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मणिपुर में हिंसा के चलते 14 हज़ार से अधिक स्कूली बच्चे हुए विस्थापित

मंत्रालय ने विस्थापित छात्रों की वर्तमान प्रवेश स्थिति के साथ जिलेवार विवरण भी दिया, जिसमें बताया गया कि कामजोंग, जिरीबाम, थौबल, वांगोई, बिष्णुपुर, इंफाल पश्चिम और इंफाल पूर्वी जिलों में सभी विस्थापित छात्रों को पास के स्कूलों में प्रवेश दिया गया है.

मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) के तीन महीने पूरे हो गए हैं लेकिन राज्य में अभी भी शांति बहाल नहीं हो पाई है. राज्य में जारी अस्थिरता के कारण सबसे ज्यादा बच्चे और महिलाएं प्रभावित हुईं हैं. इस बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने बुधवार को संसद में बताया कि मणिपुर में तीन महीने से चल रहे जातीय संघर्ष (Ethenic violence) के चलते कुल 14 हज़ार 763 स्कूल जाने वाले बच्चे विस्थापित हो गए हैं.

शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया कि इनमें से लगभग 93.5 फीसदी छात्रों ने पास के स्कूलों में दाखिला ले लिया है.

मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि हिंसा का केंद्र रहे चुराचांदपुर जिले से 4,099 छात्र विस्थापित हुए, इसके बाद कांगपोकपी (Kangpokpi) से 2,822 और बिष्णुपुर से 2,063 छात्र विस्थापित हुए हैं.

अन्नपूर्णा देवी ने तृणमूल कांग्रेस विधायक डोला सेन के एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया, “मणिपुर सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी के मुताबिक, राज्य की वर्तमान स्थिति के कारण कुल 14 हज़ार 763 स्कूल जाने वाले बच्चे विस्थापित हो गए हैं. विस्थापित छात्रों की प्रवेश प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रत्येक राहत शिविर के लिए एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया है. 93.5 प्रतिशत विस्थापित छात्रों को निकटतम संभावित स्कूल में निशुल्क प्रवेश दिया गया है.”

मंत्रालय ने विस्थापित छात्रों की वर्तमान प्रवेश स्थिति के साथ जिलेवार विवरण भी दिया, जिसमें बताया गया कि कामजोंग, जिरीबाम, थौबल, वांगोई, बिष्णुपुर, इंफाल पश्चिम और इंफाल पूर्वी जिलों में सभी विस्थापित छात्रों को पास के स्कूलों में प्रवेश दिया गया है.

डोला सेन हाल ही में मणिपुर का दौरा करने वाले 21 सदस्यीय विपक्षी प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थीं. उन्होंने सरकार से पूछा था कि क्या उसके पास ऐसे स्कूली बच्चों की जानकारी है जो वर्तमान संघर्ष के कारण विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को कुकी समुदाय द्वारा पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के दौरान शुरू हुई झड़पें हिंसा में बदल गई और वो अब भी जारी हैं.

जातीय हिंसा के चलते मणिपुर में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं. जबकि 50 हज़ार से ज्यादा लोग बेघर हो गए हैं और राहत कैंपों में रहने को मजबूर हैं.

वहीं 2 अगस्त को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मणिपुर में हुई जातीय हिंसा में करीब 150 लोग मारे गए हैं. इनमें से 59 मौतें 3 से 5 मई के बीच हुईं. 27 से 29 मई के बीच 28 लोगों ने अपनी जान गंवाई. वहीं 9 जून को हुई हिंसा में 13 लोगों की जान गई. इसमें बताया गया कि 502 लोग इन घटनाओं में घायल हुए हैं. आगजनी की पांच हजार से अधिक घटनाएं हुईं.

सरकार ने अपनी रिपोर्ट में आगे बताया कि इन सभी मामलों में 252 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. वहीं 12,740 लोग प्रिवेंटिव मेज़र (हिंसा को रोकने के लिए उठाया गया कदम) के तहत हिरासत में रखे गए हैं.

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