे हैं. इस हफ्ते सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया में आई ख़बरों का हवाला देते हुए थानों से ‘बड़ी संख्या में हथियारों’ की लूट के बारे में मणिपुर सरकार से सवाल किया था.

मणिपुर में हिंसा की शुरुआत

दो महीने पहले 3 मई को मणिपुर में हिंसा शुरू हुई थी. इस हिंसा में अब तक करीब 150 लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं. इसके अलावा हजारों लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली है.

हिंसा तब शुरु हुई थी जब मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति समूह में शामिल किए जाने की मांग के खिलाफ पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकता मार्च’ का आयोजन किया गया था.

मणिपुर की कुल जनसंख्या में मैतेई समुदाय का हिस्सा लगभग 53 फीसदी है. इस समुदाय के ज्यादातर लोग इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं जनजाति समुदाय के नागा और कुकी लोग मणिपुर की जनसंख्या में 40 फीसदी हिस्सा रखते हैं और राज्य के पहाड़ी इलाकों में रहते हैं.

दो महीने से ज्यादा हो गए हैं लेकिन राज्य में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. 10 जुलाई को ही राज्य के पश्चिम कांगपोकपी इलाके में हिंसक झड़प के चलते एक पुलिसवाले की मौत हो गई, वहीं 10 लोग घायल हो गए. ये झड़प 9 और 10 जुलाई की दरमियानी रात को हुई.

अधिकारियों ने बताया कि 10 जुलाई को सुबह 3 से 6 बजे तक शांति थी लेकिन उसके बाद फायेंग और सिंगडा गांवों से गोलियां चलने की आवाज आई. गोलियां कांगपोकपी जिले के कांगचप जिले में स्थित गांवों और पहाड़ों की तरफ चलाई जा रही थीं.

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