एक हफ्ता चलने वाले जाति भागीदारी उत्सव में रंग-बिरंगे परिधान पहनकर और विभिन्न वाद्ययंत्र बजाते हुए लगभग 17 समुदाय के आदिवासियों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया है.
कल यानी बुधवार को यूपी के संगीत नाटक अकादमी में हफ्ता भर चलने वाले जाति भागीदारी उत्सव की शुरुआत की गई है.
इस कार्यक्रम का आयोजन उप्र लोक एवं जनजातीय संस्कृति संस्थान, संस्कृति विभाग, जनजातीय कल्याण विभाग, पर्यटन विभाग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान के द्वारा कराया गया है.
कार्यक्रम की शुरुआत आदिवासी नेता बिरसा मुंडा के 148वें जन्मोत्सव के दिन किया गया है. जिसमें राज्य के पर्यटन और संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह, विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम, और राज्य मंत्री और समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव, असीम अरुण और डॉ हरिओम जैसे बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हुई.
उन्होंने आयोजन में हुए कला रुपों और प्लेटफार्मों को संरक्षित करने के ऊपर जोर दिया है. उन्हीं में से एक राज्य के पर्यटन और संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह के अनुसार आदिवासी संस्कृतियों ने हमेशा प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में बहुत योगदान दिया है. अब समय आ गया है कि राज्य सरकारें आदिवासी कला और संस्कृति का उत्थान करके इसे आगे बढ़ाएं.
जाति भागीदारी उत्सव
इस कार्यक्रम की शुरुआत 1090 क्रॉसिंग नाम की जगह से संगीत नाटक अकादमी तक मार्च के साथ हुई है. जिसमें सभी कलाकार शामिल हुए थे. जो इस कार्यक्रम में प्रदर्शन करने के लिए राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से आए है.
कार्यक्रम में आदिवासी कलाकारों के लगभग 20 समूह अगले सात दिनों में 30 विभिन्न प्रकार के संगीत और नृत्य रूपों का प्रदर्शन करने के लिए यहां एकत्र हुए हैं. जो ओडिशा, राजस्थान, जम्मू और कश्मीर, छत्तीसगढ़, असम, नागालैंड सहित 17 राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहे है.
इन सबके अलावा इस कार्यक्रम में जिस मैदान में मंच बनाया गया है. वहीं स्थानीय हस्तशिल्प जैसे टेराकोटा, गढ़ा लोहे और बांस से बनी वस्तुएं और शोपीस बेचने वाले व्यापारिक स्टॉल भी लगे हैं.
इस जाति भागीदारी उत्सव में हर दिन नए नृत्य रूपों के साथ मंच पर जगमगाता यह कार्यक्रम अगले सात दिनों तक हर रात 8 बजे तक जारी रहेगा.
ओडिशा से अपने 15 सदस्यीय समूह के साथ ढलकई नृत्य करने आए है दीपक जल ने कहा है कि उनके समूह के प्रत्येक कलाकार के लिए यह नृत्य शैली उनकी आय का एकमात्र साधन है.
यह ना केवल उनकी बल्कि लगभग सभी लोक शैलियां एंव आदिवासी नृत्य और संगीत शैलियाम विलुप्त होने की कगार पर हैं.
दीपक जल ने यह भी कहा है कि यूपी में ज्यादातर लोगों ने ढलकई नृत्य के बारे में नहीं सुना होगा. लेकिन घर पर हर कोई जानता है कि यह क्या है.
इसके साथ ही जम्मू कश्मीर के लोकप्रिय गोजरी नृत्य का प्रदर्शन करने के लिए आए सनीर राजपूत ने कहा है की कला में शामिल होना युवा दिमागों को व्यस्त और सक्रिय रखने का एक शानदार तरीका है.
उन्होंने कहा है कि वह यह नृत्य हर खुशी के अवसर पर करते हैं. चाहे वह कोई पारिवारिक समारोह हो या पहली फसल हो.
इसके अलावा इस मंडली के प्रबंधक राज़ी ताहीद ने कहा है कि इस तरह के राष्ट्रीय स्तर के आयोजन उनके लोक कला रूपों को जीवित रखने के सबसे बड़े तरीकों में से एक हैं.