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अलग राष्ट्र के लिए दबाव बनाने के लिए सालों पहले मणिपुर हिंसा की योजना बनाई गई थी – एन बीरेन सिंह

बीरेन सिंह ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वर्तमान मणिपुर संकट में मिज़ो बिल्कुल भी शामिल हैं. यह कहते हुए कि मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा सहित कुछ नेता हैं, जिन्होंने उस राज्य के विधानसभा चुनाव के निकट होने के बाद से राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए बयान दिए हैं.

मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच भड़की जातीय हिंसा के 5 महीने बीत गए हैं लेकिन हालात सामान्य नहीं हो पाए हैं. अब मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने टाइम्स ऑफ इंडिया से मणिपुर के हालात पर चर्चा की है. उन्होंने सांप्रदायिक झड़पों की उत्पत्ति, युद्धरत समुदायों को बातचीत की मेज पर लाने के लिए उठाए गए कदमों और आगे की राह के बारे में बात की.

उनका कहना है कि हालांकि उनकी सरकार का ड्रग्स के खिलाफ युद्ध, भारतीय वन अधिनियम, 1927 का कार्यान्वयन और अवैध प्रवासियों की पहचान करना तत्काल झटका था लेकिन मणिपुर में जो रहा है उसकी योजना कई साल पहले एक अलग राष्ट्र की मांग के साथ बनाई गई थी.

राज्य में 3 मई से जारी तबाही के मूल कारण पर सीएम बीरेन ने कहा कि यह पहाड़ियों में अवैध प्रवासियों का समर्थित एक विशेष समूह है जिसने इस वर्तमान अशांति की शुरुआत की. हालांकि तत्काल शुरुआत मेरी सरकार के ड्रग्स के खिलाफ युद्ध, भारतीय वन अधिनियम, 1927 के कार्यान्वयन और अवैध प्रवासियों की पहचान के साथ हुई. लेकिन उत्पत्ति की योजना कई साल पहले एक अलग राष्ट्र की मांग के साथ बनाई गई थी.

उन्होंने कहा कि मणिपुर के विकास और उसके लोगों के कल्याण के लिए मेरे कई तत्काल उपायों का इन अवैध प्रवासियों ने विरोध किया था. स्पष्ट निष्कर्ष यह है कि हिंसा एक शांतिपूर्ण रैली के नाम पर पूर्व नियोजित थी. यह मैतेई की अनुसूचित जनजाति मांग और मणिपुर हाई कोर्ट के इस मामले पर सिफारिश की मांग से भी संबंधित नहीं है.

क्या आपको लगता है कि इस झड़प के पीछे केवल वे 10 विधायक हैं जिन्होंने अलग प्रशासन की मांग की है या अन्य, जिनमें मिजोरम जैसे पड़ोसी राज्य भी शामिल हैं?

बीरेन सिंह ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि वर्तमान मणिपुर संकट में मिज़ो बिल्कुल भी शामिल हैं. यह कहते हुए कि मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा सहित कुछ नेता हैं, जिन्होंने उस राज्य के विधानसभा चुनाव के निकट होने के बाद से राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए बयान दिए हैं.

सीएम बीरेन का कहना है कि राज्य सरकार और केंद्र दोनों के किए गए विशेष विश्वास-निर्माण उपायों के साथ बातचीत पहले ही शुरू हो चुकी है. हालांकि, बातचीत न तो मणिपुर की अखंडता पर समझौता करेगी और न ही अवैध बसने वालों या अफीम की खेती के विनाश पर. यहां तक कि पुराने स्थायी बसने वाले भी सहमत हो गए हैं.

जब उनसे पूछा गया कि स्थायी बसने वालों का क्या अर्थ है? इस पर उन्होंने कहा कि उन्हें उन लोगों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जो आधार वर्ष से पहले सदियों से राज्य में रहे हैं.

हमने उनके लिए नियम बनाए हैं. वे उन क्षेत्रों में रह सकते हैं जहां वे हैं लेकिन उन्हें नई जमीन खरीदने की अनुमति नहीं दी जाएगी. हालांकि, वे आपस में खरीद-बिक्री कर सकते हैं.

राज्य के राहत शिविरों में रहने वालों और घायलों के लिए मुआवजे की योजना पर उन्होंने कहा कि लोगों को उनके सरकार के दिए गए काम के लिए सालाना 5 हज़ार रुपये दिए गए थे. जिसके लिए चुराचंदपुर और कांगपोकपी सहित राहत शिविरों के क्षेत्रों में वर्कशेड और स्कील ट्रेनिंग खोला गया है. बाकी लोगों के लिए भी प्रयास जारी हैं.

उन्होंने कहा कि उन्हें उनकी दैनिक जरूरतों के लिए हर दो से तीन महीने में 1 हज़ार रुपये दिए जाते थे. सरकार स्वास्थ्य सेवा प्रदान कर रही है और घायल लोगों का इलाज कर रही है. जो लोग आघात में थे, उनके लिए कई जाने-माने चिकित्सा विशेषज्ञ और मनोचिकित्सक विशेष रूप से बच्चों के लिए काउंसलिंग सेशन दे रहे हैं. हमारी राहत शिविर में रहने वालों की पीड़ा को कम करने की भी योजना है.

क्या मौजूदा संकट में आपकी और भाजपा की लोकप्रियता को झटका लगा है? इस पर सीएम बीरेन ने कहा कि शुरू में हां, गलत धारणा और जानबूझकर मेरी और भाजपा की छवि को धूमिल करने के प्रयासों के कारण. हालांकि, राज्य के लोग राजनीति के बारे में बहुत जागरूक हैं। वे गहराई से समझते हैं कि इस अस्तित्वगत संकट में कौन तुच्छ राजनीति कर रहा है. लोगों से बात करने के बाद अब मैं समझता हूं कि वे गुमराह थे.

उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए, मेरे लुवांगवांगबाम घर पर हमला हुआ था. बाद में ज्यादातर अपराधी राजनीतिक रूप से उकसाए गए थे और कोई भी मेरे निर्वाचन क्षेत्र से नहीं बल्कि हिरोक और अन्य क्षेत्रों से थे. केवल भाजपा ही मणिपुर और उसके मूल निवासियों को बचा सकती है.

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