HomeAdivasi Dailyमेघालय: अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए जाति साबित करनी होगी

मेघालय: अनुसूचित जनजाति का दर्जा पाने के लिए जाति साबित करनी होगी

राज्य सरकार के इस कदम से खासी के पहाडी क्षेत्र के आवेदकों की सटीक स्थिति का पता चल सकेगा

मेघालय सरकार ने एक फैसला लिया है जिसके अनुसार खासी हिल्स स्वायत्त जिला परिषद (KHADC) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के आवेदकों को अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र पाने के लिए खासी जनजाति का प्रमाण पत्र दिखाना ज़रूरी होगा.

समाज कल्याण मंत्री पॉल लिंगदोह ने 23 मई को इस निर्णय की घोषणा करते हुए कहा कि इस संबंध में जल्द ही अधिसूचना जारी की जाएगी.

उन्होंने कहा कि दिशा-निर्देशों में एक नया भाग जोड़ा गया है, जिसके तहत आवेदकों के लिए केएचएडीसी के तहत संबंधित अधिकारियों द्वारा प्राप्त जनजाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य कर दिया गया है.

उन्होंने बताया कि आवेदनों की प्राप्ति और निपटान के लिए जो दिशानिर्देश मौजूद हैं, उनमें एक और खंड शामिल किया गया है, जिसके तहत आवेदकों के लिए केएचएडीसी के तहत प्राधिकारियों से जनजाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होगा.

मंत्री ने यह भी कहा कि हालांकि केएचएडीसी द्वारा जारी जनजाति प्रमाण पत्र एक वैध कानूनी दस्तावेज है, लेकिन पहले एसटी प्रमाण पत्र देने के लिए इसे आधार नहीं माना जाता था.

उन्होंने कहा कि किसी को भी खुद को पंजीकृत करने और एसटी प्रमाण पत्र पाने का दावा करने के लिए, उनके पास केएचएडीसी द्वारा जारी जनजाति प्रमाण पत्र होना एक पूर्व शर्त है.

राज्य सरकार अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र देने से पहले उचित दस्तावेजीकरण सुनिश्चित करेगी.

राज्य सरकार के इस कदम से खासी के पहाडी क्षेत्र के आवेदकों की सटीक स्थिति का पता चल सकेगा.

कौन है खासी जनजाति ?

खासी समुदाय पूर्वी मेघालय, बांग्लादेश के कुछ हिस्सों और असम के कुछ हिस्सों में रहने वाला सबसे बड़ा जातीय समूह है. उनकी जीवनशैली अनूठी है और उनके सामाजिक मानदंड अधिकांश समुदायों से अलग हैं. इन्हें भारतीय उपमहाद्वीप में बसने वाले सबसे प्रारंभिक जातीय समूहों में से एक माना जाता है.

यहां के मूल निवासियों ने एक मातृसत्तात्मक परंपरा स्थापित की है. परिवार की सबसे छोटी बेटी को परिवार का खजाना विरासत में मिलता है, बच्चे अपनी माँ का उपनाम लेते हैं जबकि एक पुरुष को शादी के बाद अपनी सास के घर रहना पड़ता है. ऐसी दुनिया में जहाँ पितृसत्ता का बोलबाला है, वहाँ ऐसा समुदाय मिलना दुर्लभ है जो महिलाओं और मातृसत्ता के इर्द-गिर्द बना हो.

एक कबीले के भीतर विवाह वर्जित है. विवाह को पूर्ण करने के लिए वर और वधू के बीच अंगूठियाँ या सुपारी की थैलियाँ बदली जाती हैं. हालाँकि, ईसाई परिवारों में विवाह पूरी तरह से एक नागरिक अनुबंध है.

खासी लोगों का मुख्य भोजन चावल है. समुदाय के हर हर औपचारिक और धार्मिक अवसर पर चावल-बीयर का उपयोग अनिवार्य है. वे मछली और मांस भी खाते हैं.

खासी पुरुषों की पारंपरिक पोशाक “जिम्फोंग” या बिना कॉलर वाला लंबा बिना आस्तीन का कोट है, जिसे सामने की ओर पट्टों से बांधा जाता है. हालांकि अब खासी लोगों ने पश्चिमी पोशाक अपना ली है. लेकिन औपचारिक अवसरों पर, वे “जिम्फोंग” और सजावटी कमरबंद के साथ धोती पहनते हैं.

खासी पारंपरिक महिला पोशाक कपड़े के कई टुकड़ों से बनी होती है, जो शरीर को बेलनाकार आकार देती है. औपचारिक अवसरों पर, वे सिर पर चांदी या सोने का मुकुट पहनती हैं. मुकुट के पीछे एक कील या चोटी लगी होती है, जो पुरुषों द्वारा पहने जाने वाले पंखों के अनुरूप होती है.

 खासी अब ज़्यादातर ईसाई हैं. लेकिन उससे पहले, वे एक सर्वोच्च सत्ता, सृष्टिकर्ता में विश्वास करते थे और उनके आधीन पानी और पहाड़ों और अन्य प्राकृतिक वस्तुओं के कई देवता थे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments